ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 157/ मन्त्र 4
आ न॒ ऊर्जं॑ वहतमश्विना यु॒वं मधु॑मत्या न॒: कश॑या मिमिक्षतम्। प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒ नी रपां॑सि मृक्षतं॒ सेध॑तं॒ द्वेषो॒ भव॑तं सचा॒भुवा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । ऊर्ज॑म् । व॒ह॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । यु॒वम् । मधु॑ऽमत्या । नः॒ । कश॑या । मि॒मि॒क्ष॒त॒म् । प्र । आयुः॑ । तारि॑ष्टम् । निः । रपां॑सि । मृ॒क्ष॒त॒म् । सेध॑तम् । द्वेषः॑ । भव॑तम् । स॒चा॒ऽभुवा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न ऊर्जं वहतमश्विना युवं मधुमत्या न: कशया मिमिक्षतम्। प्रायुस्तारिष्टं नी रपांसि मृक्षतं सेधतं द्वेषो भवतं सचाभुवा ॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। ऊर्जम्। वहतम्। अश्विना। युवम्। मधुऽमत्या। नः। कशया। मिमिक्षतम्। प्र। आयुः। तारिष्टम्। निः। रपांसि। मृक्षतम्। सेधतम्। द्वेषः। भवतम्। सचाऽभुवा ॥ १.१५७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 157; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे अश्विना युवं मधुमत्या कशया न ऊर्जमावहतं मिमिक्षतं न आयुः प्रतारिष्टं द्वेषो रपांसि निःसेधतमस्मान् मृक्षतं सचाभुवा भवतम् ॥ ४ ॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहतम्) प्रापयतम् (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (युवम्) युवाम् (मधुमत्या) बहुजलवाष्पवेगयुक्तया (नः) अस्माकम् (कशया) गत्या शिक्षया वा (मिमिक्षतम्) प्रापयितुमिच्छतम् (प्र) (आयुः) जीवनम् (तारिष्टम्) पारयतम् (निः) नितराम् (रपांसि) पापानि (मृक्षतम्) शोधयतम् (सेधतम्) दूरीकृतम् (द्वेषः) द्वेषयुक्तानि (भवतम्) (सचाभुवा) सहकारिणौ ॥ ४ ॥
भावार्थः
अध्यापकोपदेशकावीदृशीं शिक्षां कुर्यातां यतो वयं सर्वेषां सखायो भूत्वा पक्षपातजन्यानि पापानि विहाय सिद्धाभीष्टा भवेम ॥ ४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक ! (युवम्) तुम दोनों (मधुमत्या) बहुत जल वाष्पों के वेगों से युक्त (कशया) गति वा शिक्षा से (नः) हम लोगों के लिये (ऊर्जम्) पराक्रम की (आ, वहतम्) प्राप्ति करो, (मिमिक्षतम्) पराक्रम की प्राप्ति कराने की इच्छा (नः) हमारी (आयुः) उमर को (प्र, तारिष्टम्) अच्छे प्रकार पार पहुँचाओ, (द्वेषः) वैरभावयुक्त (रपांसि) पापों को (निः, सेधतम्) दूर करो, हम लोगों को (मृक्षतम्) शुद्ध करो और हमारे (सचाभुवा) सहकारी (भवतम्) होओ ॥ ४ ॥
भावार्थ
अध्यापक और उपदेशक लोग ऐसी शिक्षा करें कि जिससे हम लोग सबके मित्र होकर पक्षपात से उत्पन्न होनेवाले पापों को छोड़ अभीष्ट सिद्धि पानेवाले हों ॥ ४ ॥
विषय
शक्ति व माधुर्य
पदार्थ
१. हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (नः) = हमारे लिए (ऊर्जम्) = बल और प्राणशक्ति को (आवहतम्) = सर्वथा प्राप्त कराइए । उस बल के साथ (युवम्) = आप दोनों (नः) = हमें मधुमत्या (कशया) = अत्यन्त माधुर्यवाली वाणी से (मिमिक्षतम्) = सिक्त व प्रीणित करो। हममें शक्ति हो और हम सदा मधुरवाणी ही बोलें । २. (आयु:) = हमारे जीवन को आप (प्रतारिष्टम्) = खूब बढ़ा दीजिए और (रपांसि) = शरीरस्थ सब दोषों को (निर्मृक्षतम्) = नितरां नष्ट कर दीजिए। दोषों को दूर करके हमारे जीवन को नीरोग बनाइए। हमारे मन में से (द्वेष:) = द्वेषभाव को भी (सेधतम्) = नष्ट कर दीजिए और (सचाभुवा भवतम्) = हमारे जीवनों में मिलकर कार्य करनेवाले होओ। अपान दोषों को दूर करे और प्राण शक्ति का सञ्चार करे। इस प्रकार निर्मल व सबल बनकर हम अपनी जीवनयात्रा को उत्तमता से पूर्ण कर सकेंगे।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणापान हमें बल व माधुर्य दें। इनसे हमें दीर्घजीवन व नीरोगता प्राप्त हो। हम द्वेष से रहित हों ।
विषय
स्त्री पुरुषों के गृहस्थसम्बन्धी कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) विद्वान् स्त्री-पुरुषो ! अध्यापक उपदेशक, वा राज प्रजावर्गो ! आप दोनों ( नः ) हमें ( ऊर्जं वहतम् ) बल पराक्रम और उत्तम अन्न प्राप्त कराओ। और (युवं ) तुम दोनों (नः) हमें ( मधुमत्या कशया ) मधुर, विज्ञान युक्त वाणी से ( मिमिक्षतम् ) सेचन करो, उससे हमारे ज्ञान की वृद्धि करो । ( आयुः ) जीवन को ( प्र तारिष्टम् ) बहुत अधिक बढ़ा हमें दीर्घायु करो। ( रपांसि ) हमारे सब पापों को ( नि मृक्षतम् ) सब प्रकार से शुद्ध कर दूर करो। ( द्वेषः ) द्वेष के भावों को ( नि षेधतम् ) दूर करो और ( सचाभुवा ) सदा एक दूसरे के साथ सहयोगी होकर ( भवतम् ) रहो । (२) दिन और रात्रि काल के वयव और सूर्य चन्द्र अन्नोत्पादक हों, जल युक्त विद्युत् से वृष्टि करें, जीवनप्रद अन्न प्रदान करें, मल दुःख पीड़ा धो बहावें, अप्रीतिकर कष्टों को दूर करें, सदा सहयोगी रहें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमाः ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः– १ त्रिष्टुप् । ५ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । २, ४ जगती। ३ निचृज्जगती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
अध्यापक व उपदेशकांनी असे शिक्षण द्यावे, की ज्यामुळे आम्ही सर्वांचे मित्र बनून पक्षपातामुळे उत्पन्न होणाऱ्या पापाचा त्याग करावा व अभीष्ट सिद्धी प्राप्त करावी. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, leaders of light, come, bring us food and energy, accelerate the nation’s march with the spur of ambition and action. Take the health and age of the people over and across the heights. Rub off and wash away the sins. Ward off hate and enmity. Be our friends and helpers in every field.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Again in the praise of Ashvinau (2).
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O teachers and preachers ! bring us vigor, inspire us with your advice, prolong the span of our life, wipe away our sins, destroy all feelings of animosity and be always our companion.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The teachers and preachers should impart such good education, that we may become friendly to all, and by giving up all prejudice-based sins may accomplish our desires.
Foot Notes
(रपांसि ) पापानि = Sins. ( कशया ) गत्या शिक्षया= Movements or education.
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