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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 113 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 113/ मन्त्र 20
    ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - उषाः द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यच्चि॒त्रमप्न॑ उ॒षसो॒ वह॑न्तीजा॒नाय॑ शशमा॒नाय॑ भ॒द्रम्। तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । चि॒त्रम् । अप्नः॑ । उ॒षसः॑ । वह॑न्ति । ई॒जा॒नाय॑ । श॒श॒मा॒नाय॑ । भ॒द्रम् । तत् । नः॒ । मि॒त्रः । वरु॑णः । म॒म॒ह॒न्ता॒म् । अदि॑तिः । सिन्धुः॑ । पृ॒थि॒वी । उ॒त । द्यौः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यच्चित्रमप्न उषसो वहन्तीजानाय शशमानाय भद्रम्। तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदिति: सिन्धु: पृथिवी उत द्यौः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। चित्रम्। अप्नः। उषसः। वहन्ति। ईजानाय। शशमानाय। भद्रम्। तत्। नः। मित्रः। वरुणः। ममहन्ताम्। अदितिः। सिन्धुः। पृथिवी। उत। द्यौः ॥ १.११३.२०

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 113; मन्त्र » 20
    अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मनुष्य या उषस इव वर्त्तमानाः सत्स्त्रियः शशमानायेजानाय पुरुषाय नोऽस्मभ्यं च यच्चित्रं भद्रमप्नो वहन्ति याभिर्मित्रो वरुणोदितिः सिन्धुः पृथिवी उतापि द्यौश्च पालनीयाः सन्ति तास्तच्च भवन्तः सततं मामहन्ताम् ॥ २० ॥

    पदार्थः

    (यत्) (चित्रम्) अद्भुतम् (अप्नः) अपत्यम् (उषसः) प्रभातवेला इव स्त्रियः (वहन्ति) प्रापयन्ति (ईजानाय) सङ्गन्तुं शीलाय (शशमानाय) प्रशंसिताय (भद्रम्) कल्याणकरम् (तत्०) इति पूर्ववत् ॥ २० ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। श्रेष्ठा विदुष्यः स्त्रिय एव सन्तानानुत्पाद्य संरक्ष्य सुशिक्षया वर्धयितुं शक्नुवन्ति। ये पुरुषाः स्त्रीः सत्कुर्वन्ति याः पुरुषांश्च तेषां कुले सर्वाणि सुखानि वसन्ति दुःखानि च पलायन्ते ॥ २० ॥अत्र रात्र्युषर्गुणवर्णनं तद्दृष्टान्तेन स्त्रीपुरुषकर्त्तव्यकर्मोपदेशत एतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ ।इति त्रयोदशोत्तरशततमं सूक्तमष्टमे चतुर्थो वर्गश्च सम्पूर्णः ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (उषसः) उषा के समान स्त्री (शशमानाय) प्रशंसित गुणयुक्त (ईजानाय) सङ्ग शील पुरुष के लिये और (नः) हमारे लिये (यत्) जो (चित्रम्) अद्भुत (भद्रम्) कल्याणकारी (अप्नः) सन्तान की (वहन्ति) प्राप्ति करातीं वा जिन स्त्रियों से (मित्रः) सखा (वरुणः) उत्तम पिता (अदितिः) श्रेष्ठ माता (सिन्धुः) समुद्र वा नदी (पृथिवी) भूमि (उत) और (द्यौः) विद्युत् वा सूर्यादि प्रकाशमान पदार्थ पालन करने योग्य है, उन स्त्रियों वा (तत्) उस सन्तान को निरन्तर (मामहन्ताम्) उपकार में लगाया करो ॥ २० ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। श्रेष्ठ विद्वान् ही सन्तानों को उत्पन्न अच्छे प्रकार रक्षित और उनको अच्छी शिक्षा करके उनके बढ़ाने को समर्थ होते हैं। जो पुरुष स्त्रियों और जो स्त्री पुरुषों का सत्कार करती हैं, उनके कुल में सब सुख निवास करते हैं और दुःख भाग जाते हैं ॥ २० ॥इस सूक्त में रात्रि और प्रभात समय के गुणों का वर्णन और इनके दृष्टान्त से स्त्री-पुरुषों के कर्त्तव्य कर्म का उपदेश किया है। इससे इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त से कहे अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह ११३ एक सौ तेरहवाँ सूक्त और ४ चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    ईजान व शशमान पुरुष

    पदार्थ

    १. (यत्) = जो (उषसः) = उषाएँ (ईजानाय) = यज्ञशील पुरुष के लिए (चित्रम् अप्नः) = अद्भुत धन को अथवा [चित्र] ज्ञानयुक्त धन को (वहन्ति) = प्राप्त कराती हैं । यज्ञशील बनने से , वृत्ति की पवित्रता के कारण ज्ञान भी बढ़ता है और धन भी बढ़ता है । यज्ञशीलता के अभाव में बढ़ा हुआ धन हमारे पतन का कारण बनता है , हमें अधिकाधिक गिरावट में ले जाता है । २. ये उषाएँ (शशमानाय) = [शश प्लुतगतौ] खूब क्रियाशील पुरुष के लिए (भद्रम्) = कल्याण व सुख प्राप्त कराती हैं । एवं , हम क्रियाशील बनें और कल्याण का साधन करें । (नः तत्) = हमारे इस सङ्कल्प को (मित्रः) = मित्र , (वरुणः) = वरुण , (अदितिः) = स्वास्थ्य की देवता , (सिन्धुः) = शरीर में रेतः कणों के रूप में रहनेवाले जल , (पृथिवी) = दृढ़ शरीर (उत) = और (द्यौः) = दीप्त मस्तिष्क (मामहन्ताम्) = आदृत करें । स्नेह , निर्द्वेषता , स्वास्थ्य , सोमरक्षण , स्वस्थ शरीर व दीप्त मस्तिष्क - ये हमें यज्ञशील व अत्यन्त क्रियाशील बनाएँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यज्ञशील पुरुष को उषा ज्ञानयुक्त धन प्राप्त कराती है तथा क्रियाशील बनाकर सुख और कल्याण प्रदान करती है ।

    विशेष / सूचना

    विशेष - सूक्त के आरम्भ में कहा है कि उषा का प्रकाश श्रेष्ठतम है [१] । यह ईजान और शशमान का कल्याण करता है [२०] । अकर्मण्य को उषा भी सुखी नहीं कर सकती । यह शशमान रुद्र का आराधक बनता है और प्रार्थना करता है -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. श्रेष्ठ विद्वानच संतानांना उत्पन्न करून चांगल्या प्रकारे रक्षण करून त्यांना चांगले शिक्षण देऊन त्यांना वाढविण्यास समर्थ असतात. जे पुरुष स्त्रियांचा व ज्या स्त्रिया पुरुषांचा सत्कार करतात त्यांच्या कुळात सर्व सुखांचा निवास असतो व दुःख पळून जाते. ॥ २० ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whatever creation and wonderful inspiration the dawns, lady lights of divinity, bear and bring for the zealous yajaka, may Mitra, universal friend of life, Varuna, lord of eternal peace and justice, Aditi, mother nature, the rivers and the sea, the earth, the sky and the light of heaven expand and elevate for humanity.

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