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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 101/ मन्त्र 3
    ऋषिः - बुधः सौम्यः देवता - विश्वे देवा ऋत्विजो वा छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यु॒नक्त॒ सीरा॒ वि यु॒गा त॑नुध्वं कृ॒ते योनौ॑ वपते॒ह बीज॑म् । गि॒रा च॑ श्रु॒ष्टिः सभ॑रा॒ अस॑न्नो॒ नेदी॑य॒ इत्सृ॒ण्य॑: प॒क्वमेया॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒नक्त॑ । सीरा॑ । वि । यु॒गा । त॒नु॒ध्व॒म् । कृ॒ते । योनौ॑ । व॒प॒त॒ । इ॒ह । बीज॑म् । गि॒रा । च॒ । श्रु॒ष्टिः । सऽभ॑राः । अस॑त् । नः॒ । नेदी॑यः । इत् । सृ॒ण्यः॑ । प॒क्वम् । आ । इ॒या॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युनक्त सीरा वि युगा तनुध्वं कृते योनौ वपतेह बीजम् । गिरा च श्रुष्टिः सभरा असन्नो नेदीय इत्सृण्य: पक्वमेयात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युनक्त । सीरा । वि । युगा । तनुध्वम् । कृते । योनौ । वपत । इह । बीजम् । गिरा । च । श्रुष्टिः । सऽभराः । असत् । नः । नेदीयः । इत् । सृण्यः । पक्वम् । आ । इयात् ॥ १०.१०१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 101; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सीरा) हलों को (युनक्त) युक्त करो जोड़ो बैलों के साथ (युगा) जोतों को (वि तनुध्वम्) बैलों में फैलाओ लगाओ (कृते योनौ) संस्कृत या सम्पन्न या छिन्न क्षेत्र भक्ति क्यारी हो जाने पर (इह बीजं वपत) बीज बोओ (च) और (गिरा श्रुष्टिः) अन्न की बाल (सभरा-असत्) पुष्ट हो जावे (नः-सृण्यः) हमारी दात्री-दराँती (इत्) अवश्य (पक्वं नेदीयः-एयात्) पके हुए नाल स्तम्भ के पास काटने को जाये ॥३॥

    भावार्थ

    हल चलाकर भूमि-खेत की क्यारी को तैयार करके बीज बोना पुनः सिञ्चन आदि करके जब अन्न का पौधा बढ़ जावे और बाल अन्न के दानों से भर जाये और पक जाये, तब उसे दराँती से काटकर अन्न प्राप्त करना चाहिये ॥३॥

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    विषय

    योगांगों का अनुष्ठान

    पदार्थ

    [१] [सीरा नदी नाम नि० ४ । १९ । ८ सीरा: नाडी : १ । १७४ । ९ द०] (सीराः युनक्त) = नाड़ियों को निरुद्ध प्राणों से युक्त करो। प्राणायाम करते हुए प्राणों को उस-उस नाड़ी में रोकने का प्रयत्न करो। (युगा वितनुध्वम्) = योग के अंगों को अपने जीवन में विशेषरूप से विस्तृत करो। [२] इन योगांगों के अनुष्ठान से (कृते) = संस्कृत किये हुए (इह योनौ) = इस शरीररूप क्षेत्र में (बीजं) = सब भूतों के बीजभूत प्रभु को (वपत) = स्थापित करो। [३] ऐसा करने पर (गिरा) = वेदवाणी के द्वारा (नः) = हमारे लिए (सभराः) = भरण-पोषण से युक्त (श्रुष्टि:) = [ hearing] ज्ञान का श्रवण (असत्) = हो । इस हृदय में प्रभु को स्थापित करें, प्रभु हमें हृदयस्थरूपेण वेदज्ञान को प्राप्त कराएँगे। [४] इस प्रकार (सृण्यः) = यह गतिशील जीव (इत्) = निश्चय से (पक्कं नेदीयः) = उस पूर्ण परिपक्व प्रभु के समीप (एयात्) = [आ इयात्] सर्वथा प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - [क] प्राणायाम के अभ्यासी होकर इडा आदि नाड़ियों में हम प्राण-निरोध करें, [ख] योगांगों का अनुष्ठान करें, [ग] संस्कृत क्षेत्र [शरीर] में प्रभु का दर्शन करने के लिए यत्नशील हों, [घ] वेदज्ञान को प्राप्त करें, [ङ] गतिशील होकर प्रभु के समीप हों ।

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    विषय

    हल आदि से क्षेत्राकर्षण, अन्नोत्पादन, तथा अध्यात्म में—योग द्वारा साधना करने का आदेश।

    भावार्थ

    आप लोग (सीरा युनक्त) हलों को जोतो, (युगा वि तनुध्वं) जूओं को विस्तृत करो। (कृते योनौ) सुसम्पादित क्षेत्र रूप स्थान में, (इह) इस लोक में (बीजं वपत) बीज को बोवो। और (गिरा च) वेदवाणी द्वारा (नः) हमारे (स-भराः श्रुष्टिः असत्) अन्न खूब पुष्ट हो और (सृण्यः) दातरी, (पक्वम् नेदीयः) पके धान्य के पास (आ इयात्) आवे। अध्यात्म में—(सीरा युनक्त) हे अभ्यासी जनो नाड़ियों में ध्यानयोग का अभ्यास करो। (युगा वि तनुध्वम्) योग के नाना अंगों को विशेष रूप से करो। (इह योनौ) इस लोक वा देह में (कृते) किये कर्म के (बीजम् वपत) बीज को वपन करो। (गिरा च श्रुष्टिः समराः असत्) वेद वाणी रूप आश्रय द्वारा उत्तम सुखप्रद श्रवण पूर्वक ज्ञान हो, और (सृण्यः) सरणशील जीव (पक्वम्) परिपक्व ज्ञान के प्रति प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्बुधः सौम्यः॥ देवता—विश्वेदेवा ऋत्विजो वा॥ छन्दः– १, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ८ त्रिष्टुप्। ३, १० विराट् त्रिष्टुप्। ७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४, ६ गायत्री। ५ बृहती। ९ विराड् जगती। १२ निचृज्जगती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सीरा युनक्त) सीराणि हलादीनि “सीरं कृषिसाधनं हलादिकम्” [यजु० १८।७ दयानन्दः] युङ्ध्वमनडुद्भिः सह (युगा वि तनुध्वम्) योक्त्राणि बलिवर्देषु वितानयत (कृते योनौ) सम्पन्नायां छिन्नायां योनौ क्षेत्रभक्त्यां सीतायाम् (इह बीजं वपत) अत्र बीजं निधापयत (च) अथ च (गिरा-श्रुष्टिः) अन्नस्य “अन्नं गिरः” [श० ८।५।३।५] “विराजः श्रुष्टि” [अथर्व० ३।१७।२] “अन्नं वै विराट्” [श० ७।५।३।१९] अन्नमाला-अन्नगुम्फा वा “अन्नं वै श्रुष्टिः” [श० ७।२।२।५] (सभरा-असत्) भरेण पोषणधर्मेण सह युक्ता भवेत् (नः-सृण्यः) अस्माकं दात्री (इत्-पक्वं नेदीयः-एयात्) खलु पक्वं स्तम्भं प्रति कर्त्तनाय समीपं गच्छेत् ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Take up the plough, yoke the bullocks and extend the process, and when the soil is prepared sow the seed. With songs of thanks and joy, let the crop grow green and mature, and when the grain is ripe, let the sickle approach to harvest the grain.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    नांगर चालवून शेतात वाफे तयार करून बीज पेरून पुन्हा सिंचन इत्यादी करून जेव्हा अन्नाचे रोप वाढते व अन्नाचे दाणे त्यात भरतात व पक्व होतात तेव्हा त्याची कापणी करून अन्न प्राप्त केले पाहिजे. ॥३॥

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