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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 191 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 191/ मन्त्र 8
    ऋषि: - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - अबोषधिसूर्याः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उत्पु॒रस्ता॒त्सूर्य॑ एति वि॒श्वदृ॑ष्टो अदृष्ट॒हा। अ॒दृष्टा॒न्त्सर्वा॑ञ्ज॒म्भय॒न्त्सर्वा॑श्च यातुधा॒न्य॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । पु॒रस्ता॑त् । सूर्यः॑ । ए॒ति॒ । वि॒श्वऽदृ॑ष्टः । अ॒दृ॒ष्ट॒ऽहा । अ॒दृष्टा॑न् । सर्वा॑न् । ज॒म्भय॑न् । सर्वाः॑ । च॒ । या॒तु॒ऽधा॒न्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्पुरस्तात्सूर्य एति विश्वदृष्टो अदृष्टहा। अदृष्टान्त्सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्य: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। पुरस्तात्। सूर्यः। एति। विश्वऽदृष्टः। अदृष्टऽहा। अदृष्टान्। सर्वान्। जम्भयन्। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥ १.१९१.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 191; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सूर्यदृष्टान्तेनोक्तविषयमाह ।

    अन्वयः

    हे वैद्या युष्माभिर्यथा सर्वानदृष्टान् जम्भयन्निवर्त्तयददृष्टहा विश्वदृष्टः सूर्यः पुरस्तादुदेति तथा सर्वाश्च यातुधान्यो निवारणीयाः ॥ ८ ॥

    पदार्थः

    (उत्) (पुरस्तात्) (सूर्यः) (एति) (विश्वदृष्टः) विश्वेन दृष्टः (अदृष्टहा) योऽदृष्टमन्धकारं हन्ति सः (अदृष्टान्) (सर्वान्) पदार्थान् (जम्भयन्) सावयवान् दर्शयन् (सर्वाः) (च) (यातुधान्यः) यातूनि दुराचरणशीलानि दधति ताः ॥ ८ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यस्तमो निवर्त्य प्रकाशं जनयति तथा वैद्यैर्विषहरणौषधिभिः सर्वाणि विषाणि निर्मूलानि कार्याणि ॥ ८ ॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब सूर्य के दृष्टान्त से उक्त विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे वैद्यजनो ! तुमको जैसे (सर्वान्) सब पदार्थ (अदृष्टान्) जो कि न देखे गये उनको (जम्भयन्) अङ्ग-अङ्ग के साथ दिखलाता हुआ (अदृष्टहा) जो नहीं देखा गया अन्धकार उसको विनाशनेवाला (विश्वदृष्टः) संसार में देखा (सूर्यः) सूर्यमण्डल (पुरस्तात्) पूर्व दिशा में (उदेति) उदय को प्राप्त होता है वैसे (सर्वाः) (च) (यातुधान्यः) सभी दुराचारियों को धारण करनेवाली दुर्व्यथा निवारण करनी चाहिये ॥ ८ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य अन्धकार को निवारण करके प्रकाश को उत्पन्न करता है, वैसे वैद्यजनों को विषहरण ओषधियों से विषों को निर्मूल करना विनाशना चाहिये ॥ ८ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य अंधःकाराचे निवारण करून प्रकाश उत्पन्न करतो तसे वैद्यांनी विष नष्ट करणाऱ्या औषधींनी विष निर्मूलन करून नष्ट केले पाहिजे. ॥ ८ ॥

    English (1)

    Meaning

    There upfront rises the sun from the east, universally seen and showing the world, and destroying all that is unseen poisonous, eliminating all the negativities and all that is evil and invisible to the naked eye.

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