ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 37/ मन्त्र 9
स्थि॒रं हि जान॑मेषां॒ वयो॑ मा॒तुर्निरे॑तवे । यत्सी॒मनु॑ द्वि॒ता शवः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस्थि॒रम् । हि । जान॑म् । ए॒षा॒म् । वयः॑ । मा॒तुः । निःऽए॑तवे । यत् । सी॒म् । अनु॑ । द्वि॒ता । शवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्थिरं हि जानमेषां वयो मातुर्निरेतवे । यत्सीमनु द्विता शवः ॥
स्वर रहित पद पाठस्थिरम् । हि । जानम् । एषाम् । वयः । मातुः । निःएतवे । यत् । सीम् । अनु । द्विता । शवः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 37; मन्त्र » 9
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(स्थिरम्) गमनरहितम् (हि) खलु (जानम्) जायते यस्मात्तदाकाशम्। अत्र जनधातोर्धञ् स्वरव्यत्ययेनाद्युदात्तत्वम्। सायणाचार्येणेदं जनिवध्योरित्यादीनामबोधादुपेक्षितम् (एषाम्) वायूनाम् (वयः) पक्षिणः (मातुः) अन्तरिक्षस्य मध्ये (निरेतवे) निरन्तरमेतुं गन्तुम् (यत्) (सीम्) सर्वतः (अनु) अनुक्रमेण (द्विता) द्वयोः शब्दस्पर्शयोर्गुणयोर्भावः (शवः) बलम्। शव इति बलनामसु पठितम्। निघं० २।९। ॥९॥
अन्वयः
पुनस्ते वायवः कीदृशगुणाः सन्तीत्युपदिश्यते।
पदार्थः
हे मनुष्या एषां यत् स्थिरं जानं शवो बलं द्विता वर्त्तते यदाश्रित्य वयः पक्षिणो मातुरन्तरिक्षस्य मध्ये सीं निरेतवे शक्नुवन्ति तान् भवन्तोऽनुविजानन्तु ॥९॥
भावार्थः
य इमे कार्यवायव आकाशादुत्पद्येतस्ततो गच्छन्त्यागच्छन्ति यत्र यत्रावकाशस्तत्र तत्र येषां सर्वतो गमनं संभवति। सर्वे प्राणिनो याननुजीवनं प्राप्य बलवन्तो भवन्ति तान् युक्त्या यूयं सेवध्वम् ॥९॥ मोक्षमूलरोक्तिः। सत्यमेव वायूनामुत्पत्तिस्तेषां सामर्थ्यं मातुः सकाशादागच्छत्येतेषां सामर्थ्यं द्विगुणं चास्तीति निष्प्रयोजनास्येयं व्याख्याऽस्ति। कुतः सर्वेषां द्रव्याणामुत्पत्तिः स्वस्वकारणानुकूलत्वेन बलवती जायते तेषां कार्याणां मध्ये कारणगुणा आगच्छन्त्येव वयःशब्देन किल पक्षिणो ग्रहणमस्तीत्यतः ॥९॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर वे वायु कैसे गुणवाले हैं, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (एषाम्) इन (वायूनाम्) पवनों का (यत्) जो (स्थिरम्) निश्चल (जानम्) जन्मस्थान आकाश (शवः) बल और जिस में (द्विता) शब्द और स्पर्श गुण का योग है जिसके आश्रय से (वयः) पक्षी (मातुः) अन्तरिक्ष के बीच में (सीम्) सब प्रकार (निरेतवे) निरन्तर जाने आने को समर्थ होते हैं उन वायुओं को आप लोग (अनु) पश्चात् विशेषता से जानिये ॥९॥
भावार्थ
ये कार्यरूप पवन आकाश में उत्पन्न होकर इधर उधर जाते-आते हैं, जहां अवकाश है वहां जिनके सब प्रकार गमन का संभव होता और जिनकी अनुकूलता से सब प्राणी जीवन को प्राप्त होकर बलवाले होते हैं उन को युक्ति के साथ तुम लोग सेवन किया करो ॥९॥ मोक्षमूलर की उक्ति है कि सत्य ही है कि पवनों की उत्पत्ति बलवाली तथा उनका सामर्थ्य आकाश से आता है उनका सामर्थ्य द्विगुण वा पुष्कल है। सो यह निष्प्रयोजन है क्योंकि सब द्रव्यों की उत्पत्ति अपने-२ कारण के अनुकूल बलवाली होती है उनके कार्यों में कारण के गुण आते ही हैं और वयः शब्द से पक्षियों का ग्रहण है ॥९॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे कार्यरूप वायू आकाशात उत्पन्न होऊन इकडे-तिकडे जातात-येतात. जेथे आकाश आहे तेथे ज्यांचे सर्व प्रकारे गमन शक्य होते व ज्यांच्या अनुकूलतेने सर्व प्राणी जीवन प्राप्त करून बलवान होतात. त्यांना तुम्ही युक्तीने सेवन करा.
टिप्पणी
मोक्षमूलरची उक्ती सत्यच आहे की, वायूची उत्पत्ती बल देणारी असून त्यांचे सामर्थ्य आकाशातून येते. त्यांचे सामर्थ्य द्विगुण अथवा पुष्कळ आहे. त्यामुळे हे निष्प्रयोजन आहे, कारण सर्व द्रव्यांची उत्पत्ती आपापल्या कारणानुकूल बल देणारी असते. त्यांच्या कार्यात कारणाचे गुण येतात व वयः शब्दाने पक्ष्याचे ग्रहण होते. ॥ ९ ॥
English (1)
Meaning
Still is the cause of these winds, i.e., space (akasha) whence they have their birth. By virtue of their mother source, their power is two-fold: Sound, which is the property of space which the winds carry, and motion which is their specific property, so that things such as birds may move in space by the force of the winds.
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