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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 113 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 113/ मन्त्र 10
    ऋषि: - शतप्रभेदनो वैरूपः देवता - इन्द्र: छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    त्वं पु॒रूण्या भ॑रा॒ स्वश्व्या॒ येभि॒र्मंसै॑ नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् । सु॒गेभि॒र्विश्वा॑ दुरि॒ता त॑रेम वि॒दो षु ण॑ उर्वि॒या गा॒धम॒द्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । पु॒रूणि॑ । आ । भ॒र॒ । सु॒ऽअश्व्या॑ । येभिः॑ । मंसै॑ । नि॒ऽवच॑नानि । शंस॑न् । सु॒ऽगेभिः॑ । विश्वा॑ । दुः॒ऽइ॒ता । त॒रे॒म॒ । वि॒दः । सु । नः॒ । उ॒र्वि॒या । गा॒धम् । अ॒द्य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं पुरूण्या भरा स्वश्व्या येभिर्मंसै निवचनानि शंसन् । सुगेभिर्विश्वा दुरिता तरेम विदो षु ण उर्विया गाधमद्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । पुरूणि । आ । भर । सुऽअश्व्या । येभिः । मंसै । निऽवचनानि । शंसन् । सुऽगेभिः । विश्वा । दुःऽइता । तरेम । विदः । सु । नः । उर्विया । गाधम् । अद्य ॥ १०.११३.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 113; मन्त्र » 10
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (त्वम्) हे ऐश्वर्यवन् राजन् ! तू (पुरूणि) बहुत (स्वश्व्या) श्रेष्ठ घोड़ों से युक्त बलों को-धनों को (आ भर) सम्पादित कर (येभिः) जिनके द्वारा-जिनको देखकर (निवचनानि) नम्रवचनों को (शंसन्) प्रशंसित करते हुए (मंसै) सुख मानूँ (सुगेभिः) सुगम धन बल उपायों से (विश्वा) सारे (दुरिता) दुःखों को (तरेम) पार करें (अद्य) इस अवसर पर (नः) हमारे लिये (उर्विया) बहुत महत्त्वपूर्ण (गाधम्) प्रतिष्ठापद को (सुविद-उ) भलीभाँति प्राप्त हो ॥१०॥

    भावार्थ

    राजा के राजपद पर प्रतिष्ठित होते समय प्रजा के प्रतिनिधि जन और विद्वान् राजा को प्रेरित करें, अच्छे घोड़े आदि यान्त्रिक संग्रामसाधनों से बल और धन का उपार्जन करें, उन्हें देखकर प्रशंसा करें और राजपद पर भलीभाँति प्रतिष्ठित हों, ऐसी आशा और आशीर्वाद के वचन बोलें ॥१०॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (त्वं पुरूणि स्वश्व्या-आ भर) हे इन्द्र-ऐश्वर्यवन् राजन् ! त्वं बहूनि श्रेष्ठाश्वयुक्तानि-बलानि धनानि सम्पादय (येभिः) यैः (निवचनानि-शंसन् मंसै) नम्रवचनानि प्रशंसमानः सुखं मन्ये “मनधातोः-लोटि विकरणस्य लुक्” (सुगेभिः) सुगमैः-धन-बलोपायैः (विश्वा दुरिता तरेम) सर्वाणि दुःखानि पारयेम (अद्य) अस्मिन्नवसरे काले वा (नः) अस्मभ्यं (उर्विया गाधं सु विद-उ) बहुमहत्त्वपूर्णं सुप्रतिष्ठपदं प्राप्नुहि ॥१०॥

    English (1)

    Meaning

    Indra, omnipotent ruler of the world, bear and bring us abundant wealth, honour and excellence flowing in from all sides so that I may be able to think and meditate with words of prayer, praise and thankfulness: O lord, let us get over all difficulties, evils and undesirables of the world by simple, natural and navigable paths of progress, and you now, today itself, firmly seat and settle yourself over the wide world and receive our homage and admiration as tribute of love at heart in faith.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाच्या राजपदावर प्रतिष्ठित होताना प्रजेचे प्रतिनिधी लोक व विद्वान यांनी राजाला प्रेरित करावे. चांगले घोडे इत्यादी तसेच यांत्रिक संग्राम साधनांनी बल व धनाचे उपार्जन करावे. त्यांना पाहून प्रशंसा करावी व राजपदावर चांगल्या प्रकारे प्रतिष्ठित व्हावे, अशी अपेक्षा करून आशीर्वादाचे वचन बोलावे. ॥१०॥

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