ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 165/ मन्त्र 1
कया॑ शु॒भा सव॑यस॒: सनी॑ळाः समा॒न्या म॒रुत॒: सं मि॑मिक्षुः। कया॑ म॒ती कुत॒ एता॑स ए॒तेऽर्च॑न्ति॒ शुष्मं॒ वृष॑णो वसू॒या ॥
स्वर सहित पद पाठकया॑ । शु॒भा । सऽव॑यसः । सऽनी॑ळाः । स॒मा॒न्या । म॒रुतः॑ । सम् । मि॒मि॒क्षुः॒ । कया॑ । म॒ती । कुतः॑ । आऽइ॑तासः । ए॒ते । अर्च॑न्ति । शुष्म॑म् । वृष॑णः । व॒सु॒ऽया ॥
स्वर रहित मन्त्र
कया शुभा सवयस: सनीळाः समान्या मरुत: सं मिमिक्षुः। कया मती कुत एतास एतेऽर्चन्ति शुष्मं वृषणो वसूया ॥
स्वर रहित पद पाठकया। शुभा। सऽवयसः। सऽनीळाः। समान्या। मरुतः। सम्। मिमिक्षुः। कया। मती। कुतः। आऽइतासः। एते। अर्चन्ति। शुष्मम्। वृषणः। वसुऽया ॥ १.१६५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 165; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्गुणानाह ।
अन्वयः
हे मनुष्याः सवयसः सनीळा मरुतो विद्वांसः कया समान्या शुभा संमिमिक्षुः। एतासो वृषण एते वसूया मती कुतः शुष्ममर्चन्ति ॥ १ ॥
पदार्थः
(कया) (शुभा) शुभगुणकर्मणा (सवयसः) समानं वयो येषान्ते (सनीळाः) समीपस्थाः (समान्या) तुल्यया क्रियया (मरुतः) वायव इव वर्त्तमानाः (सम्) (मिमिक्षुः) सिञ्चन्ति (कया) (मती) मत्या (कुतः) (एतासः) समन्तात् प्राप्ताः (एते) (अर्चन्ति) प्राप्नुवन्ति (शुष्मस्) बलम् (वृषणः) वर्षितारः (वसूया) आत्मनो वसूनां धनानामिच्छया ॥ १ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। (प्रश्नः) यथा वायवो वर्षाः कृत्वा सर्वान् तर्पयन्ति तथा विद्वांसो रागद्वेषरहितया धर्म्यया कया क्रियया जनानुन्नयेयुः। केन विज्ञानेन सत्क्रियया च सर्वान् सत्कुर्युः। आप्तरीत्या वेदोक्तयेत्युत्तरम् ॥ १ ॥
हिन्दी (1)
विषय
अब पन्द्रह ऋचावाले एकसौ पैंसठवें सूक्त का आरम्भ है। उसमें आदि से विद्वानों के गुणों को कहते हैं ।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (सवयसः) समान अवस्थावाले (सनीळाः) समीपस्थ (मरुतः) पवनों के समान वर्त्तमान विद्वान् जन (कया) किस (समान्या) तुल्य क्रिया के साथ (शुभा) शुभ गुण, कर्म से (संमिमिक्षुः) अच्छे प्रकार सेचनादि कर्म करते हैं तथा (एतासः) अच्छे प्रकार प्राप्त हुए (वृषणः) वर्षनेवाले (एते) ये (वसूया) अपने को धनों की इच्छा के साथ (क्या) किस (मती) मति से (कुतः) कहाँ से (शुष्मम्) बल को (अर्चन्ति) प्राप्त होते हैं ॥ १ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। (प्रश्न) जैसे पवन वर्षा कर सबको तृप्त करते हैं, वैसे विद्वान् जन भी रागद्वेषरहित धर्मयुक्त किस क्रिया से जनों की उन्नति करावें और किस विज्ञान वा अच्छी क्रिया से सबका सत्कार करें। इस विषय में उत्तर यही है कि आप्त सज्जनों की रीति और वेदोक्त क्रिया से उक्त कार्य करें ॥ १ ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. (प्रश्न) जसा वायू वृष्टी करून सर्वांना तृप्त करतो तसे विद्वानांनीही रागद्वेषरहित धर्मयुक्त अशा कोणत्या क्रियांनी लोकांची उन्नती करावी? व कोणत्या विज्ञानाने व चांगल्या क्रियेने सर्वांचा सत्कार करावा? याचे उत्तर असे की, आप्त सज्जनांच्या रीतीने वेदोक्त क्रिया करून वरील कार्य करावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
With what noble and equal action do the Maruts, divine complementary energies, kindred powers of equal age and home, join together, mix the yajna materials for oblations and shower the earth with rain and fragrance? With what thought and intelligence, and coming from where do they, generous powers anxious for the wealth of life, value and refine strength and competence for the realisation of wealth?
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