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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 191 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 191/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - अबोषधिसूर्याः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    नि गावो॑ गो॒ष्ठे अ॑सद॒न्नि मृ॒गासो॑ अविक्षत। नि के॒तवो॒ जना॑नां॒ न्य१॒॑दृष्टा॑ अलिप्सत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि । गावः॑ । गो॒ऽस्थे । अ॒स॒द॒न् । नि । मृ॒गासः॑ । अ॒वि॒क्ष॒त॒ । नि । के॒तवः॑ । जना॑नाम् । नि । अ॒दृष्टाः॑ । अ॒लि॒प्स॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नि गावो गोष्ठे असदन्नि मृगासो अविक्षत। नि केतवो जनानां न्य१दृष्टा अलिप्सत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि। गावः। गोऽस्थे। असदन्। नि। मृगासः। अविक्षत। नि। केतवः। जनानाम्। नि। अदृष्टाः। अलिप्सत ॥ १.१९१.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 191; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    यथा गोष्ठे गावो न्यसदन् वने मृगासो न्यविक्षत जनानां केतवो न्यविक्षत तथा अदृष्टा न्यलिप्सत ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (नि) नितराम् (गावः) धेनवः (गोष्ठे) गावस्तिष्ठन्ति यस्मिंस्तस्मिन् स्थाने (असदन्) सीदन्ति (नि) (मृगासः) श्वापदादयः (अविक्षत) प्रविशन्ति (नि) (केतवः) ज्ञानानि (जनानाम्) मनुष्याणाम् (नि) (अदृष्टाः) दृष्टिपथमनागता विषधरा विषा वा (अलिप्सत) ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा नानाप्रकारा जीवा निजनिजसुखसंभोगस्थानं प्रविशन्ति तथा विषधरा जीवाश्च यत्र-कुत्र प्राप्तस्थानं प्रविशन्ति ॥ ४ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जैसे (गोष्ठे) गोशाला वा गोहरे में (गावः) गौयें (न्यसदन्) स्थित होतीं वा वन में (मृगासः) भेड़िया, हरिण आदि जीव (न्यविक्षत) निरन्तर प्रवेश करते वा (जनानाम्) मनुष्यों के (केतवः) ज्ञान, बुद्धि, स्मृति आदि (नि) निवेश कर जातीं अर्थात् कार्य्यों में प्रवेश कर जातीं वैसे (अदृष्टाः) जो दृष्टिगोचर नहीं होते वे छिपे हुए विषधारी जीव वा विषधारी जन्तुओं के विष (नि, अलिप्सत) प्राणियों को मिल जाते हैं ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे नाना प्रकार के जीव निज-निज सुख-संभोग के स्थान को प्रवेश करते हैं, वैसे विषधर जीव जहाँ-तहाँ पाये हुए स्थान को प्रवेश करते हैं ॥ ४ ॥

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    विषय

    छिपकर रहनेवाले कृमि

    पदार्थ

    १. (गावः) = गौएँ (गोष्ठे) = गोशाला में (नि असदन्) = शान्तभाव से आसीन होती हैं। (मृगास:) = मृग आदि वन्यपशु (नि अविक्षत) = अपने-अपने बिल में घुसे रहते हैं (जनानाम्) = लोगों के (केतवः) = प्रज्ञान (नि) = नीचे अर्थात् नम्रतावाले होते हैं अथवा नम्र पुरुषों में ज्ञानों का निवास होता है । २. इसी प्रकार (अदृष्टाः) = ये अदृष्ट विषधर प्राणी भी (नि अलिप्सत) = हमारे अङ्गों को विषलिप्त करनेवाले होते

    भावार्थ

    भावार्थ – अपने-अपने स्थानों में छिपे हुए विषधर जीव हमें काटकर हमारे अङ्गों को विष-व्याप्त करनेवाले होते हैं ।

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    विषय

    विषैले जीवों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( गावः ) गौएं जिस प्रकार ( गोष्ठे ) गोशाला में ( नि असदन् ) शान्त होकर खड़ी रहती हैं । ( मृगासः ) हिंसक जन्तु जिस प्रकार वन में ( नि अविक्षत ) छुपे २ घुसे रहते हैं ( केतवः जनानां ) जिस प्रकार मनुष्यों के बीच में ज्ञान या ज्ञानी पुरुष शान्त भाव से रहते हैं उसी प्रकार विषैले जीव भी अपने २ स्वभाव अनुसार ( अदृष्टाः ) छुपे रहकर ( नि अलिप्सत ) पड़े रहते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः॥ अबोषधिसूर्या देवताः॥ छन्द:– १ उष्णिक् । २ भुरिगुष्णिक्। ३, ७ स्वराडुष्णिक्। १३ विराडुष्णिक्। ४, ९, १४ विराडनुष्टुप्। ५, ८, १५ निचृदनुष्टुप् । ६ अनुष्टुप् । १०, ११ निचृत् ब्राह्मनुष्टुप् । १२ विराड् ब्राह्म्यनुष्टुप । १६ भुरिगनुष्टुप् ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे नाना प्रकारचे जीव आपापल्या सुखाच्या स्थानी प्रवेश करतात तसे विषधर जीव आयत्या प्राप्त झालेल्या (बिळात) स्थानी प्रवेश करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Where the cows sit in the stalls or the forest beasts sit or hide in their habitat or humans live in the homes, and even in the brain and sense organs, the seeds of poison lurk and cluster unseen.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    One should be cautions about the poisonous creatures.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    As the cows lie down in their sheds; as the wild beasts live in the forests as the knowledge resides within the scholars, same way these invisible subtle venomous creatures lie somewhere and anoint men with pain.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As various living beings take shelter in suitable habitat for their safety, in the same manner the poisonous creatures take shelter congenial to them.

    Foot Notes

    (केतवः) ज्ञानानि = Knowledge of various kinds.

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