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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 119 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 119/ मन्त्र 6
    ऋषि: - लबः ऐन्द्रः देवता - आत्मस्तुतिः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    न॒हि मे॑ अक्षि॒पच्च॒नाच्छा॑न्त्सु॒: पञ्च॑ कृ॒ष्टय॑: । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न॒हि । मे॒ । अ॒क्षि॒ऽपत् । च॒न । अच्छा॑न्त्सुः । पञ्च॑ । कृ॒ष्टयः॑ । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नहि मे अक्षिपच्चनाच्छान्त्सु: पञ्च कृष्टय: । कुवित्सोमस्यापामिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नहि । मे । अक्षिऽपत् । चन । अच्छान्त्सुः । पञ्च । कृष्टयः । कुवित् । सोमस्य । अपाम् । इति ॥ १०.११९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 119; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (पञ्च कृष्टयः) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद ये पाँचों जन (मे-अक्षिपत्) परमात्मा में प्रवृत्त मेरे नेत्रपात-नेत्रसञ्चार को (न हि-चन) नहीं कोई (अच्छान्त्सुः) आच्छादन या अवरोध कर सकते, क्योंकि मैंने परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान किया है ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान करनेवाले के नेत्रसञ्चार-दर्शनव्यवहार को कोई रोक नहीं सकता ॥६॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पञ्च कृष्टयः) ब्राह्मक्षत्रियविट्शूद्रनिषादाः पञ्चजनाः “कृष्टयः-मनुष्यनाम” [निघ० २।३] (मे-अक्षिपत्) मम परमात्मनि प्रवृत्तं नेत्रपातं-नेत्रसञ्चारं दूरदर्शित्वं (न हि चन-अच्छान्त्सुः) न हि कदाचिदावृण्वन्ति-न हि अवरोधयन्ति (कुवित् सोमस्य अपाम् इति) पूर्ववत् ॥६॥

    English (1)

    Meaning

    Nor can all the five communities elude or blur the vision of my eye and what I see, for I have drunk of the soma of the divine spirit.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याच्या आनंदरसाचे अधिक पान करणाऱ्या नेत्र सञ्चार - दर्शन व्यवहाराला कोणी रोखू शकत नाही. ॥६॥

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