ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 82/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृदास्तारपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
उपो॒ षु शृ॑णु॒ही गिरो॒ मघ॑व॒न्मात॑थाइव। य॒दा नः॑ सू॒नृता॑वतः॒ कर॒ आद॒र्थया॑स॒ इद्योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउपो॒ इति॑ । सु । शृ॒णु॒हि । गिरः॑ । मघ॑ऽवन् । मा । अत॑थाःऽइव । य॒दा । नः॒ । सू॒नृता॑ऽवतः । करः॑ । आत् । अ॒र्थया॑से । इत् । योज॑ । नु । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । हरी॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपो षु शृणुही गिरो मघवन्मातथाइव। यदा नः सूनृतावतः कर आदर्थयास इद्योजा न्विन्द्र ते हरी ॥
स्वर रहित पद पाठउपो इति। सु। शृणुहि। गिरः। मघऽवन्। मा। अतथाःऽइव। यदा। नः। सूनृताऽवतः। करः। आत्। अर्थयासे। इत्। योज। नु। इन्द्र। ते। हरी इति ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 82; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदुपासकः सेनेशः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! यौ ते तव हरी स्तस्तौ त्वं नु योज प्रियवाणीवतो विदुषोऽर्थयासे याचस्व। हे मघवँस्त्वं नोऽस्माकं गिर उपो सुशृणुह्यान्नोऽतथा इवेन्मा भव यदा वयं त्वां सुखानि याचामहे तदा त्वं नोऽस्मान् सूनृतावतः करः ॥ १ ॥
पदार्थः
(उपो) सामीप्ये (सु) शोभने (शृणुहि) (गिरः) वाणीः (मघवन्) प्रशस्तगुणप्रापक (मा) निषेधे (अतथाइव) प्रतिकूल इव। अत्राऽऽचारे क्विप् तदन्ताच्च प्रत्ययः। (यदा) यस्मिन् काले (नः) अस्माकम् (सूनृतावतः) सत्यवाणीयुक्तान् (करः) कुरु (आत्) आनन्तर्य्ये (अर्थयासे) याचस्व (इत्) एव (योज) युक्तान् कुरु (नु) शीघ्रम् (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रापक सेनाध्यक्ष (ते) तव (हरी) हरणशीलौ धारणाकर्षणगुणावुत्तमाश्वौ वा ॥ १ ॥
भावार्थः
मनुष्यैर्यथा राजा सुसेवितजगदीश्वरात् सेनापतेर्वा सेनापतिना सुसेविता सेना वा सुखानि प्राप्नोति यथा च सभाद्यध्यक्षाः प्रजासेनाजनानामानुकूल्ये वर्त्तेरंस्तथैवैतेषामानुकूल्ये प्रजासेनास्थैर्भवितव्यम् ॥ १ ॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर परमात्मा का उपासक सेनापति कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) सेनापते ! जो (ते) आपके (हरी) धारणाऽऽकर्षण के लिये घोड़े वा अग्नि आदि पदार्थ हैं, उनको (नु) शीघ्र (योज) युक्त करो, प्रियवाणी बोलनेहारे विद्वान् से (अर्थयासे) याच्ञा कीजिये। हे (मघवन्) अच्छे गुणों के प्राप्त करनेवाले ! (नः) हमारी (गिरः) वाणियों को (उपो सु शृणुहि) समीप होकर सुनिये (आत्) पश्चात् हमारे लिये (अतथाइवेत्) विपरीत आचरण करनेवाले जैसे ही (मा) मत हो (यदा) जब हम तुमसे सुखों की याचना करते हैं, तब आप (नः) हमको (सूनृतावतः) सत्य वाणीयुक्त (करः) कीजिये ॥ १ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि जैसे राजा ईश्वर के सेवक या सेनापति वा सेनापति से पालन की हुई सेना सुखों को प्राप्त होती है, जैसे सभाध्यक्ष प्रजा और सेना के अनुकूल वर्त्तमान करें, वैसे उनके अनुकूल प्रजा और सेना के मनुष्य को आचरण करना चाहिये ॥ १ ॥
विषय
अनुग्रह
पदार्थ
१. हे प्रभो ! (उप उ) = हम आपके समीप हों । हे (मघवन्) = सर्वैश्वर्यवान् प्रभो ! (गिरः) = हमारी प्रार्थनावाणियों को (स) = अच्छी प्रकार (शृणुहि) = सुनिए । आप (अ तथाः इव मा) = हमारे प्रतिकूल से मत होओ । हमारा आचरण ऐसा न हो कि हम आपके कृपापात्र न रहें । हमारी सबसे बड़ी कामना यही है कि हम आपके अनुग्रह = भाजन बने २. (यदा) = जब आप (नः) = हमें (सूनृतावतः) = सूनृत प्रिय, सत्य वाणीवाला (करः) = करते हैं, (आत्) = तभी (इत्) = वास्तव में (अर्थयासे) = हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यवान् प्रभो ! आप हमारे इस शरीररूप रथ में (ते हरी) = आपके इन ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप घोड़ों को (योजा नु) = जोड़िए ही । सर्वोत्तम प्रार्थना यही है कि हमारे ये ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप घोड़े इस शरीर - रथ में जुतकर हमें उन्नति - पथपर आगे ले - चलनेवाले हों ।
भावार्थ
भावार्थ = हम प्रभुकृपा के पात्र हों । सूनृत वाणीवालें हों । ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञानप्राप्ति में तथा कर्मेन्द्रियों से यज्ञादि कर्मों में लगे रहें ।
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात सेनापती व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥
भावार्थ
माणसांनी हे जाणावे की जसे राजाला ईश्वराचा सेवक असलेल्या सेनापतीकडून किंवा सेनापतीकडून पालन केलेल्या सेनेला सुख मिळते. जसे सभाध्यक्षाने प्रजा व सेनेच्या अनुकूल वागावे तसे प्रजेने व सेनेनेही त्याच्या अनुकूल वागावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of wealth and glory, listen to our prayer at the closest, not like one distant or different. And when we pray bless us with a voice of sweetness and the light of holy truth. Lord of speed and motion, yoke your horses (and come to join the yajna).
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