ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 159/ मन्त्र 2
ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः
देवता - द्यावापृथिव्यौ
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
उ॒त म॑न्ये पि॒तुर॒द्रुहो॒ मनो॑ मा॒तुर्महि॒ स्वत॑व॒स्तद्धवी॑मभिः। सु॒रेत॑सा पि॒तरा॒ भूम॑ चक्रतुरु॒रु प्र॒जाया॑ अ॒मृतं॒ वरी॑मभिः ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । म॒न्ये॒ । पि॒तुः । अ॒द्रुहः॑ । मनः॑ । मा॒तुः । महि॑ । स्वऽत॑वः । तत् । हवी॑मऽभिः । सु॒ऽरेत॑सा । पि॒तरा॑ । भूम॑ । च॒क्र॒तुः॒ । उ॒रु । प्र॒ऽजायाः॑ । अ॒मृत॑म् । वरी॑मऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत मन्ये पितुरद्रुहो मनो मातुर्महि स्वतवस्तद्धवीमभिः। सुरेतसा पितरा भूम चक्रतुरुरु प्रजाया अमृतं वरीमभिः ॥
स्वर रहित पद पाठउत। मन्ये। पितुः। अद्रुहः। मनः। मातुः। महि। स्वऽतवः। तत्। हवीमऽभिः। सुऽरेतसा। पितरा। भूम। चक्रतुः। उरु। प्रऽजायाः। अमृतम्। वरीमऽभिः ॥ १.१५९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 159; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे मनुष्या अहमेकाकी हवीमभिर्यदद्रुहो मातुरुत पितुः स्वतवो महि मन उरु मन्ये तत् सुरेतसा पितरेव वर्त्तमानौ भूमिसूर्य्यौ वरीमभिः प्रजाया अमृतं भूम चक्रतुः ॥ २ ॥
पदार्थः
(उत) (मन्ये) विजानीयाम् (पितुः) जनकस्य (अद्रुहः) द्रोहरहितस्य (मनः) मननम् (मातुः) जनन्याः (महि) महत् (स्वतवः) स्वं स्वकीयं तवो बलं यस्मिँस्तत् (तत्) (हवीमभिः) स्तोतुमर्हैर्गुणैः (सुरेतसा) शोभनवीर्य्येण (पितरा) मातापितृवद्वर्त्तमाने (भूम) (चक्रतुः) कुरुतः (उरु) बहु (प्रजायाः) मनुष्यादिसृष्टये। अत्र चतुर्थ्यर्थे षष्ठी। (अमृतम्) अमृतमिव वर्त्तमानम् (वरीमभिः) स्वीकर्त्तुमर्हैः ॥ २ ॥
भावार्थः
यथा मातापितरावपत्यानि संरक्ष्य वर्द्धयतस्तथा भूमिसूर्य्यौ प्रजाभ्यः सुखमुन्नयतः ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! मैं अकेला (हवीमभिः) स्तुति करने योग्य गुणों के साथ जिस (अद्रुहः) द्रोहरहित (मातुः) माता (उत) और (पितुः) पिता के (स्वतवः) अपने बलवाले (महि) बड़े (मनः) मन को (उरु) बहुत (मन्ये) जानूँ (तत्) उसको (सुरेतसा) सुन्दर पराक्रमवाले (पितरा) माता-पिता के समान वर्त्तमान भूमि और सूर्य (वरीमभिः) स्वीकार करने योग्य गुणों से (प्रजायाः) मनुष्य आदि सृष्टि के लिये (अमृतम्) अमृत के समान वर्त्तमान (भूम) बड़ा उत्साहित (चक्रतुः) करते हैं अर्थात् शिल्पव्यवहारों से प्रोत्साहित करते, मलीन नहीं रहने देते हैं ॥ २ ॥
भावार्थ
जैसे माता-पिता लड़कों को अच्छे प्रकार पालन कर उनको बढ़ाते हैं, वैसे भूमि और सूर्य्य प्रजाजनों के लिये सुख की उन्नति करते हैं ॥ २ ॥
विषय
विशालता और अमृतत्व
पदार्थ
१. 'द्यौर्व: पिता पृथिवी माता' इस श्रुतिवाक्य के अनुसार द्युलोक पिता है और पृथिवी माता है। आराधक कहता है कि उत और (अद्रुहः पितुः) = किसी से द्रोह न करनेवाले मस्तिष्करूप द्युलोक के तथा (मातुः) = पृथिवीरूप माता के (मनः) = मन को मैं महि पूजा की वृत्तिवाला तथा (स्वतवः) = आत्मिक बलवाला [स्व-आत्मा, तवस्-बल] (मन्ये) = जानता हूँ । (तत्) = वह यह पूजा की वृत्ति तथा आत्मिक बलवाला मन (हवीमभिः) = प्रार्थनाओं से, प्रभु की आराधनाओं से बनता है। जिस समय मस्तिष्क व शरीर ठीक होते हैं उस समय मन भी उत्तम बनता ही है। उस समय मन में पूजा की वृत्ति उत्पन्न होती है और आत्मिक बल की स्थिति होती है। ऐसे मन को प्राप्त करने के लिए प्रभु का आराधन तो आवश्यक ही है, शरीर व मस्तिष्क को सुन्दर बनाना भी आवश्यक है। (सुरेतसा) = उत्तम रेतस् व शक्तिवाले (पितरा) = मस्तिष्क और शरीर (भूम चक्रतुः) = हृदय की विशालता को उत्पन्न करते हैं। निर्बल शरीर व कुण्ठित मस्तिष्क हृदय को संकुचित बनाते हैं। इस प्रकार ये मस्तिष्क व शरीररूप पिता व माता (वरीमभिः) = [breadth] हृदय की विशालताओं से (प्रजायाः) = प्रजा के (उरु) = विशाल (अमृतम्) = अमृतत्व को (चक्रतुः) = उत्पन्न करते हैं, अर्थात् विशालता के द्वारा इन्हें नष्ट होने से बचाते हैं। विशालता रक्षण करती है, संकोचविनाशक है
भावार्थ
भावार्थ- मस्तिष्क और शरीर के उत्तम होने पर हृदय विशाल बनता है और वह अमृतत्व को प्राप्त कराता है।
विषय
सूर्य और पृथिवीकृत दृष्टान्त से माता पिता, गुरुजनों के कर्त्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
( उत ) और मैं ( अद्रुहः ) द्रोह रहित ( पितुः ) पिता और ( मातुः ) माता के ( मनः ) मन को ( हवीमभिः ) स्तुति योग्य, और सबको अपनाने वाले स्नेहों से ( स्वतवः ) स्वयं बलवान् और ( महि ) अति पूज्य ( मन्ये ) मानता और जानता हूं । क्योंकि दोनों ( पितरा ) जगत् के पालक सूर्य और पृथ्वी जिस प्रकार ( सुरेतसा ) उत्तम तेज और जल से युक्त होकर ( प्रजायाः ऊरु अमृतं चक्रतुः ) प्रजा के लिये बहुत अन्न और जीवन उत्पन्न करते हैं उसी प्रकार दोनों ( पितरा ) प्रजा सन्तानों के पालक माता पिता ( सुरेतसा ) उत्तम वीर्यवान् होकर ( वरीमभिः ) श्रेष्ठ श्रेष्ठ उपायों से (प्रजायाः) स्वसन्तानों के लिये ( भूम ) बहुत अधिक ( अमृतं ) जीवन अन्नादि ( चक्रतुः ) उत्पन्न और प्रदान करें। इसी प्रकार गुरुजन ( सुरेतसा ) उत्तम वीर्यवान् ब्रह्मचारी स्वशिष्यों के ( भूम अमृतम् ) भूमा स्वरूप अमृतमय ब्रह्म ज्ञान उत्तम उपायों से प्रदान करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमा ऋषिः ॥ द्यावापृथिव्यौ देवते ॥ छन्दः- १ विराट् जगती । २, ३, ५ निचृज्जगती । ४ जगती च ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसे माता-पिता मुलांचे चांगल्या प्रकारे पालन करून त्यांना वाढवितात तसे भूमी व सूर्य प्रजेचे सुख वाढवितात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And with holy invocations in yajna, I study, investigate and meditate on the great and innate power and intelligence of my father and mother the sun and the earth, both free from hate and full of love for all. Both father and mother of the world, overflowing with life and virility, create and augment the great and universal nectar wealth of humanity with their expansive and abundant generosity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Sun and earth move for the human welfare.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The mind of my benevolent father is free from all malice and so is that of my mother. On account of many admirable virtues my parents carry weight. 1 regard both of them as great. The sun and the earth are like our father and mother. With their greatness and force, they have made our mind like the nectar. Their acceptable attributes are designed for the welfare of all creatures.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the parents protect their children and enable them to develop their powers, likewise the sun and the earth augment the happiness of all creatures.
Foot Notes
(हवीमभिः) स्तोतुमर्हे गुणैः = With admirable virtues. (वरीमभिः) स्वीकर्तुमर्हैः = With acceptable attributes.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal