साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 98/ मन्त्र 1
ऋषि: - कुत्सः आङ्गिरसः
देवता - अग्निर्वैश्वानरः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
वै॒श्वा॒न॒रस्य॑ सुम॒तौ स्या॑म॒ राजा॒ हि कं॒ भुव॑नानामभि॒श्रीः। इ॒तो जा॒तो विश्व॑मि॒दं वि च॑ष्टे वैश्वान॒रो य॑तते॒ सूर्ये॑ण ॥
स्वर सहित पद पाठवै॒श्वा॒न॒रस्य॑ । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ । राजा॑ । हि । क॒म् । भुव॑नानाम् । अ॒भि॒ऽश्रीः । इ॒तः । जा॒तः । विश्व॑म् । इ॒दम् । वि । च॒ष्टे॒ । वै॒श्वा॒न॒रः । य॒त॒ते॒ । सूर्ये॑ण ॥
स्वर रहित मन्त्र
वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम राजा हि कं भुवनानामभिश्रीः। इतो जातो विश्वमिदं वि चष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण ॥
स्वर रहित पद पाठवैश्वानरस्य। सुऽमतौ। स्याम। राजा। हि। कम्। भुवनानाम्। अभिऽश्रीः। इतः। जातः। विश्वम्। इदम्। वि। चष्टे। वैश्वानरः। यतते। सूर्येण ॥ १.९८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 98; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - अब अट्ठानवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर और भौतिक अग्नि कैसे हैं, यह विषय कहा है ।
पदार्थ -
जो (वैश्वानरः) समस्त जीवों को यथायोग्य व्यवहारों में वर्त्तानेवाला ईश्वर वा जाठराग्नि (इतः) कारण से (जातः) प्रसिद्ध हुए (इदम्) इस प्रत्यक्ष (कम्) सुख को (विश्वम्) वा समस्त जगत् को (विचष्टे) विशेष भाव से दिखलाता है और जो (सूर्येण) प्राण वा सूर्यलोक के साथ (यतते) यत्न करनेवाला होता है वा जो (भुवनानाम्) लोकों का (अभिश्रीः) सब प्रकार से धन है तथा जिस भौतिक अग्नि से सब प्रकार का धन होता है वा (राजा) जो न्यायाधीश सबका अधिपति है तथा प्रकाशमान बिजुलीरूप अग्नि है, उस (वैश्वानरस्य) समस्त पदार्थ को देनेवाले ईश्वर का भौतिक अग्नि की (सुमतौ) श्रेष्ठ मति में अर्थात् जो कि अत्यन्त उत्तम अनुपम ईश्वर की प्रसिद्ध की हुई मति वा भौतिक अग्नि से अतीव प्रसिद्ध हुई मति उसमें (हि) ही (वयम्) हम लोग (स्याम) स्थिर हों ॥ १ ॥
भावार्थ - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो सबसे बड़ा व्याप्त होकर सब जगत् को प्रकाशित करता है, उसी के अति उत्तम गुणों से प्रसिद्ध उसकी आज्ञा में नित्य प्रवृत्त होओ तथा जो सूर्य्य आदि को प्रकाश करनेवाला अग्नि है, उसकी विद्या की सिद्धि में भी प्रवृत्त होओ, इसके विना किसी मनुष्य को पूर्ण धन नहीं हो सकते ॥ १ ॥
Bhashya Acknowledgment
विषयः - अथाऽग्नी कीदृशावित्युपदिश्यते ।
अन्वयः - यो वैश्वानर इतो जात इदं कं विश्वं जगद्विचष्टे यः सूर्येण सह यतते यो भुवनानामभिश्री राजास्ति तस्य वैश्वानरस्य सुमतौ हि वयं स्याम ॥ १ ॥
पदार्थः -
(वैश्वानरस्य) विश्वेषु नरेषु जीवेषु भवस्य (सुमतौ) शोभना मतिः सुमतिः तस्याम् (स्याम) भवेम (राजा) न्यायाधीशः सर्वाऽधिपतिरीश्वरः। प्रकाशमानो विद्युदग्निर्वा (हि) खलु (कम्) सुखम् (भुवनानाम्) लोकानाम् (अभिश्रीः) अभितः श्रियो यस्माद्वा (इतः) कारणात् (जातः) प्रसिद्धः (विश्वम्) सकलं जगत् (इदम्) प्रत्यक्षम् (वि) (चष्टे) दर्शयति (वैश्वानरः) सर्वेषां जीवानां नेता (यतते) संयतो भवति (सूर्येण) प्राणेन वा मार्त्तण्डेन सह। अत्राहुर्नैरुक्ताः−इतो जातः सर्वमिदमभिविपश्यति, वैश्वानरः संयतते सूर्येण, राजा यः सर्वेषां भूतानामभिश्रयणीयस्तस्य वयं वैश्वानरस्य कल्याण्यां मतौ स्यामेति। तत्को वैश्वानरो मध्यम इत्याचार्या वर्षकर्मणा ह्येनं स्तौति । निरु० ७। २२। ॥ १ ॥
भावार्थः - (अत्र श्लेषालङ्कारः। ) हे मनुष्या योऽभिव्याप्य सर्वं जगत्प्रकाशयति तस्यैव सुगुणैः प्रसिद्धायां तदाज्ञायां नित्यं प्रवर्त्तध्वम्। यस्तथा सूर्य्यादिप्रकाशकोऽग्निरस्ति तस्य विद्यासिद्धौ च नैवं विना कस्यापि मनुष्यस्य पूर्णाः श्रियो भवितुं शक्यन्ते ॥ १ ॥
Bhashya Acknowledgment
Meaning -
May we abide in the pleasure and good will of Vaishvanara Agni, ruler of humanity and indeed the spirit and vitality of all life on earth. The ruling power, for sure, is the order, beauty and grace of the world, the real wealth and life of existence. Born of the original cause, Prakrti, and manifesting here, this Agni shows this world and acts in unison with the sun and prana.
Bhashya Acknowledgment
विषय - या सूक्तात अग्नी व विद्वानांशी संबंध ठेवणाऱ्या कर्माच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे. ॥
भावार्थ - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. हे माणसांनो! जो सर्वात मोठा असून सर्व जगाला व्याप्त करून प्रकाशित करतो. त्याच्याच अतिउत्तम गुणांनी प्रसिद्ध होऊन त्याच्याच आज्ञेत प्रवृत्त व्हा व जो सूर्य इत्यादीला प्रकाशित करणारा अग्नी आहे ती विद्या सिद्ध करण्यास प्रवृत्त व्हा. त्याशिवाय कोणत्याही माणसाला पूर्ण धन प्राप्त होऊ शकत नाही. ॥ १ ॥
Bhashya Acknowledgment
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
N/A
Donation for Typing/OCR By:
Smt. Sushma Agarwal
First Proofing By:
Smt. Premlata Agarwal
Second Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Third Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Smt. Shrutika Shevankar
Conversion to Unicode/OCR By:
N/A
Donation for Typing/OCR By:
Smt. Sushma Agarwal
First Proofing By:
Smt. Premlata Agarwal
Second Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Third Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
N/A
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Sri Durga Prasad Agarwal, Smt. Nageshwari, & Sri Arnob Ghosh
Donation for Typing/OCR By:
Committed by Sri Navinn Seksaria
First Proofing By:
Pending
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Pending
Databasing By:
Sri Virendra Agarwal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal
Bhashya Acknowledgment
Book Scanning By:
N/A
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
Dhananjay Joshi
First Proofing By:
Pending
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Virendra Agarwal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal