ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 191/ मन्त्र 2
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - अबोषधिसूर्याः
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
अ॒दृष्टा॑न्हन्त्याय॒त्यथो॑ हन्ति पराय॒ती। अथो॑ अवघ्न॒ती ह॒न्त्यथो॑ पिनष्टि पिंष॒ती ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒दृष्टा॑न् । ह॒न्ति॒ । आ॒ऽय॒ती । अथो॒ इति॑ । ह॒न्ति॒ । प॒रा॒ऽय॒ती । अथो॒ इति॑ । अ॒व॒ऽघ्न॒ती । ह॒न्ति॒ । अथो॒ इति॑ । पि॒न॒ष्टि॒ । पिं॒ष॒ती ॥
स्वर रहित मन्त्र
अदृष्टान्हन्त्यायत्यथो हन्ति परायती। अथो अवघ्नती हन्त्यथो पिनष्टि पिंषती ॥
स्वर रहित पद पाठअदृष्टान्। हन्ति। आऽयती। अथो इति। हन्ति। पराऽयती। अथो इति। अवऽघ्नती। हन्ति। अथो इति। पिनष्टि। पिंषती ॥ १.१९१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 191; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
आयत्योषधिरदृष्टान् हन्ति। अथो परायती हन्ति। अथोऽवघ्नती हन्ति। अथोऽपिंषत्योषधी पिनष्टि ॥ २ ॥
पदार्थः
(अदृष्टान्) दृष्टिपथमनागतान् (हन्ति) नाशयति (आयती) समन्तात्प्राप्यमाणौषधी (अथो) (हन्ति) दूरी करोति (परायती) परागच्छन्ती (अथो) (अवघ्नती) अत्यन्तं दुःखयन्ती (हन्ति) (अथो) (पिनष्टि) सङ्घर्षति (पिंषती) पेषणं कुर्वन्ती ॥ २ ॥
भावार्थः
ये आगतनागतानागन्तुकांश्च विषधारिणः पूर्वापरौषधिदानेन निवर्तयन्ति ते विषधारिणां विषैर्नावगाह्यन्ते ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
(आयती) अच्छे प्रकार प्राप्त हुई औषधी (अदृष्टान्) अदृष्ट विषधारी जीवों को (हन्ति) नष्ट करती (अथो) इसके अनन्तर (परायती) पीछे प्राप्त हुई ओषधी (हन्ति) विषधारियों को दूर करती है (अथो) इसके अनन्तर (अवघ्नती) अत्यन्त दुःख देती हुई ओषधि (हन्ति) विषधारियों को नष्ट करती (अथो) इसके अनन्तर (पिंषती) पीई जाती हुई ओषधि (पिनष्टि) विषधारियों को पीषती है ॥ २ ॥
भावार्थ
जो आये, न आये वा आनेवाले विषधारियों को अगली-पिछली ओषधियों के देने से निवृत्त कराते हैं, वे विषधारियों के विषों से नहीं पीड़ित होते हैं ॥ २ ॥
विषय
चतुर्विध प्रयोग
पदार्थ
१. (आयती) = विषघ्नी ओषधि विषदष्ट के समीप आती हुई (अदृष्टान्) = अदृश्यमान विषधरों को (हन्ति) = नष्ट करती है (अथो) = और (परायती) = दूर जाती हुई भी अपनी मादकता से (हन्ति) = उन विषधरों का नाश करती है। २. (अथ उ) = और अब (अवघ्नती) = कूटी जाती वह ओषधि (हन्ति) = गन्ध द्वारा विष प्रभाव को नष्ट करती है (अथो) = और (पिंषती) = पीसी जाती हुई यह ओषधि (पिनष्टि) = उन विषधरों को मानो पीस ही डालती है ।
भावार्थ
भावार्थ –'आयती, परायती, अवघ्नती, पिंषती' शब्दों से विषघ्नी ओषधि के विविध प्रकारों से प्रयोग का उल्लेख है।
विषय
विषनाशक ओषधियां ।
भावार्थ
विषनाशक ओषधि कई प्रकार की होती है, कई प्रकार के गुण रखती है। जैसे ओषधि ( आयती ) समीप आती हुई ( अदृष्टान् ) न दीखने वाले विष जन्तुओं को ( हन्ति ) नाश कर देती है । ( अथो ) और (परायती) दूर जाती हुई भी वह ( हन्ति ) अपने पूर्व प्रभाव या मादकता से उनका नाश कर देती है । ( अथो ) और वह उनको ( अवघ्नती हन्ति ) ऐसे मारती है जैसे मानो कूट कूट कर आघात करती हैं। वे उसके प्रभाव से तड़प २ कर मरते हैं । अथवा औषधि (अवघ्नती) कूटी जाती हुई भी अपने उग्र गन्धों से विषैले जन्तुओं को ( हन्ति ) नाश कर देती है और ( पिंशती ) पीसी जाकर, और भी सूक्ष्म होकर वह ( पिनष्टि ) विष जन्तु को मानो पीस डालती है । उनका सर्वथा नाश कर देती है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ अबोषधिसूर्या देवताः॥ छन्द:– १ उष्णिक् । २ भुरिगुष्णिक्। ३, ७ स्वराडुष्णिक्। १३ विराडुष्णिक्। ४, ९, १४ विराडनुष्टुप्। ५, ८, १५ निचृदनुष्टुप् । ६ अनुष्टुप् । १०, ११ निचृत् ब्राह्मनुष्टुप् । १२ विराड् ब्राह्म्यनुष्टुप । १६ भुरिगनुष्टुप् ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे दृष्ट व अदृष्ट तसेच आगन्तुक विषधाऱ्यांना जुनी नवी औषधी देऊन नष्ट करतात ते विषधाऱ्यापासून पीडित होत नाहीत. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
One medicine immediately starts destroying the poison as it is taken. Another destroys the poison while its activity seems to be subsiding. Yet another destroys it when its effect is extremely strong. And yet another reduces and destroys it when it is completely assimilated.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
One should be careful about the poisonous creatures.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The antidote in the case of bitten person counteracts the effect of venomous insects and creatures. It though causing pain in the beginning, destroys the venomous creatures, and insects with its odor and spray of powders.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons who use proper antidotes (remedial drugs) for the removal of the poison caused by poisonous creatures, are not troubled by them.
Foot Notes
(अवध्नती) प्रत्यन्तं दुःखयन्ती = Causing much pain for some time. (आयन्ती ) समन्तात् प्राप्यमाणा ओषधी = The antidote curing urgently.
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