ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 37/ मन्त्र 11
त्यं चि॑द्घा दी॒र्घं पृ॒थुं मि॒हो नपा॑त॒ममृ॑ध्रम् । प्र च्या॑वयन्ति॒ याम॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठत्यम् । चि॒त् । घ॒ । दी॒र्घम् । पृ॒थुम् । मि॒हः । नपा॑तम् । अमृ॑ध्रम् । प्र । च्य॒व॒य॒न्ति॒ । याम॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्यं चिद्घा दीर्घं पृथुं मिहो नपातममृध्रम् । प्र च्यावयन्ति यामभिः ॥
स्वर रहित पद पाठत्यम् । चित् । घ । दीर्घम् । पृथुम् । मिहः । नपातम् । अमृध्रम् । प्र । च्यवयन्ति । यामभिः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 37; मन्त्र » 11
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(त्यम्) मेघम् (चित्) अपि (घ) एव। अत्र ऋचि तुनुघ इति दीर्घः। (दीर्घम्) स्थूलम् (पृथुम्) विस्तीर्णम् (मिहः) सेचनकर्त्तारः। अत्र इगुपधलक्षणः# कः प्रत्ययः। सुपां सुलुग् इति जसः स्थाने सुः। (नपातम्) यो न पातयति जलं तम्। अत्र *नभ्राण नपात् इति निपातनम् (अमृध्रम्) न मर्धते नोनत्ति तम्। अत्र नञ्पूर्वान्मृघधातोर्बाहुलकादौणादिकोरक् प्रत्ययः। (प्र) प्रकृष्टार्थे (च्यावयन्ति) पातयन्ति (यामभिः) यांत्यायान्ति यैस्तैः स्वकीयगमनागमनैः ॥११॥ #[इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। अ० ३।१।१३५। इत्यनेन सूत्रेण। सं०] *[न भ्राण न पान्नवेदा०। अ० ६।३।७५। इत्यनेन सूत्रेण। सं०]
अन्वयः
पुनरेते किं कुर्युरित्युपदिश्यते।
पदार्थः
हे राजपुरुषा यूयं यथा मिहो वृष्ट्या सेचनकर्त्तारो मरुतो यामभिघैव नपातममृध्रं पृथुं दीर्घंत्यं चिदपि प्र च्यावयन्ति तथा शत्रून् प्रच्याव्य प्रजा आनन्दयत ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राजपुरुषैर्यथा मरुत एव मेघनिमित्तं पुष्कलं ज्वलमुपरि गमयित्वा परस्परं घर्षणेन विद्युतमुत्पाद्य तत्समूहमपतनशीलमतुन्दनीयं दीर्घावयवं मेघं भूमौ निपातयन्ति तथैव धर्मविरोधिनः सर्वव्यवहाराः प्रच्यावनीयाः ॥११॥ मोक्षमूलरोक्तिः। ते वायवोऽस्य दीर्घकालं वर्षतोऽप्रतिबद्धस्य मेघस्य निमित्तं सन्ति पातनाय मार्गस्योपरि। इति किंचिच्छुद्धास्ति। कुतः। मिह इति मरुतां विशेषणमस्त्यनेन मेघविशेषणं कृतमस्त्यतः ॥११॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर ये राजपुरुष क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।
पदार्थ
हे राजपुरुषो ! तुम लोग जैसे (मिहः) वर्षा जल से सींचनेवाले पवन (यामभिः) अपने जाने के मार्गों से (घ) ही (त्यम्) उस (नपातम्) जल को न गिराने और (अमृध्रम्) गीला न करनेवाले (पृथुम्) बड़े (चित्) भी (दीर्घम्) स्थूल मेघ को (प्रच्यावयन्ति) भूमि पर गिरा देते हैं वैसे शत्रुओं को गिरा के प्रजा को आनन्दित करो ॥११॥
भावार्थ
इस मंत्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। राजपुरुषों को चाहिये कि जैसे पवन ही मेघ के निमित्त बहुत जल को ऊपर पहुंचा कर परस्पर घिसने से बिजुली को उत्पन्न कर उसे न गिरने योग्य तथा न गीला करने और बड़े आकारवाले मेघ को भूमि में गिराते हैं वैसे ही धर्म विरोधी सब व्यवहारों को छोड़ें और छुड़ावें ॥११॥ मोक्षमूलर की उक्ति है कि वे पवन इस बहुत काल वर्षा कराते हुए अप्रतिबद्ध मेघ के निमित्त और मार्ग के ऊपर गिराने के लिये हैं यह कुछेक अशुद्ध हैं। क्योंकि (मिहः) यह पद पवनों का विशेषण है और इन्होंने मेघ का विशेषण किया है ॥११॥ सं० भा० के अनुसार-मेघ के मार्ग पर गिराने के निमित्त हैं। सं०
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वायूच मेघाचे निमित्त असून पुष्कळ जल वर घेऊन जातात व परस्पर घर्षणामुळे विद्युत उत्पन्न करून न पडण्यायोग्य व ओले न करण्यायोग्य अशा मोठ्या आकाराच्या मेघाला भूमीवर पाडतात तसे राजपुरुषांनी धर्मविरोधी सर्व व्यवहारांचा त्याग करावा व करवावा. ॥ ११ ॥
टिप्पणी
मोक्षमूलरची उक्ती आहे की, ते वायू बराच काळ वृष्टी करवून न रोखता मेघाचे निमित्त व मार्गावर पाडण्यासाठी आहेत. हे काहीसे अशुद्ध आहे. कारण (मिहः) हे पद वायूचे विशेषण आहे व त्यांनी मेघाचे विशेषण दर्शविलेले आहे. ॥ ११ ॥
English (1)
Meaning
The winds, by their motions of mighty currents, drive the dark and deep and heavy clouds holding the waters and make them rain down in incessant showers.
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