Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 174 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 174/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    त्वं धुनि॑रिन्द्र॒ धुनि॑मतीर्ऋ॒णोर॒पः सी॒रा न स्रव॑न्तीः। प्र यत्स॑मु॒द्रमति॑ शूर॒ पर्षि॑ पा॒रया॑ तु॒र्वशं॒ यदुं॑ स्व॒स्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । धुनिः॑ । इ॒न्द्र॒ । धुनि॑ऽमतीः । ऋ॒णोः । अ॒पः । सी॒राः । न । स्रव॑न्तीः । प्र । यत् । स॒मु॒द्रम् । अति॑ । शू॒र॒ । पर्षि॑ । पा॒रय॑ । तु॒र्वश॑म् । यदु॑म् । स्व॒स्ति ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं धुनिरिन्द्र धुनिमतीर्ऋणोरपः सीरा न स्रवन्तीः। प्र यत्समुद्रमति शूर पर्षि पारया तुर्वशं यदुं स्वस्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। धुनिः। इन्द्र। धुनिऽमतीः। ऋणोः। अपः। सीराः। न। स्रवन्तीः। प्र। यत्। समुद्रम्। अति। शूर। पर्षि। पारय। तुर्वशम्। यदुम्। स्वस्ति ॥ १.१७४.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 174; मन्त्र » 9
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्रकारान्तरेण राजधर्मविषयमाह ।

    अन्वयः

    हे इन्द्र धुनिस्त्वं विद्युदग्निर्धुनिमतीरपः स्रवन्तीः सीरा न प्रजाः प्रार्णोः। हे शूर यद्यस्त्वं समुद्रमति पर्षि स यदुन्तुर्वशं स्वस्ति पारय ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (त्वम्) (धुनिः) कम्पकः (इन्द्र) सूर्य्यवद्वर्त्तमान (धुनिमतीः) कम्पयुक्ताः (ऋणोः) प्राप्नुयाः (अपः) जलानि (सीराः) नाडीः (न) इव (स्रवन्तीः) गच्छन्तीः (प्र) (यत्) यः (समुद्रम्) (अति) (शूर) शत्रुहिंसक (पर्षि) सिक्तमुदकम् (पारय) तीरे प्रापय। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (तुर्वशम्) यस्तूर्णकारी वशंगतस्तं मनुष्यम् (यदुम्) यत्नशीलम् (स्वस्ति) सुखम् ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा शरीरस्था विद्युन्नाडीषु रुधिरं गमयति सूर्यो जलं च जगति प्रापयति तथा प्रजासु सुखं गमयेद्दुष्टान् कम्पयेत् ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब प्रकारान्तर से राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सूर्य के समान वर्त्तमान (धुनिः) शत्रुओं को कंपानेवाले ! (त्वम्) आप बिजुलीरूप सूर्यमण्डलस्थ अग्नि जैसे (धुनिमतीः) कंपते हुए (अपः) जलों को वा बिजुलीरूप जठराग्नि जैसे (स्रवतीः) चलती हुई (सीराः) नाड़ियों को (न) वैसे प्रजाजनों को (प्राणोः) प्राप्त हूजिये। हे (शूर) शत्रुओं की हिंसा करनेवाले ! (यत्) जो आप (समुद्रम्) समुद्र को (अति, पर्षि) अतिक्रमण करने उतरि के पार पहुँचते हो सो (यदुम्) यत्नशील और (तुर्वशम्) जो शीघ्र कार्यकर्त्ता अपने वश को प्राप्त हुआ उस जन को (स्वस्ति) कल्याण जैसे हो वैसे (पारय) समुद्रादि नद के एक तट से दूसरे तट को झटपट पहुँचवाइये ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे शरीरस्थ बिजुलीरूप अग्नि नाड़ियों में रुधिर को पहुँचाती है और सूर्यमण्डल जल को जगत् में पहुँचाता है, वैसे प्रजाओं में सुख को प्राप्त करावें और दुष्टों को कंपावें ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा शरीरातील विद्युतरूपी अग्नी नाड्यांमध्ये रक्त पोहोचवितो व सूर्यमंडल जगात जल पसरविते तसे प्रजेमध्ये सुख प्रसृत करावे आणि दुष्टांना भयभीत करावे. ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of life and energy, you are a mover and shaker like the inspiration of soma and the speed of winds, shaking people out of lethargy and complacency. You set the waters aflow, shaking and overflowing the banks. Reach the people like roaring streams or like life-blood circulating through the veins of wealth and work. And, O lord of might and knowledge, if you swell the sea to the shores like the sun, then help the man of endeavour and the man of self-controlled speed and acceleration to cross the sea from shore to shore.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top