ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 120/ मन्त्र 11
ऋषिः - उशिक्पुत्रः कक्षीवान्
देवता - अश्विनौ
छन्दः - पिपीलिकामध्याविराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒यं स॑मह मा तनू॒ह्याते॒ जनाँ॒ अनु॑। सो॒म॒पेयं॑ सु॒खो रथ॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । स॒म॒ह॒ । मा॒ । त॒नु॒ । ऊ॒ह्याते॑ । जना॑न् । अनु॑ । सो॒म॒ऽपेय॑म् । सु॒ऽखः । रथः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं समह मा तनूह्याते जनाँ अनु। सोमपेयं सुखो रथ: ॥
स्वर रहित पद पाठअयम्। समह। मा। तनु। ऊह्याते। जनान्। अनु। सोमऽपेयम्। सुऽखः। रथः ॥ १.१२०.११
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 120; मन्त्र » 11
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे समह विद्वँस्त्वं योऽयं सुखो रथोऽस्ति येनाश्विनावनूह्याते तेन मा जनान् सोमपेयं च सुखेन तनु ॥ ११ ॥
पदार्थः
(अयम्) (समह) यो महेन सत्कारेण सह वर्त्तते तत्संबुद्धौ (मा) माम् (तनु) विस्तृणुहि (ऊह्याते) देशान्तरं गम्येते (जनान्) (अनु) (सोमपेयम्) सोमैरैश्वर्ययुक्तैः पातुं योग्यं रसम् (सुखः) शोभनानि खान्यवकाशा विद्यन्ते यस्मिन् सः (रथः) रमणाय तिष्ठति यस्मिन् ॥ ११ ॥
भावार्थः
योऽनुत्तमयानकारी शिल्पी भवेत् स सर्वैः सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥ ११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (समह) सत्कार के साथ वर्त्तमान विद्वान् ! आप जो (अयम्) यह (सुखः) सुख अर्थात् जिसमें अच्छे अच्छे-अवकाश तथा (रथः) रमण विहार करने के लिये जिसमें स्थित होते वह विमान आदि यान है, जिससे पढ़ाने और उपदेश करनेहारे (अनूह्याते) अनुकूल एकदेश से दूसरे देश को पहुँचाए जाते हैं, उससे (मा) मुझे (जनान्) वा मनुष्यों अथवा (सोमपेयम्) ऐश्वर्य्ययुक्त मनुष्यों के पीने योग्य उत्तम रस को (तनु) विस्तारो अर्थात् उन्नति देओ ॥ ११ ॥
भावार्थ
जो अत्यन्त उत्तम अर्थात् जिससे उत्तम और न बन सके, उस यान का बनानेवाला शिल्पी हो, वह सबको सत्कार करने योग्य है ॥ ११ ॥
विषय
सुखो रथः
पदार्थ
१. हे (समह) = तेजस्विता से युक्त रथ [शरीररूप रथ] ! तू (अयम्) = [अयमानम् - सा०] गतिशील मुझको (तनू) = विस्तृत शक्तिवाला कर । वस्तुतः गतिशीलता ही शक्तियों के विस्तार का कारण बनती है , आलसी पुरुष संसार में कभी चमकता नहीं । २. यह प्राणसाधना के द्वारा (सुखः) = [शोभनानि खानि यस्मिन्] उत्तम इन्द्रियोंवाला (रथः) = शरीररूप रथ अश्विनीदेवों के द्वारा (जनान् अनु) = [जन् प्रादुर्भाव] शक्तियों के विस्तार का लक्ष्य करके (सोमपेयम्) = सोमपान के लिए (उह्याते) = ले - जाया जाता है । प्राणापान से शरीर में शक्ति की ऊर्ध्वगति होती है । यह शरीर में सुरक्षित शक्ति ही सब इन्द्रियों व अङ्गों को शक्तिशाली बनाती है । सब अङ्गों के सशक्त होने पर ही विविध विकास सम्भव होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से शरीर में शक्ति का रक्षण होता है और उससे ही सब प्रकार का विकास सम्भव होता है ।
विषय
विद्वान् प्रमुख नायकों और स्त्री पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे ( समह ) आदर सत्कार से युक्त विद्वन् ! ( अयम् ) यह ( सुखः ) सुखदायक ( रथः ) रमण करने, आनन्द विहार करने योग्य और वेग से जाने वाला रथ है । वह ( जनान् अनु ) अन्य जनों तक भी ( ऊह्यते ) पहुंचाया जाता है । अर्थात् उसमें बैठ कर अन्यों तक पहुंचा जाता है । अथवा—उसमें विराजे पति पत्नी या वर वधू ( जनान् अनु ऊह्यते ) अन्यों जनों तक पहुंचाए जाते हैं। ऐसा ही एक रथ ( सोमपेयम् ) जिससे ऐश्वर्य का, सुखप्रद रसपान के समान उपभोग हो सके ( मा तनु ) मुझे भी बनादे । ( २ ) भक्त ईश्वर को कहता है—हे ( समह ) महान् शक्ति वाले ! प्रभो ! ( अयम् रथः ) यह देह रमण करने से ‘रथ’ है । अथवा यह आत्मा रस स्वरूप होने से ‘रथ’ है । यह ( सुखः ) सुख प्रद हो, ‘ख’ अर्थात् इन्द्रियें सुख, शान्तिजनक हों, वे दुःखदायी न हों। इससे ( सोम पेयम् ) परमैश्वर्य, ब्रह्मानन्दरूप रस का पान करने के साथ २ दोनों उपास्य और उपासक इस आत्मा में ( जनान् अनु ) उत्पन्न होने वाले आनन्दों को लक्ष्य करके ही धारण किये जाते हैं। वैसा ही यह सुखप्रद देह या आत्मा ( मा तनु ) मेरा भी कर दे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
औशिक्पुत्रः कक्षीवानृषिः॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः- १, १२ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २ भुरिग्गायत्री । १० गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ३ स्वराट् ककुबुष्णिक् । ५ आर्ष्युष्णिक् । ६ विराडार्ष्युष्णिक् । ८ भुरिगुष्णिक् । ४ आर्ष्यनुष्टुप् । ७ स्वराडार्ष्यनुष्टुप् । ९ भुरिगनुष्टुप् । द्वादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
अत्यंत उत्तम यानाला बनविणारा कारागीर सर्वांनी सत्कार करण्यायोग्य असतो. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Great and glorious is this chariot, comfortable and luxurious, by which the Ashvins, noble, generous and exceptional men of knowledge and power are transported to places of light and delight in the interest of the people. May this chariot help us too to rise in wealth and knowledge.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O venerable learned person, this is the car which creates happiness and by which teachers and preachers are carried to drink the Soma, (essence of many nourishing herbs) which is taken by kings and other wealthy persons also. Augment my prosperity.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(समह) यो महेन सत्कारेण सह वर्तते तत् सम्बुद्धौ = Respectable. (सोमपेयम्) सोमै: ऐश्वर्ययुक्तैः पातुं योग्यं रसम् = The essence of the herbs that deserves to be drunk by wealthy persons.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The Artisan who can manufacture good Vehicles should be respected by men.
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