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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 191 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 191/ मन्त्र 6
    ऋषि: - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - अबोषधिसूर्याः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    द्यौर्व॑: पि॒ता पृ॑थि॒वी मा॒ता सोमो॒ भ्रातादि॑ति॒: स्वसा॑। अदृ॑ष्टा॒ विश्व॑दृष्टा॒स्तिष्ठ॑ते॒लय॑ता॒ सु क॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौः । वः॒ । पि॒ता । पृ॒थि॒वी । मा॒ता । सोमः॑ । भ्राता॑ । अदि॑तिः । स्वसा॑ । अदृ॑ष्टाः । विश्व॑ऽदृश्टाः । तिष्ठ॑त । इ॒लय॑त । सु । क॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौर्व: पिता पृथिवी माता सोमो भ्रातादिति: स्वसा। अदृष्टा विश्वदृष्टास्तिष्ठतेलयता सु कम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौः। वः। पिता। पृथिवी। माता। सोमः। भ्राता। अदितिः। स्वसा। अदृष्टाः। विश्वऽदृष्टाः। तिष्ठत। इलयत। सु। कम् ॥ १.१९१.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 191; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे अदृष्टा विश्वदृष्टा येषां द्यौर्वः पिता पृथिवी माता सोमो भ्राताऽदितिः स्वसाऽस्ति ते यूयं सु कं तिष्ठत स्वस्थानमिलयत च ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (द्यौः) सूर्यइव (वः) युष्माकम् (पिता) (पृथिवी) अवनिरिव (माता) (सोमः) चन्द्रइव (भ्राता) (अदितिः) अदितिरदीना देवमाता । निरु० ४। २२। (स्वसा) भगिनी (अदृष्टाः) ये न दृश्यन्ते ते (विश्वदृष्टाः) विश्वैस्सर्वैर्दृष्टा ये ते (तिष्ठत) स्थिरा भवत (इलयत) गच्छत। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (सु) (कम्) सुखम् ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विषधारिणो जीवास्ते संशमनाद्युपायैर्निवारणीया औषध्यादिभिर्विषास्संवारणीयाः ॥ ६ ॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (अदृष्टाः) दृष्टिगोचर न होनेवाले और (विश्वदृष्टाः) सबके देखे हुए विषधारियो ! जिनका (द्यौः) सूर्य के समान सन्ताप करनेवाला (वः) तुम्हारा (पिता) पिता (पृथिवी) पृथिवी के समान (माता) माता (सोमः) चन्द्रमा के समान (भ्राता) भ्राता और (अदितिः) विद्वानों की अदीन माता के समान (स्वसा) बहिन है वे तुम (सु, कम्) उत्तम सुख जैसे हो (तिष्ठत) ठहरो और अपने स्थान को (इलयत) जावो ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विषधारी प्राणी हैं, वे शान्त्यादि उपायों से ओर ओषध्यादिकों से विषनिवारण करने चाहियें ॥ ६ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विषधारी प्राणी आहेत त्यांच्या विष शमनासाठी शांतीचे उपाय व औषधी वगैरे उपायांनी निवारण केले पाहिजे. ॥ ६ ॥

    English (1)

    Meaning

    O seeds, parasites, insects and other carriers of poison such as bacteria and viruses, the heaven of light is your father, creator, the earth is your mother, feeder, soma is your brother and nature’s fertility is your sister (since both nectar and poison are bom of the creative power of nature). Unseen and yet universally seen and known are you all. Why move, better be still for the sake of good and comfort?

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