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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 119 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 119/ मन्त्र 9
    ऋषि: - लबः ऐन्द्रः देवता - आत्मस्तुतिः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    हन्ता॒हं पृ॑थि॒वीमि॒मां नि द॑धानी॒ह वे॒ह वा॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हन्त॑ । अ॒हम् । पृ॒थि॒वीम् । इ॒माम् । नि । द॒धा॒नि॒ । इ॒ह । वा॒ । इ॒ह । वा॒ । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हन्ताहं पृथिवीमिमां नि दधानीह वेह वा । कुवित्सोमस्यापामिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हन्त । अहम् । पृथिवीम् । इमाम् । नि । दधानि । इह । वा । इह । वा । कुवित् । सोमस्य । अपाम् । इति ॥ १०.११९.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 119; मन्त्र » 9
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (हन्त-अहम्) अरे मैं (इमां पृथिवीम्) इस पार्थिव तनू को देह को (इह वा नि दधानि) इस लोक में या इस योगभूमि में (इह वा) अथवा उस मोक्ष में या योगभूमि में नियुक्त करूँ ॥९॥

    भावार्थ

    परमात्मा के आनन्दरस को बहुत पी चुकनेवाला विचार किया करता है कि अपनी इस देह को इस लोक में या योगभूमि में अभी रखूँ या मोक्ष में या योगभूमि में रखूँ, इस प्रकार उसका अधिकार हो जाता है ॥९॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (हन्त-अहम्-इमां पृथिवीम्-इह नि दधानि-इह वा-इह वा) अरे-अहं खल्विमां पार्थिवीं तनूं “यच्छरीरं सा पृथिवी” [ऐ० आ० २।३।३] इहात्र लोके योगभूमौ यद्वाऽत्रामुष्मिन् मोक्षे योगभूमौ निदधानि, (कुवित्०) पूर्ववत् ॥९॥

    English (1)

    Meaning

    And may be I shall hold the beauty and generosity of this earthly existence here or, later, there, for I have drunk of the soma of the spirit divine.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याचा आनंदरस अधिक पिणारा हा विचार करतो की आपल्या देहाला या लोकात ठेवू, की योगभूमीत ठेवू, की मोक्षात, अशी त्याची पात्रता निर्माण होते. ॥९॥

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