ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 167/ मन्त्र 3
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रो मरुच्च
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
मि॒म्यक्ष॒ येषु॒ सुधि॑ता घृ॒ताची॒ हिर॑ण्यनिर्णि॒गुप॑रा॒ न ऋ॒ष्टिः। गुहा॒ चर॑न्ती॒ मनु॑षो॒ न योषा॑ स॒भाव॑ती विद॒थ्ये॑व॒ सं वाक् ॥
स्वर सहित पद पाठमि॒म्यक्ष॑ । येषु॑ । सुऽधि॑ता । घृ॒ताची॑ । हिर॑ण्यऽनिर्निक् । उप॑रा । न । ऋ॒ष्टिः । गुहा॑ । चर॑न्ती । मनु॑षः । न । योषा॑ । स॒भाऽव॑ती । वि॒द॒थ्या॑ऽइव । सम् । वाक् ॥
स्वर रहित मन्त्र
मिम्यक्ष येषु सुधिता घृताची हिरण्यनिर्णिगुपरा न ऋष्टिः। गुहा चरन्ती मनुषो न योषा सभावती विदथ्येव सं वाक् ॥
स्वर रहित पद पाठमिम्यक्ष। येषु। सुऽधिता। घृताची। हिरण्यऽनिर्निक्। उपरा। न। ऋष्टिः। गुहा। चरन्ती। मनुषः। न। योषा। सभाऽवती। विदथ्याऽइव। सम्। वाक् ॥ १.१६७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 167; मन्त्र » 3
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे विद्वन् त्वं येषु घृताचीव सुधिता उपरा न ऋष्टिर्हिरण्यनिर्णिग्गुहा चरन्ती मनुषो योषा न विदथ्येव सभावती वागस्ति तां सं मिम्यक्ष ॥ ३ ॥
पदार्थः
(मिम्यक्ष) प्राप्नुहि (येषु) (सुधिता) सुष्ठु धृता (घृताची) या घृतमुदकमञ्चति सा रात्री। घृताचीति रात्रिना०। निघं० १। ७। (हिरण्यनिर्णिक्) या हिरण्येन निर्णेनेक्ति पुष्णाति सा (उपरा) उपरिस्था दिक्। उपरा इति दिङ्ना०। निघं० १। ६। (न) इव (ऋष्टिः) प्रापिका (गुहा) गुहायाम् (चरन्ती) गच्छन्ती (मनुषः) मनुषस्य (न) इव (योषा) (सभावती) सभासम्बन्धी (विदथ्येव) विदथेषु संग्रामेषु विज्ञानेषु भवेव (सम्) (वाक्) वाणी ॥ ३ ॥
भावार्थः
अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये मनुष्याः सत्याऽसत्यनिर्णयाय सर्वशुभगुणकर्मस्वभावां विद्यासुशिक्षायुक्तामाप्तवाणीं प्राप्नुवन्ति ते बह्वैश्वर्याः सन्तो दिक्षु सुकीर्त्तयो भवन्ति ॥ ३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे विद्वान् ! आप (येषु) जिनमें (घृताची) जल को शीतलता से छोड़नेवाली रात्रि के समान वा (सुधिता) अच्छे प्रकार धारण की हुई (उपरा) ऊपरली दिशा के (न) समान वा (ऋष्टिः) प्रत्येक पदार्थ को प्राप्त करानेवाली (हिरण्यनिर्णिक्) जो सुवर्ण से पुष्टि होती और (गुहा, चरन्ती) गुप्त स्थलों में विचरती हुई (मनुषः) मनुष्य की (योषा) स्त्री (न) उसके समान वा (विदथ्येव) संग्राम वा विज्ञानों में हुई क्रिया आदि के समान (सभावती) सभा सम्बन्धिनी (वाक्) वाणी है उसको (सम्, मिम्यक्ष) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥ ३ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य सत्य-असत्य के निर्णय के लिये सब शुभ, गुण, कर्म स्वभाववाली विद्या सुशिक्षायुक्त शास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वानों की वाणी को प्राप्त होते हैं, वे बहुत ऐश्वर्यवान् होते हुए दिशाओं में सुन्दर कीर्त्ति को प्राप्त होते हैं ॥ ३ ॥
विषय
घोर अन्धकार में प्रकाश
पदार्थ
१. प्राणसाधक वे हैं (येषु) = जिनमें (सुधिता) = सृष्टि के आरम्भ में अग्नि आदि ऋषियों के हृदय में धारण की गई (घृताची) = मलों का क्षरण व ज्ञानदीप्ति को प्राप्त करानेवाली [घृत+अञ्च], (हिरण्यनिर्णिक्) = हितरमणीय रूपवाली [निर्णिक रूप] वेदवाणी (मिम्यक्ष) = संगत होती है [म्यक्षति: गतिकर्मा], अर्थात् इन्हें यह वेदवाणी प्राप्त होती है। यह वेदवाणी इन्हें इस प्रकार प्राप्त होती है (न) = जैसे (उपरा ऋष्टि:) = मेघमाला में होनेवाली विद्युत् । मेघ और विद्युत् के संग की भाँति इन प्राणसाधकों व ज्ञान की वाणियों का संग होता है। घने नील वर्णवाली मेघमाला व विद्युत् की उपमा इसलिए दी गई है कि जीवन के अत्यन्त अन्धकारमय प्रसंग में यह ज्ञान की वाणी विद्युत् की भाँति प्रकाश करनेवाली होती है। २. यह ज्ञान की वाणी (गुहा चरन्ती) = हृदयरूप गुफा में विचरण करती हुई (मनुषः न योषा) = मनुष्य की पत्नी के समान होती है। जैसे पत्नी पति की पूरिका होती है, वैसे ही यह मनुष्य की पूर्णता का कारण बनती है। ३. (सभावती) = सभावाली यह ज्ञानवाणी अर्थात् सभाओं में उच्चारण की जाती हुई यह वाणी (विदथ्या संवाक् इव) = ज्ञान व यज्ञों में उत्तम वाणी के समान होती है। यह ज्ञान को बढ़ानेवाली व यज्ञों का प्रतिपादन करनेवाली होती है ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधकों में उस ज्ञान की वाणी का सम्पर्क होता है जो [क] घोर अन्धकार में प्रकाश देनेवाली है, [ख] जो कमियों को दूर करके जीवन को पूरण करती है तथा [ग] ज्ञान व यज्ञों का वर्धन करनेवाली होती है।
विषय
पत्नीवत् वाणी से सुशोभित विद्वानों का आदर ।
भावार्थ
जिस प्रकार वायुओं में ( घृताची ) जल लाने वाली या जल में प्रकट होने वाली, ( सुधिता ) उत्तम रूप से विद्यमान्, ( हिरण्यनिर्णिक् ) सुवर्ण के समान चमकने वाली, ( उपरा ) मेघ माला ( ऋष्टिः न ) चलकती तलवार के समान चमकती है और जिन वायुओं में ( सभावती मनुषः योषा न ) समान कान्ति वाली मनुष्य की स्त्री के समान ( गुहा चरन्ती ) अन्तरिक्ष रूप गुफा ( गृह ) में विचरने वाली ( वाक् ) शब्द करने वाली मध्यमा वाक् विद्युत् आश्रित है उसी प्रकार ( येषु ) जिन विद्वानों में ( घृताची ) प्रकाश युक्त, या गुरु मुख से शिष्य के पास बह आने वाली या शिष्य के प्रति अर्थों की प्रकाशक, ज्ञानको प्राप्त कराने वाली ( सु-धिता ) उत्तम सुख पूर्वक धारण की गयी, सु-अभ्यस्त, ( हिरण्यनिर्णिक् ) हित और रमणीय ज्ञान से शिष्यों के ज्ञानसामर्थ्य को बढ़ाने वाली, या सुवर्ण के समान अत्यन्त निर्मल, ( उपरा ) सबको प्राप्त होकर रमण कराने वाली, सर्वोपरि, ऊच्च ( ऋष्टिः ) पुरुषार्थों को प्राप्त कराने वाली, ( मनुषः ) मनुष्य की ( सभावती योषा न ) सभा में एक साथ बैठने वाली प्रियतमा स्त्री के समान ( सभावती ) धर्मसभा आदि सभाओं को धारण करने वाली, ( गुहा चरन्ती ) हृदय में या बुद्धि के आश्रय होकर विचार पूर्वक मुख से निकलने वाली ( विदथ्या ) ज्ञान देने में श्रेष्ठ ( वाक् ) वाणी ( सं मिम्यक्ष ) अच्छी प्रकार निवास करती है वे विद्वान् जन हमारे आदर के पात्र हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्तय ऋषिः ॥ इन्द्रो मरुच्च देवता । छन्दः - १, ४, ५, भुरिक् पङ्क्तिः । ७, स्वराट् पङ्क्तिः । १० निचृत् पङ्क्तिः ११ पङ्क्तिः । २, ३, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जी माणसे सत्य-असत्याच्या निर्णयासाठी सर्व शुभ, गुण, स्वभावाची विद्या, सुशिक्षणयुक्त शास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वानांच्या वाणींना प्राप्त करतात, ते ऐश्वर्यवान होतात व त्यांची दिगदिगंतरी कीर्ती होते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Seeker of knowledge, go and mix with those scholars and visionaries among whom exists that noble and comprehensive language which is fit for scientific yajnas of versatile purpose, which is fit for use in councils of governance, which is peacefully held like the dewy night by the sky, which is held like a golden sword by the warrior, which is held like lightning by the cloud, and which, like the youthful maiden of the human lover, moves in covert allays in search of the lover. (Such is living speech.)
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The learned persons are adored.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! you approach those scholars who speak in a cultural and intelligent way. Their words or sermons lead men to progress and usher light in their conscience. In fact, it accomplishes good purposes, and is like a noble man's wife who is well aware of her homes' ins and outs and also attends the assemblies.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons who use for distinguishing truth from untruth and the speech uttered by absolutely truthful men, full of all good merits and actions and endowed with wisdom and knowledge, become prosperous and renowned or glorious.
Foot Notes
(घृताची) या घुतम् उदकम् अञ्चति सा, रानी । घृताचीति रात्रि नाम (NG_1.7) = Dew shedding night. (ॠष्टि:) प्रापिका: = Accomplisher of various purposes. (विदथ्येव) विदथेषु-विज्ञानेषु भवा इव = Like one full of knowledge.
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