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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 113 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 113/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शतप्रभेदनो वैरूपः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराडार्चीजगती स्वरः - निषादः

    या वी॒र्या॑णि प्रथ॒मानि॒ कर्त्वा॑ महि॒त्वेभि॒र्यत॑मानौ समी॒यतु॑: । ध्वा॒न्तं तमोऽव॑ दध्वसे ह॒त इन्द्रो॑ म॒ह्ना पू॒र्वहू॑तावपत्यत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । वी॒र्या॑णि । प्र॒थ॒मानि॑ । कर्त्वा॑ । म॒हि॒ऽत्वेभिः॑ । यत॑मानौ । स॒म्ऽई॒यतुः॑ । ध्वा॒न्तम् । तमः॑ । अव॑ । द॒ध्व॒से॒ । ह॒तः । इन्द्रः॑ । म॒ह्ना । पू॒र्वऽहू॑तौ । अ॒प॒त्य॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या वीर्याणि प्रथमानि कर्त्वा महित्वेभिर्यतमानौ समीयतु: । ध्वान्तं तमोऽव दध्वसे हत इन्द्रो मह्ना पूर्वहूतावपत्यत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । वीर्याणि । प्रथमानि । कर्त्वा । महिऽत्वेभिः । यतमानौ । सम्ऽईयतुः । ध्वान्तम् । तमः । अव । दध्वसे । हतः । इन्द्रः । मह्ना । पूर्वऽहूतौ । अपत्यत ॥ १०.११३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 113; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (महित्वेभिः) महत्त्वपूर्ण गुणों या वीरों के साथ (या प्रथमानि) जो प्रमुख (कर्त्वा) कर्त्तव्य (वीर्याणि) बलों को (यतमानौ) यत्न करते हुए (समीयतुः) युद्ध लिये दो परस्पर मिलते हैं सङ्गत होते हैं परन्तु (हते) आवरक आक्रमणकारी के नष्ट होने पर (ध्वान्तं तमः) घना अन्धकार (अव दध्वसे) अवध्वस्त हो जाता है नष्ट हो जाता है। (इन्द्रः) राजा (मह्ना) अपने महत्त्व से (पूर्वहूतौ) प्रमुख सत्कारार्थ आह्वान में (अपत्यतः) स्वामित्व को प्राप्त करता है ॥७॥

    भावार्थ

    दो संघर्ष करनेवाले युद्ध में अपने-अपने वीरों के द्वारा युद्ध जीतने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु ऐश्वर्यवान् राजा प्रजाहितकर श्रेष्ठ कर्त्तव्यों को निभाता हुआ संग्राम में-आक्रमणकारी को नष्ट कर देता है, उसके नष्ट हो जाने पर अन्याय अन्धकार भी नष्ट हो जाता है, फिर ऐसा प्रतापी पुण्यवान् राजा सत्कारार्थ अपने राज्यैश्वर्य पर स्वामित्व करता है ॥७॥

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    विषय

    उदारता पूर्वक कर्म करना

    पदार्थ

    [१] (या) = जिन (प्रथमानि) = सर्वोत्कृष्ट (वीर्या) = शक्तिशाली कर्मों को (कर्त्वा) = करने के लिए (महित्वेभिः) = पूजा की वृत्ति के साथ (यतमानौ) = यत्न करते हुए (समीयतुः) = सम्यक् गतिवाले होते हैं, तो उस समय (ध्वान्तं तमः) = घना अन्धेरा, तीव्र अज्ञानान्धकार (अवदध्वसे) = विनष्ट होता है। यदि घर में पति-पत्नी अपने प्रथम कर्त्तव्यों को पालन करने के लिए प्रभु स्मरणपूर्वक यत्नशील रहते हैं तो वे अज्ञानान्धकार को दूर करने में समर्थ होते हैं और प्रकाशमय जीवन को बिता पाते हैं। [२] (हते) = इस प्रकार अज्ञानान्धकार के विनष्ट होने पर (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (पूर्वहूतौ) = प्रभु की प्रथम पुकार के होने पर, अर्थात् सर्वप्रथम प्रभु का स्मरण करके (मह्ना) = महिमा के साथ (अपत्यत) = गतिशील होता है। दिल को विशाल बनाकर सब कार्यों को करनेवाला होता है। तंगदिली से कार्यों को नहीं करता ।

    भावार्थ

    भावार्थ- पति-पत्नी मिलकर कर्त्तव्यपालन में प्रवृत्त होते हैं तो उनका जीवन प्रकाशमय बनता है। ऐसा होने पर एक जितेन्द्रिय पुरुष प्रभु स्मरण पूर्वक उत्कृष्ट मार्ग पर गति करता है ।

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    विषय

    स्पर्द्धाशील पक्षों में से एक के विजय हो जाने पर उसके स्वामित्व की स्थिति।

    भावार्थ

    (महित्वेभिः) अपने बड़े २ बलों से (यतमानौ) यत्न करते हुए युद्धार्थी दोनों पक्ष (सम् ईयतुः) परस्पर एक साथ आते हैं और (या) जिन (कर्त्वा) करने योग्य (प्रथमानि वीर्याणि) श्रेष्ठ श्रेष्ठ बल कार्यों को करते हैं तब (हते) बाधक शत्रु के नाश हो जाने पर (ध्वान्तं तमः) अति घोर अन्धकार (अव दध्वसे) नष्ट हो जाता है और (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, तेजस्वी, शत्रुहन्ता-वीर-विजयी (पूर्व-हूतौ) सबसे पूर्व, सर्वश्रेष्ठ आहुति या प्रजा के आह्वान पुकार या आदर-वचन पर ही अपने (मह्ना अपत्यत्) महान् सामर्थ्य से सबका स्वामी हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः शतप्रभदनो वैरूपः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:– १, ५ जगती। ३, ६, ९ विराड् जगती। ३ निचृज्जगती। ४ पादनिचृज्जगती। ७, ८ आर्चीस्वराड् जगती। १० पादनिचृत्त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (महित्वेभिः) महत्त्वपूर्णगुणैर्वीरैर्वा सह (या प्रथमानि कर्त्वा वीर्याणि) यानि प्रमुखानि कर्त्तव्यानि “कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः” [अष्टा० ३।४।१४] बलानि (यतमानौ समीयतुः) युद्धाय यत्नं कुर्वाणौ द्वौ परस्परं सङ्गच्छेताम्, परन्तु (हते) वृत्रे-आवरके हते सति (ध्वान्तं तमः) घनीभूतं तमः (अव दध्वसे) अवध्वस्तं भवति (इन्द्रः-मह्ना पूर्वहूतौ-अपत्यतः) इन्द्रः-ऐश्वर्यवान् राजा स्वमहत्त्वेन महाबलेन प्रमुखसत्कारार्थाह्वाने स्वामित्वं प्राप्नोति ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When two warriors, Indra and Vrtra, meet in battle doing mighty acts of the first order of valour with their respective valour and power, then, when the covering darkness is destroyed, Indra with his might rules the scene and dominates over the first invocation and institution of yajna.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    दोन राजे संघर्ष करणाऱ्या युद्धात आपापल्या वीरांद्वारे युद्ध जिंकण्याचा प्रयत्न करतात; परंतु ऐश्वर्यवान प्रजाहितदक्ष राजा श्रेष्ठ कर्तव्यांना निभावत संग्रामात आक्रमणकाऱ्यांना नष्ट करतो. त्यांच्या नष्ट होण्याने अन्याय अंधकार नष्ट होतो. नंतर असा पराक्रमी राजा सत्कारार्थ आपल्या राज्यैश्वर्याचा स्वामी बनतो. ॥७॥

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