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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 30/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ व॒ इन्द्रं॒ क्रिविं॑ यथा वाज॒यन्तः॑ श॒तक्र॑तुम्। मंहि॑ष्ठं सिञ्च॒ इन्दु॑भिः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वः॒ । इन्द्र॑म् । क्रिवि॑म् । य॒था॒ । वा॒ज॒ऽयन्तः॑ । श॒तऽक्र॑तुम् । मंहि॑ष्ठं सि॒ञ्चे॒ । इन्दु॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ व इन्द्रं क्रिविं यथा वाजयन्तः शतक्रतुम्। मंहिष्ठं सिञ्च इन्दुभिः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। वः। इन्द्रम्। क्रिविम्। यथा। वाजऽयन्तः। शतऽक्रतुम्। मंहिष्ठं सिञ्चे। इन्दुऽभिः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 30; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादिमे इन्द्रशब्देन शूरवीरगुणा उपदिश्यन्ते।

    अन्वयः

    हे सभाध्यक्ष ! मनुष्या यथा कृषीवलाः क्रिविं कूपं सम्प्राप्य तज्जलेन क्षेत्राणि सिञ्चन्ति यथा वाजयन्तो वायव इन्दुभिः शतक्रतुं मंहिष्ठमिन्द्रं च तथा त्वमपि प्रजाः सुखैः सिञ्च संयोजय॥१॥

    पदार्थः

    (आ) सर्वतः (वः) युष्माकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यहेतुप्रापकम् (क्रिविम्) कूपम्। क्रिविरिति कूपनामसु पठितम्। (निघं०३.२३) (यथा) येन प्रकारेण (वाजयन्तः) जलं चालयन्तो वायवः (शतक्रतुम्) शतमसंख्याताः क्रतवः कर्म्माणि यस्मात्तम् (मंहिष्ठम्) अतिशयेन महान्तम् (सिञ्च) (इन्दुभिः) जलैः॥१॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा मनुष्याः पूर्वं कूपं खनित्वा तज्जलेन स्नानपानक्षेत्रवाटिकादिसिञ्चनादि व्यवहारं कृत्वा सुखिनो भवन्ति, तथैव विद्वांसो यथावत् कलायन्त्रेष्वऽग्निं योजयित्वा तत्सम्बन्धेन जलं स्थापयित्वा चालनेन बहूनि कार्य्याणि कृत्वा सुखिनो भवन्ति॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    इसके पहले मन्त्र में इन्द्र शब्द से शूरवीरों के गुणों का प्रकाश किया है॥

    पदार्थ

    हे सभाध्यक्ष मनुष्य ! (यथा) जैसे खेती करनेवाले किसान (क्रिविम्) कुएँ को खोद कर उसके जल से खेतों को (सिञ्च) सींचते हैं और जैसे (वाजयन्तः) वेगयुक्त वायु (इन्दुभिः) जलों से (शतक्रतुम्) जिससे अनेक कर्म होते हैं (मंहिष्ठम्) बड़े (इन्द्रम्) सूर्य को सींचते, वैसे तू भी प्रजाओं को सुखों से अभिषिक्त कर॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मनुष्य पहिले कुएँ को खोद कर उसके जल से स्नान-पान और खेत बगीचे आदि स्थानों के सींचने से सुखी होते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग यथायोग्य कलायन्त्रों में अग्नि को जोड़ के उसकी सहायता से कलों में जल को स्थापन करके उनको चलाने से बहुत कार्य्यों को सिद्ध करके सुखी होते हैं॥१॥

    मराठी (1)

    विषय

    या मंत्राच्याच मागच्या सूक्ताच्या अनुषंगी (इन्द्र) (अश्वि) व (उषा) या वेळेच्या वर्णनाने मागच्या सूक्ताच्या अनुषंगी अर्थाबरोबर या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे. ॥

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसे जशी प्रथम विहीर खोदतात, त्यातील जलाने स्नान, पान करतात, शेती व बाग इत्यादी ठिकाणी सिंचन करून सुखी होतात तसे विद्वान लोक अग्नीच्या साह्याने कलायंत्रात जल स्थित करून त्यांना चालवितात व अनेक प्रकारची कार्ये करून सुखी होतात. ॥ १ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Just as strong winds carry the cloud for rain on the earth, just as men dig the well for irrigating the field, so you serve Indra, most generous and powerful hero of a hundred acts of creation and growth, with each drop of your powers and energies.

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