ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 120/ मन्त्र 8
ऋषिः - उशिक्पुत्रः कक्षीवान्
देवता - अश्विनौ
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
मा कस्मै॑ धातम॒भ्य॑मि॒त्रिणे॑ नो॒ माकुत्रा॑ नो गृ॒हेभ्यो॑ धे॒नवो॑ गुः। स्त॒ना॒भुजो॒ अशि॑श्वीः ॥
स्वर सहित पद पाठमा । कस्मै॑ । धा॒त॒म् । अ॒भि । अ॒मि॒त्रिणे॑ । नः॒ । मा । अ॒कुत्र॑ । नः॒ । गृ॒हेभ्यः॑ । धे॒नवः॑ । गुः॒ । स्त॒न॒ऽभुजः॑ । अशि॑श्वीः ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा कस्मै धातमभ्यमित्रिणे नो माकुत्रा नो गृहेभ्यो धेनवो गुः। स्तनाभुजो अशिश्वीः ॥
स्वर रहित पद पाठमा। कस्मै। धातम्। अभि। अमित्रिणे। नः। मा। अकुत्र। नः। गृहेभ्यः। धेनवः। गुः। स्तनऽभुजः। अशिश्वीः ॥ १.१२०.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 120; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजधर्ममाह ।
अन्वयः
हे रक्षकाश्विनौ सभासेनेशौ युवां कस्मै चिदप्यमित्रिणे नोऽस्मान् माभिधातम्। भवद्रक्षणेन नोऽस्माकं स्तनाभुजो धेनवोऽशिश्वीर्मा भवन्तु ता अस्माकं गृहेभ्योऽकुत्र मा गुः ॥ ८ ॥
पदार्थः
(मा) निषेधे (कस्मै) (धातम्) धरतम् (अभि) आभिमुख्ये (अमित्रिणे) अविद्यमानानि मित्राणि सखायो यस्य तस्मै जनाय (नः) अस्मान् (मा) (अकुत्र) अविषये। अत्र ऋचितुनु० इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (गृहेभ्यः) प्रासादेभ्यः (धेनवः) दुग्धदात्र्यो गावः (गुः) प्राप्नुवन्तु (स्तनाभुजः) दुग्धयुक्तैः स्तनैः सवत्सान् मनुष्यादीन् पालयन्त्यः (अशिश्वीः) वत्सरहिताः ॥ ८ ॥
भावार्थः
प्रजाजना राजजनानेवं शिक्षेरन्नस्मान् शत्रवो मा पीडयेयुरस्माकं गवादिपशून् मा हरेयुरेवं भवन्तः प्रयतन्तामिति ॥ ८ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजधर्म का उपदेश अगले मन्त्र में करते हैं।
पदार्थ
हे रक्षा करनेहारे सभासेनाधीशों ! तुम लोग (कस्मै) किसी (अमित्रिणे) ऐसे मनुष्य के लिये कि जिसके मित्र नहीं अर्थात् सबका शत्रु (नः) हम लोगों को (मा) मत (अभिधातम्) कहो, आपकी रक्षा से (नः) हम लोगों की (स्तनाभुजः) दूध भरे हुए थनों से अपने बछड़ों समेत मनुष्य आदि प्राणियों को पालती हुई (धेनवः) गौयें (अशिश्वीः) बछड़ों से रहित अर्थात् बन्ध्या (मा) मत हों और वे हमारे (गृहेभ्यः) घरों से (अकुत्र) विदेश में मत (गुः) पहुँचे ॥ ८ ॥
भावार्थ
प्रजाजन राजजनों को ऐसी शिक्षा देवें कि हम लोगों को शत्रुजन मत पीड़ा दें और हमारे गौ, बैल, घोड़े आदि पशुओं को न चोर लें, ऐसा आप यत्न करो ॥ ८ ॥
विषय
प्राणसाधना वा गोरक्षण
पदार्थ
१. हे प्राणापानो ! आप (नः) = हमें (कस्मै) = किसी भी (अमित्रिणे) = मित्रभाव से राहित्यवाले काम , क्रोध , लोभरूप शत्रु के लिए (मा) = मत (अभिधातम्) = सम्मुख स्थापित करो । आपकी कृपा से हम कामादि शत्रुओं को जीतनेवाले बनें । २. इस प्राणसाधना के साथ (नः गृहेभ्यः) = हमारे घरों से (धेनवः) = गौएँ (अकुत्रा) = हमसे अगम्य किसी प्रदेश में (मा गुः) = मत जाएँ । वे गौएँ (स्तनाभुजः) = अपने स्तनों से दुग्ध द्वारा पालन न करनेवाली (मा) = न हों । (अशिश्वीः) = उत्तम वत्सों से रहित (मा) = न हों , अर्थात् जो गौएँ हमारे घरों में हों , वे खूब दुध देनेवाली हों और उत्तम बछड़ोंवाली हों । प्राणसाधना के साथ गोदुग्ध का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है , अतः प्राणसाधक के घर गौओं का होना आवश्यक है ।
भावार्थ
भावार्थ - हम प्राणसाधना में चलें और घर पर गौएँ अवश्य रक्खें ।
विषय
विद्वान् प्रमुख नायकों और स्त्री पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे राज्यकर्त्ता पुरुषो ! विद्वान् स्त्री पुरुषो ! आप लोग (नः) हमें ( कस्मै ) किसी भी ( अमित्रिणे ) मित्र जनों से रहित, सबके शत्रु, स्नेहशून्य, अकारण वैरी पुरुष के स्वार्थ के लिये ( मा अभिधातम्) कभी न घरें, या उसको हमारा पता न करें । ( नः ) हमारे ( गृहेभ्यः ) घरों से (धेनवः) दुधार गौवें (अकुत्र ) अन्यत्र कहीं, संकट के स्थान में ( मा गुः ) न जावें । और ( स्तनाभुजः ) स्तनों द्वारा बच्छों और बच्चों के पालने वाली गौवें और माताएं (अशिश्वीः) शिशु रहित ( मा ) न हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
औशिक्पुत्रः कक्षीवानृषिः॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः- १, १२ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २ भुरिग्गायत्री । १० गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ३ स्वराट् ककुबुष्णिक् । ५ आर्ष्युष्णिक् । ६ विराडार्ष्युष्णिक् । ८ भुरिगुष्णिक् । ४ आर्ष्यनुष्टुप् । ७ स्वराडार्ष्यनुष्टुप् । ९ भुरिगनुष्टुप् । द्वादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजेने राजाला असे सांगावे की, आम्हाला शत्रूने मारता कामा नये व आमच्या गाई, बैल, घोडे इत्यादी पशूंना चोरांनी नेऊ नये असा तुम्ही प्रयत्न करा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, hold us in protection but not for the man who is friendless and nobody’s friend. Let our cows be fertile, rich in milk and blest with calves. Let them not go off from our homes anywhere, let them not be barren, never without calves.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a King are told in the eight Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Protecting Ashvins (President of the Assembly and Commander of the Army) deliver us not to our enemies, never may our cows, who nourish us along with our children, with their udders, stray away from our homes and remain devoid of their calves, under your protection.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(स्तनाभुजः ) दुग्धयुक्तैः स्तनैः सवत्सान् मनुष्यादीन् पालयन्तः || Nourishing men along with their children with their udders. (भुज-पालनाभ्यवहारयोः रुधा० ) Tr. (अशिश्वी:) वत्सरहिताः = Without calves.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The people should so instruct their rulers or administrators of the State, may not enemies harm us, may they not You must pay special take away our cows and other beasts. attention to these things.
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