ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 113/ मन्त्र 4
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः
देवता - उषाः द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
भास्व॑ती ने॒त्री सू॒नृता॑ना॒मचे॑ति चि॒त्रा वि दुरो॑ न आवः। प्रार्प्या॒ जग॒द्व्यु॑ नो रा॒यो अ॑ख्यदु॒षा अ॑जीग॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठभास्व॑ती । ने॒त्री । सू॒नृता॑नाम् । अचे॑ति । चि॒त्रा । वि । दुरः॑ । नः॒ । आ॒व॒रित्या॑वः । प्र॒ऽर्प्य॑ । जग॑त् । वि । ऊँ॒ इति॑ । नः॒ । रा॒यः । अ॒ख्य॒त् । उ॒षाः । अ॒जी॒गः॒ । भुव॑नानि । विश्वा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
भास्वती नेत्री सूनृतानामचेति चित्रा वि दुरो न आवः। प्रार्प्या जगद्व्यु नो रायो अख्यदुषा अजीगर्भुवनानि विश्वा ॥
स्वर रहित पद पाठभास्वती। नेत्री। सूनृतानाम्। अचेति। चित्रा। वि। दुरः। नः। आवरित्यावः। प्रऽर्प्य। जगत्। वि। ऊँ इति। नः। रायः। अख्यत्। उषाः। अजीगः। भुवनानि। विश्वा ॥ १.११३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 113; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरुषो विषयमाह ।
अन्वयः
हे विद्वांसो मनुष्या युष्माभिर्या भास्वती सूनृतानां नेत्री चित्रोषा नो दुरो व्यावो या नोऽस्मभ्यं जगत् प्रार्प्य रायो व्यख्यदु इति वितर्के विश्वा भुवनान्यजीगः साचेति अवश्यं विज्ञायताम् ॥ ४ ॥
पदार्थः
(भास्वती) प्रशस्ता भाः कान्तिर्विद्यते यस्याः सा (नेत्री) प्रापिका (सूनृतानाम्) वाग्जागरितादिव्यवहाराणाम् (अचेति) सम्यग् विज्ञायताम् (चित्रा) विविधव्यवहारसिद्धिप्रदा (वि) (दुरः) द्वाराणि। अत्र पृषोदरादित्वात् संप्रसारणेनेष्टरूपसिद्धिः। (नः) अस्माकम् (आवः) विवृणोतीव (प्रार्प्य) अर्पयित्वा (जगत्) संसारम् (वि) (उ) (नः) अस्मभ्यम् (रायः) धनानि (अख्यत्) प्रख्याति (उषाः) सुप्रभातः (अजीगः) स्वव्याप्त्या निगलतीव (भुवनानि) लोकान् (विश्वा) सर्वान्। अत्र शेर्लोपः ॥ ४ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योषा सर्वं जगत् प्रकाश्य सर्वान् प्राणिनो जागरयित्वा सर्वं विश्वमभिव्याप्य सर्वान् पदार्थान् वृष्टिद्वारा समर्थयित्वा पुरुषार्थे प्रवर्त्य धनादीनि प्रापय्य मातेव सर्वान् प्राणिनः पात्यत आलस्ये व्यर्था सा वेला नैव नेया ॥ ४ ॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उषा का विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे विद्वन् मनुष्यो ! तुम लोगों को जो (भास्वती) अतीवोत्तम प्रकाशवाले (सूनृतानाम्) वाणी और जागृत के व्यवहारों को (नेत्री) प्राप्त करने और (चित्रा) अद्भुत गुण, कर्म, स्वभाववाली (उषाः) प्रभात वेला (नः) हमारे लिये (दुरः) द्वारों (वि, आवः) को प्रकट करती हुई सी वा जो (नः) हमारे लिये (जगत्) संसार को (प्रार्प्य) अच्छे प्रकार अर्पण करके (रायः) धनों को (वि, अख्यत्) प्रसिद्ध करती है (उ) और (विश्वा) सब (भुवनानि) लोकों को (अजीगः) अपनी व्याप्ति से निगलती सी है, वह (अचेति) अवश्य जाननी है ॥ ४ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो उषा सब जगत् को प्रकाशित करके, सब प्राणियों को जगा, सब संसार में व्याप्त होकर, सब पदार्थों को वृष्टि द्वारा समर्थ करके, पुरुषार्थ में प्रवृत्त करा, धनादि की प्राप्ति करा, माता के समान सब प्राणियों को पालती है, इससे आलस्य में उत्तम प्रातःसमय की वेला व्यर्थ न गमाना चाहिये ॥ ४ ॥
विषय
प्रकाशमयी उषा भास्वती
पदार्थ
१. यह उषा (भास्वती) = प्रकाशवाली है , (सूनुतानाम्) = प्रिय , सत्यवाणियों की नेत्री - प्रणयन करनेवाली है । इस उषा में पशु - पक्षियों के कलरव तो होते ही हैं , भक्तों की प्रभुस्तवन की वाणियों का उच्चारण भी इसी समय होता है । यह उषा (चित्रा) = [चायनीया - सा०] अद्भुत व पूजनीय (अचेति) = जानी जाती है । उषा स्वयं स्तुत्य है , परन्तु प्रभुस्तवन का सर्वोत्तम काल होने से भी यह चित्रा कहलाती है । यह उषा (नः) = हमारे (दुरः) = इन्द्रिय - द्वारों को (वि आवः) = खोल देती है । रात्रि के समय सब इन्द्रियों ने कार्य करना बन्द कर दिया था , अब यह उषा उन सब इन्द्रियों को कार्यप्रवृत्त कर देती है - मानो सब द्वारों को खोल देती है । २. (उ) = और यह उषा (जगत् प्रार्प्या) = सम्पूर्ण जगत् को प्रकाश प्राप्त कराके (नः रायः) = हमारे धनों को (वि अख्यत्) = विशेष रूप से प्रकट करती है । उषाकाल में ही प्रबुद्ध होकर हम ऐश्वर्यार्जन के योग्य बनते हैं , इसी समय हमारी इन्द्रिय - शक्तियों का प्रकाश होता है । ३. वस्तुतः (उषा) = उषा (विश्वा भुवनानि) = सब लोकों व प्राणियों को (अजीगः) = फिर से उद्गीर्ण करती है । रात्रि ने सब भुवनों को अन्धकार से आवृत करके निगल - सा लिया था , उषा में वे सब भुवन पुनः प्रकट हो जाते हैं । उषा उन लोकों को प्रकाश में लाकर मानो फिर से उत्पन्न कर देती है ।
भावार्थ
भावार्थ - यह उषाकाल प्रिय एवं सत्य वाणियों के उच्चारण का समय है । सर्वत्र प्रकाश करती हुई यह उषा सब भुवनों को नवजीवन देती है ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी उषा सर्व जगाला प्रकाशित करते. सर्व प्राण्यांना जागृत करून सर्व जगात व्याप्त असते. सर्व पदार्थांना वृष्टीद्वारे समर्थ करते व पुरुषार्थात प्रवृत्त करून धनाची प्राप्ती करविते व मातेप्रमाणे सर्व प्राण्यांचे पालन करते. त्यासाठी आळशी राहून प्रातःकाळची वेळ व्यर्थ गमावता कामा नये ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Brilliant shines the dawn, leading inspiration and revelation of divinity for spirits of piety. Wonderful and splendid, it opens the doors of intelligence and consciousness. Taking the world over, it reveals the wealth of nature and envelops the worlds of existence in beauty and splendour.
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