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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 119 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 119/ मन्त्र 8
    ऋषि: - लबः ऐन्द्रः देवता - आत्मस्तुतिः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भि द्यां म॑हि॒ना भु॑वम॒भी॒३॒॑मां पृ॑थि॒वीं म॒हीम् । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । द्याम् । म॒हि॒ना । भु॒व॒म् । अ॒भि । इ॒माम् । पृ॒थि॒वीम् । म॒हीम् । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि द्यां महिना भुवमभी३मां पृथिवीं महीम् । कुवित्सोमस्यापामिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । द्याम् । महिना । भुवम् । अभि । इमाम् । पृथिवीम् । महीम् । कुवित् । सोमस्य । अपाम् । इति ॥ १०.११९.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 119; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (महिना) मैं अपनी महिमा से महान् सामर्थ्य से (द्याम्-अभि भुवम्) द्युलोक को अभिभूत करता हूँ (इमां महीम्) इस महती (पृथिवीम्-अभि) पृथिवी को अभिभूत करता हूँ, क्योंकि मैंने परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान किया है ॥८॥

    भावार्थ

    परमात्मा के रस का बहुत पान करनेवाला द्युलोक और पृथिवीलोक को भी अपने ज्ञान में रखता है ॥८॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (महिना द्याम्-अभि भुवम्) अहं महिम्ना महासामर्थ्येन द्युलोकमभिभवामि  (इमां महीं पृथिवीम्-अभि) एतां महतीं पृथिवीमभिभवामि (कुवित्०) पूर्ववत् ॥८॥

    English (1)

    Meaning

    By the grandeur of my divine experience I realise the greatness of the solar regions and the greatness of this great earth, for I have drunk of the soma of the divine spirit.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याच्या रसाचे अधिक पान करणारा द्युलोक व पृथ्वीलोकाचेही ज्ञान प्राप्त करतो. ॥८॥

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