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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
    ऋषिः - यमो वैवस्वतः देवता - यमी वैवस्वती छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    न ति॑ष्ठन्ति॒ न नि मि॑षन्त्ये॒ते दे॒वानां॒ स्पश॑ इ॒ह ये चर॑न्ति । अ॒न्येन॒ मदा॑हनो याहि॒ तूयं॒ तेन॒ वि वृ॑ह॒ रथ्ये॑व च॒क्रा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । ति॒ष्ठ॒न्ति॒ । न । नि । मि॒ष॒न्ति॒ । ए॒ते । दे॒वाना॑म् । स्पशः॑ । इ॒ह । ये । चर॑न्ति । अ॒न्येन॑ । मत् । आ॒ह॒नः॒ । या॒हि॒ । तूय॑म् । तेन॑ । वि । वृ॒हे॒व॒ । रथ्या॑ऽइव । च॒क्रा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न तिष्ठन्ति न नि मिषन्त्येते देवानां स्पश इह ये चरन्ति । अन्येन मदाहनो याहि तूयं तेन वि वृह रथ्येव चक्रा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । तिष्ठन्ति । न । नि । मिषन्ति । एते । देवानाम् । स्पशः । इह । ये । चरन्ति । अन्येन । मत् । आहनः । याहि । तूयम् । तेन । वि । वृहेव । रथ्याऽइव । चक्रा ॥ १०.१०.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 10; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    हे रात्रि ! जो तुझ विलाप करती हुई ने कहा है कि ‘बृहन्मित्रस्य वरुणस्य  धाम कदु ब्रवः=मित्र और वरुण हमारे पितृस्थान दूर हैं, कौन वहाँ हमारे दुःख को सुनावे’ यद्यपि मित्र और वरुण के उस दूर धाम को जानेवाले भी हैं तो सही, (ये) जो (इह) यहाँ अन्तरिक्ष में (चरन्ति) चलते हुये दीखते हैं, प्रत्युत वे (देवानाम्) सूर्यादि देवों के (स्पशः) स्पर्श करनेवाले अर्थात् नक्षत्र जो प्रवहनामक वायुमार्ग में वर्त्तमान, सूर्यादि देवों को स्पर्श करते हैं, ऐसे स्वभाववाले वे यात्री बनकर सूर्यादि देवों के प्रति जाते हैं और एक देव का दूसरे देव के पास वृत्तान्त पहुँचाते हुए हरकारों के समान हैं, (एते) ये (न तिष्ठन्ति) न विराम करते हैं (न निमिषन्ति) न ही मार्ग को छोड़कर इधर-उधर उन्मार्ग में चेष्टा करते हैं, तब हे रात्रि ! हम दोनों के दुःखमय वृत्तान्त को कौन ले जावे और कौन दुःख का सन्देश हम दोनों के पितृकुलों में सुनावे अथवा कौन हमें दुःख से छुडावें, अहो ! (आहनः) हे हृदयपीडिके ! यह तो असाध्य दुःख है, इसलिये (मत्) मुझ से भिन्न (अन्येन) जो कोई अन्य पुरुष तुझे दिखलाई पड़े, उसके साथ (तूयम्) शीघ्र (याहि) तू समागम को प्राप्त हो (तेन) उसी के साथ (विवृह) गार्हस्थ्यभार को उठा और (रथ्येव चक्रा) रथ के पहियों के समान वहन कर ॥८॥

    भावार्थ

    ग्रह-तारे आकाश में सदैव गतिशील रहते हैं, सूर्य के द्वारा उन्हें ज्योति प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त इस मन्त्र से यह भी स्पष्ट है कि सन्तानोत्पादन में असमर्थ पति द्वारा पत्नी को नियोग की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर यदि वह ब्रह्मचारिणी रहना चाहे, तो रह सकती है, सन्तानप्राप्ति की इच्छा हो, तो नियोग करे ॥८॥ समीक्षा (सायणभाष्य)-‘ये स्पशोऽहोरात्रादयश्चाराश्चरन्ति” यहाँ यम-यमी को सायण दिन-रात नहीं समझता है, किन्तु मन्त्र १० में “अहोरात्रयोरस्मै यमाय कल्पितं भागम्” में यम का सम्बन्ध दिन-रात से वर्णित किया है। यह पारस्परिक विरोध है ॥८॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे रात्रे ! यत्त्वया विलापं कुर्वत्योक्तम् -‘बृहन्मित्रस्य वरुणस्य धाम कदु ब्रवः’ यद्यपि मित्रस्य वरुणस्य धाम बृहद् लम्बायमानं दूरं यदस्ति तद्धाम गन्तारो गमनशीलास्तु सन्ति (इह ये चरन्ति) इहान्तरिक्षे ये चलन्ति प्रत्युत ते (देवानाम्) सूर्यादीनां (स्पशः) स्पशन्ति स्पृशन्ति ते स्पशः, ज्योतिर्विद्या  नक्षत्राण्युच्यन्ते प्रवहनामके वायुमार्गे वर्त्तमानाः सूर्य्यादीन् देवान् स्पृशन्तीति यतः “स्पश बाधनस्पर्शयोः” [भ्वादिः] “अन्येभ्योऽपि दृश्यते” इति ताच्छीलिकः क्विप्, एवं स्वभावास्ते यात्रिणो भूत्वा सूर्यादीन् देवानभिगच्छन्ति, अन्योऽन्यस्य देवस्य वृत्तस्य प्रेषकाः (एते न तिष्ठन्ति) एते न विरमन्ति (न निमिषन्ति) स्वकीयमार्गं परित्यज्येतस्ततो न चेष्टन्ते, तर्हि हे रात्रे ! आवयोर्दुःखवृत्तान्तं को नयेत्, कश्चास्मत्पितृकुलयोः श्रावयेन्न कश्चिदपीत्यर्थः। अतोऽसाध्यं दुःखमेतत् तस्मात् (आहनः) हे हृदयपीडिके ! योऽयं (मत्-अन्येन) मद्दिवसाद्भिन्नः कोऽपि पुरुषस्तेन सह सङ्गमनं (तूयम्) शीघ्रं (याहि) प्राप्नुहि (तेन) तेन सह (वि वृह) गार्हस्थ्यभारमुद्यच्छ (रथ्येव चक्रा) रथस्य चक्रे-इव ॥८॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Yama: These watchful lights of divinities which sojourn here around in space neither stop nor deviate from their path, nor do they wink their eye. O love-lorn maiden, go soon to one of these, other than me and with him carry on the business of life like a chariot wheel.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    ग्रह, तारे आकाशात सदैव गतिशील असतात. सूर्याद्वारे त्यांना ज्योती प्राप्त होते. याशिवाय या मंत्रात हेही स्पष्ट आहे, की संतानोत्पादनात असमर्थ पतीद्वारे पत्नीला नियोगाची आज्ञा प्राप्त झाल्यावर जर ब्रह्मचारिणी राहू इच्छित असल्यास राहू शकते. संतानप्राप्तीची इच्छा असेल तर नियोग करावा. ॥८॥

    टिप्पणी

    समीक्षा - (सायण भाष्य) ‘ये स्पशोऽहोरात्रादयश्चाराश्चरन्ति’ येथे यम-यमीला सायण दिवस-रात्र समजत नाही तर १० व्या मंत्रात ‘अहोरात्रयोरस्मै यमाय कल्पितं भागम्’मध्ये यमाचा संबंध दिवस-रात्रीने वर्णित केलेला आहे. पारस्परिक विरोध आहे.

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