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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 119 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 119/ मन्त्र 10
    ऋषिः - लबः ऐन्द्रः देवता - आत्मस्तुतिः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ओ॒षमित्पृ॑थि॒वीम॒हं ज॒ङ्घना॑नी॒ह वे॒ह वा॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओ॒षम् । इत् । पृ॒थि॒वीम् । अ॒हम् । ज॒ङ्घना॑नि । इ॒ह । वा॒ । इ॒ह । वा॒ । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषमित्पृथिवीमहं जङ्घनानीह वेह वा । कुवित्सोमस्यापामिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओषम् । इत् । पृथिवीम् । अहम् । जङ्घनानि । इह । वा । इह । वा । कुवित् । सोमस्य । अपाम् । इति ॥ १०.११९.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 119; मन्त्र » 10
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (अहम्) मैं (ओषम्-इत्) दाहक सूर्य को अवश्य (पृथिवीम्) अन्तरिक्ष के प्रति (इह वा-इह वा) यहाँ या वहाँ (जङ्घनानि) बहुत प्रेरित करता हूँ (कुवित्०) पूर्ववत् ॥१०॥

    भावार्थ

    परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान करनेवाला प्रखर तापवाले सूर्य को इस अन्तरिक्ष में यहाँ इच्छानुसार उपयोग में लाता है या ध्यान द्वारा भी उपयोग में लाता है ॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अहम्-ओषम्-इत्) अहं दाहकं सूर्यं हि (पृथिवीम्) अन्तरिक्षं प्रति “पृथिवी-अन्तरिक्षनाम” [निघ० १।३] (इह वा-इह वा जङ्घनानि) अत्र वाऽमुत्र वा भृशं प्रेरयामि-प्रक्षिपामि “हन हिंसागत्योः” [अदादि०] गत्यर्थोऽत्र लक्ष्यते ततो यङ्लुगन्तप्रयोगः (कुवित्०) पूर्ववत् ॥१०॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And I can heat up this earthly body to light and take it here, there, anywhere, for I have drunk of the soma of the spirit divine.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याच्या आनंदरसाचे खूप पान करणारा प्रखर दाहक सूर्याला या अंतरिक्षात इच्छेनुसार उपयोगात आणतो किंवा ध्यानाद्वारेही उपयोगात आणतो. ॥१०॥

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