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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अश्वं॒ न त्वा॒ वार॑वन्तं व॒न्दध्या॑ अ॒ग्निं नमो॑भिः। स॒म्राज॑न्तमध्व॒राणा॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्व॑म् । न । त्वा॒ । वार॑ऽवन्तम् । व॒न्दध्यै॑ । अ॒ग्निम् । नमो॑भिः । स॒म्ऽराज॑न्तम् । अ॒ध्व॒राणा॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्निं नमोभिः। सम्राजन्तमध्वराणाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वम्। न। त्वा। वारऽवन्तम्। वन्दध्यै। अग्निम्। नमोभिः। सम्ऽराजन्तम्। अध्वराणाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादिमेनाग्निरुपदिश्यते॥

    अन्वयः

    वयं नमोभिर्वारवन्तमश्वं न इवाध्वराणां सम्राजन्तं त्वामग्निं वन्दध्यै वन्दितुं प्रवृत्ताः सेवामहे॥१॥

    पदार्थः

    (अश्वम्) वेगवन्तं वाजिनम् (न) (त्वा) त्वां तं वा (वारवन्तम्) वालवन्तम् (वन्दध्यै) वन्दितुम्। अत्र तुमर्थे सेसे० इति कध्यै प्रत्ययः। (अग्निम्) विद्वांसं वा भौतिकम् (नमोभिः) नमस्कारैरन्नादिभिः सह (सम्राजन्तम्) सम्यक् प्रकाशमानम् (अध्वराणाम्) राज्यपालनाग्निहोत्रादिशिल्पान्तानां यज्ञानां मध्ये (अश्वम्) मार्गे व्यापिनम् (न) इव (त्वा) त्वाम् (वारवन्तम्)। एतद्यास्कमुनिरेवं व्याचष्टे। अश्वमिव त्वा वालवन्तं वाला दंशवारणार्था भवन्ति दंशो दशतेः। (निरु०१.२०)॥१॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा विपश्चित्स्वविद्यादिगुणैः स्वराज्ये राजते तथैव परमेश्वरः सर्वज्ञत्वादिभिर्गुणैः सर्वत्र प्रकाशते चेति॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब सत्ताईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके पहिले मन्त्र में अग्नि का प्रकाश किया है॥

    पदार्थ

    हम लोग (नमोभिः) नमस्कार, स्तुति और अन्न आदि पदार्थों के साथ (वारवन्तम्) उत्तम केशवाले (अश्वम्) वेगवान् घोड़े के (न) समान (अध्वराणाम्) राज्य के पालन अग्निहोत्र से लेकर शिल्प पर्य्यन्त यज्ञों में (सम्राजन्तम्) प्रकाशयुक्त (त्वा) आप विद्वान् को (वन्दध्यै) स्तुति करने को प्रवृत्त हुए सेवा करते हैं॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् स्वविद्या के प्रकाश आदि गुणों से अपने राज्य में अविद्या अन्धकार को निवारण कर प्रकाशित होते हैं, वैसे परमेश्वर सर्वज्ञपन आदि से प्रकाशमान है॥१॥

    मराठी (1)

    विषय

    मागील सूक्तात अग्नीचे वर्णन आहे. ते चांगल्या प्रकारे जाणणारे विद्वानच असतात त्यांचे येथे वर्णन असल्यामुळे सव्विसाव्या सूक्तार्थाबरोबर या सत्ताविसाव्या सूक्ताची संगती जाणली पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे विद्वान स्वतःच्या विद्यागुणांनी अविद्या अंधःकार निवारण करून आपल्या राज्यात प्रकाशित (प्रसिद्ध) होतात तसे परमेश्वर सर्वज्ञतेने सर्वत्र प्रकाशमान आहे. ॥ १ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, brilliant and illuminating power and presence of yajnas from the homely agnihotra to the highest programmes of humanity, like a tempestuous horse of flying hair, we praise you and celebrate you with homage and offerings of food and oblations.

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