ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 75/ मन्त्र 3
कस्ते॑ जा॒मिर्जना॑ना॒मग्ने॒ को दा॒श्व॑ध्वरः। को ह॒ कस्मि॑न्नसि श्रि॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठकः । ते॒ । जा॒मिः । जना॑नाम् । अग्ने॑ । कः । दा॒शुऽअ॑ध्वरः । कः । ह॒ । कस्मि॑न् । अ॒सि॒ । श्रि॒तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
कस्ते जामिर्जनानामग्ने को दाश्वध्वरः। को ह कस्मिन्नसि श्रितः ॥
स्वर रहित पद पाठकः। ते। जामिः। जनानाम्। अग्ने। कः। दाशुऽअध्वरः। कः। ह। कस्मिन्। असि। श्रितः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 75; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
हे अग्ने विद्वन् ! जनानां मध्ये ते तव को ह जामिरस्ति को दाश्वध्वरस्त्वं कः कस्मिन् श्रितोऽसीत्यस्य सर्वस्य वदोत्तरम् ॥ ३ ॥
पदार्थः
(कः) (ते) तव (जामिः) ज्ञाता। अत्र ज्ञा धातोर्बाहुलकादौणादिको मिः प्रत्ययो जादेशश्च। (जनानाम्) मनुष्याणां मध्ये (अग्ने) सकलविद्यावित् (कः) (दाश्वध्वरः) दाशुर्दाताऽध्वरोऽहिंसको यस्मिन् सः (कः) (ह) किल (कस्मिन्) (असि) (श्रितः) आश्रितः ॥ ३ ॥
भावार्थः
मनुष्याणां मध्ये कश्चिदेव परमेश्वरस्याग्न्यादेश्च विज्ञाता विज्ञापको भवितुं शक्नोति। कुत एतयोरत्यन्ताश्चर्य्यगुणकर्मस्वभाववत्त्वात् ॥ ३ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह कैसा हो, यह विषय कहा है ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् ! (जनानाम्) मनुष्यों के बीच (ते) आपका (कः) कौन मनुष्य (ह) निश्चय करके (जामिः) जाननेवाला है (कः) कौन (दाश्वध्वरः) दान देने और रक्षा करनेवाला है, तू (कः) कौन है और (कस्मिन्) किसमें (श्रितः) आश्रित (असि) है, इस सब बात का उत्तर दे ॥ ३ ॥
भावार्थ
बहुत मनुष्यों में कोई ऐसा होता है कि जो परमेश्वर और अग्न्यादि पदार्थों को ठीक-ठीक जाने और जनावे, क्योंकि ये दोनों अत्यन्त आश्चर्य्य गुण, कर्म और स्वभाववाले हैं ॥ ३ ॥
विषय
अज्ञेय व अचिन्त्य प्रभु
पदार्थ
१. हे प्रभो । (जनानाम्) = मनुष्यों में (कः) = कौन (ते) = तेरा (जामिः) = बन्धु हैं । जैसे बन्धुओं में कुछ समानता - सी होती है, इस प्रकार हे प्रभो ! मनुष्यों में आपके समान कौन है, अर्थात् कोई भी आपकी समता नहीं कर सकता । सामान्य मनुष्य के विषय में तो प्रश्न ही नहीं उठता “न मुक्तानामपि हरेः साम्यम्” - इन पुराण - शब्दों के अनुसार मुक्त जीव भी उस प्रभु के सम नहीं हो पाते । “जगद्व्यापारवर्जमितरेषामैश्वर्यम्” - इस वेदान्तसूत्र के अनुसार मुक्त भी प्रभु के समान सृष्टि का निर्माण तो नहीं कर सकते । हे प्रभो ! (कः) = कौन आपकी भांति (दाश्वध्वरः) = [दाशुर्दत्तोऽध्वरो येन] वेदवाणी के द्वारा इन यज्ञात्मक कर्मों का उपदेश देनेवाला है ? आप ही सब यज्ञों का प्रतिपादन करनेवाले हैं । २. (कः ह) = आप निश्चय से कौन हैं ? यह किसी से भी जाना नहीं जा सकता । (कस्मिन् श्रितः असि) = किसमें आप आश्रित हैं ? कौन आपका आधार है ? यह भी तो नहीं कहा जा सकता । वस्तुतः वे प्रभु अचिन्त्यस्वरूप व अचिन्त्य महिमावाले हैं । हम आपको पूरा - पूरा जान नहीं सकते । देहधारी के लिए निराकार का जानना कैसे सम्भव हो सकता है ?
भावार्थ
भावार्थ - परमात्मा अज्ञेय व अचिन्त्य हैं ।
विषय
राजा और विद्वान् के कर्तव्योपदेश ।
भावार्थ
शिष्य बनाने के पूर्व आचार्य शिष्य से पूछे—हे ( अग्ने ) ज्ञानवन् ! तेजस्विन् शिष्य ! ( ते जामिः कः ) तेरा कौन बन्धु है ? (कः दाश्वध्वरः ) तुझे अन्न वस्त्र देने वाला और तेरा रक्षक कौन है ? ( कः ह ) तू निश्चय से कह, कौन है ? तू (कस्मिन् ) किसके आश्रय पर ( श्रितः असि ) स्थित है ? अध्यात्म में—जीवात्मा के विषय में—जिज्ञासु इन प्रश्नों का समाधान करे और जाने कि सिवाय परमेश्वर के इस जीव का कोई बन्धु, दाता, रक्षक और आश्रय नहीं है। परमेश्वर विषय में भी–उन प्रश्नों का समाधान करे कि उसका कोई बन्धु, दाता या रक्षक या आश्रय नहीं है । वह स्वयं ( कः ) कर्त्ता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगण ऋषिः । निर्देवता । छन्दः—१ गायत्री । २, ४, ५ निचृद्गायत्री । ३ विराड् गायत्री । पञ्चर्चं सूक्तम् ।
विषय
विषय (भाषा)- फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस मन्त्र में यह विषय कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे अग्ने विद्वन् ! जनानां मध्ये ते तव को ह जामिः अस्ति को दाश्वध्वरः त्वं कः कस्मिन् {ह} श्रितः असि इत्यस्य सर्वस्य वद उत्तरम् ॥३॥
पदार्थ
पदार्थः- हे (अग्ने) सकलविद्यावित् =समस्त विद्याओं के जाननेवाले, (विद्वन्) = विद्वान् ! (जनानाम्) मनुष्याणां मध्ये= मनुष्यों के बीच में, (ते) तव=तुम्हारा, (कः)=कौन, (जामिः) ज्ञाता= जाननेवाले, (अस्ति) =है, (कः) = कौन, (दाश्वध्वरः) दाशुर्दाताऽध्वरोऽहिंसको यस्मिन् सः=अहिंसक दाता है, (त्वम्)=तुम, (कः) = कौन और, (कस्मिन्)=किसमें, {ह} किल=निश्चित रूप से, (श्रितः) आश्रितः= आश्रित, (असि) =हो! (इत्यस्य)=इस, (सर्वस्य)=सबको, (वद)=बोलो, (उत्तरम्)= उत्तर ॥३॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के मध्य में कोई ही है, जो परमेश्वर और अग्नि आदि को विशेष रूप से जाननेवाला और ज्ञान करानेवाला हो सकता है। कहाँ से! इनके अत्यन्त आश्चर्यवाले गुण, कर्म और स्वभाव से जाननेवाला और ज्ञान करानेवाला हो सकता है॥३॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (अग्ने) समस्त विद्याओं के जाननेवाले (विद्वन्) विद्वान् ! (जनानाम्) मनुष्यों के बीच में (ते) तुम्हारा (कः) कौन (जामिः) जाननेवाले (अस्ति) है! (कः) कौन (दाश्वध्वरः) अहिंसक दाता है! (त्वम्) तुम (कः) कौन हो और (कस्मिन्) किस पर {ह}निश्चित रूप से (श्रितः) आश्रित (असि) हो! (इत्यस्य) इस (सर्वस्य) सबको (वद+ उत्तरम्) उत्तर में बोलो॥३॥
संस्कृत भाग
कः । ते॒ । जा॒मिः । जना॑नाम् । अग्ने॑ । कः । दा॒शुऽअ॑ध्वरः । कः । ह॒ । कस्मि॑न् । अ॒सि॒ । श्रि॒तः ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्याणां मध्ये कश्चिदेव परमेश्वरस्याग्न्यादेश्च विज्ञाता विज्ञापको भवितुं शक्नोति। कुत एतयोरत्यन्ताश्चर्य्यगुणकर्मस्वभाववत्त्वात् ॥३॥
मराठी (1)
भावार्थ
पुष्कळ माणसांपैकी एखादाच असा असतो की जो परमेश्वर व अग्नी इत्यादी पदार्थांना यथायोग्य जाणतो व जाणवून देतो, कारण हे दोन्ही अत्यंत आश्चर्यकारक गुण कर्म स्वभावाचे असतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Agni, who among people is your brother that knows well? Who is the giver? Who is the yajaka? Who are you? Wherein do you abide.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Agni, is taught in the third Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O knower of all Vidyas (sciences) who among men knows you well ? who is the liberal performer of non-violent sacrifices ? who are you and dependent on whom ? Give answer to these questions.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(जामि:) ज्ञाता प्रत्र माधातोर्बाहुलकादौरणादिको मि प्रत्ययो जादेशश्च । = Knower. (अग्ने ) सकलविद्यावित् = Knower of all sciences.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is rare among men to find. who know well and teach about God and fire etc., because they (God and fire) are endowed with wonderful attributes.
Translator's Notes
It is clear from Rishi Dayananda's Bhavartha or purport that he takes from the word Agni used here not only a learned person or fire but also God. In that case, the meaning will be Who O Omniscient God is Thy perfect knower ? Who is it that can perform non-violent sacrifices in altogether perfect manner ? Who art Thou should be known by us. On whom art Thou dependent ? On none.
Subject of the mantra
Then, how should that scholar be?This topic is mentioned in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (agne)= scholar who knows all vidya, (vidvan) =scholar, (janānām)= among humans, (te) =your, (kaḥ) =who, (jāmiḥ) =those who know, (asti) =is, (kaḥ) =who, (dāśvadhvaraḥ) =non-violent provider, (tvam) =you, (kaḥ) =who are and, (kasmin) =on whom, {ha} =definitely, (śritaḥ) =depend, (asi)=are, (ityasya) =this, (sarvasya) =all, (vada+uttaram)=say in reply.
English Translation (K.K.V.)
O scholar who knows all vidya! Who among humans knows you? Who is a non-violent provider? Who you are and on whom you definitely depend! Say all this in reply.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
There is only one person among human beings who can specially know and impart knowledge about God and fire etc. From where! Through their very surprising qualities, actions and nature, one can become a knower and one who can impart knowledge.
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