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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 134 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 134/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मान्धाता यौवनाश्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - महापङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    दी॒र्घं ह्य॑ङ्कु॒शं य॑था॒ शक्तिं॒ बिभ॑र्षि मन्तुमः । पूर्वे॑ण मघवन्प॒दाजो व॒यां यथा॑ यमो दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दी॒र्घम् । हि । अ॒ङ्कु॒शम् । य॒था॒ । शक्ति॑म् । बिभ॑र्षि । म॒न्तु॒ऽमः॒ । पूर्वे॑ण । म॒घ॒ऽव॒न् । प॒दा । अ॒जः । व॒याम् । यथा॑ । य॒मः॒ । दे॒वी । जनि॑त्री । अ॒जी॒ज॒न॒त् । भ॒द्रा । जनि॑त्री । अ॒जी॒ज॒न॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दीर्घं ह्यङ्कुशं यथा शक्तिं बिभर्षि मन्तुमः । पूर्वेण मघवन्पदाजो वयां यथा यमो देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दीर्घम् । हि । अङ्कुशम् । यथा । शक्तिम् । बिभर्षि । मन्तुऽमः । पूर्वेण । मघऽवन् । पदा । अजः । वयाम् । यथा । यमः । देवी । जनित्री । अजीजनत् । भद्रा । जनित्री । अजीजनत् ॥ १०.१३४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 134; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मन्तुमः) हे ज्ञानवन् राजन् ! (दीर्घम्-अङ्कुशम्) दीर्घ अङ्कुश (यथा) जैसी (शक्तिं बिभर्षि) तू शक्ति को धारण करता है, अतः (मघवन्) हे धनवन् राजन् ! (पूर्वेण पदा) अगले पैर-पैरों से (अजः-यथा) बकरा जैसे (वयां यमः) शाखा को अपने अधीन करता है, वैसे ही तू शत्रु को स्वाधीन कर (देवी०) पूर्ववत् ॥६॥

    भावार्थ

    राजा को चाहिए कि दीर्घ, तीक्ष्ण अङ्कुश की भाँति शक्ति को धारण करे और अपने प्रथम आक्रमण से शत्रु को स्वाधीन करे, जैसे बकरा शाखा को अपने अगले पैरों से अपने वश करता है ॥६॥

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    विषय

    संयम के अनुपात में शक्ति

    पदार्थ

    [१] हे (मन्तुमः) = विचारशील पुरुष ! तू (यथा) = जैसे हि ही (दीर्घं अङ्कुशम्) = दीर्घ अंकुश होता है, उसी अनुपात में शक्ति (बिभर्षि) = शक्ति को धारण करता है। अंकुश हाथी का नियामक है। सो अंकुश शब्द यहाँ नियमन के भाव का सूचक है। जितना नियमन, उतना शक्ति का धारण । इन्द्रियों को वश में करके ही तो शक्ति का रक्षण होता है । [२] हे (मघवन्) = पाप से ऊपर उठने के कारण [मा-अघ] ऐश्वर्यवान् ! (यथा) = जैसे (पूर्वेण पदा) = अगले पाँव से (अजः) = बकरा (वयाम्) = शाखा को पकड़ता है तू भी (पूर्वेण पदा) = प्रथम कदम के हेतु से, अर्थात् शरीर के स्वास्थ्य के हेतु से ही (अजः) = गति के द्वारा बुराइयों को परे फेंकनेवाला वयाम्-संसारवृक्ष की शाखा को ग्रहण करता है। जीव ने तीन कदम रखने होते हैं। प्रथम कदम में वह पृथिवी लोक [शक्ति] को मापता है, दूसरे में अन्तरिक्ष [हृदय] को तथा तीसरे में द्युलोक [मस्तिष्क] को । इन कदमों को रखकर ही यह त्रिविक्रम बनता है । संसारवृक्ष की शाखा के फलों को यह पहले कदम के रखने के हेतु से ग्रहण करता है, अर्थात् स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ही खाता है। इस प्रकार तू (यमः) = अपना नियन्ता बनता है, अपनी इन्द्रियों, मन, बुद्धि आदि का नियमन करता है। इस नियमन करनेवाले तेरे लिए देवी (जनित्री) = यह व्यवहार साधिका उत्पादिका प्रकृति (अजीजनत्) = प्रभु की महिमा को प्रकट करती है । (भद्रा) = यह कल्याण करनेवाली (जनित्री) = उत्पादिका प्रकृति (अजीजनत्) = प्रभु की महिमा का प्रार्दुभाव करती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ-संयम के अनुपात में हमें शक्ति प्राप्त होती है। संसार का हम उतना ग्रहण करें जितना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हो। इस प्रकार यम- नियन्ता बनने पर हमें सर्वत्र प्रभु की महिमा दिखेगी।

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    विषय

    व्यापक प्रकृति को धारण करने में अज के दृष्टान्त से सर्वनियन्ता के कार्य का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (मन्तुमः) ज्ञानवन् ! हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! तू (शक्तिं) शक्ति को (दीर्घं हि अंकुशं यथा) दीर्घ अंकुश के समान ही (विभर्षि) धारण करता है। तू (यमः) सर्वनियन्ता होकर (अजः यथा) जिस प्रकार बकरा (पूर्वेण पदा वयाम्) अपने अगले पैर से शाखा को पकड़ उसके पत्ते खाजाता है उसी प्रकार तू (अजः) अजन्मा, जगत् का चालक (पूर्वेण पदा) अपने सर्वोत्कृष्ट ज्ञान सामर्थ्य से (वयां) व्यापक प्रकृति को (विभर्षि) धारण करता और व्यापता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः मान्धाता यौवनाश्वः। ६, ७ गोधा॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:—१—६ महापंक्तिः। ७ पंक्तिः॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मन्तुमः) हे ज्ञानवन् ! मन्तुर्ज्ञानं तद्वन् “मतुवसो रु सम्बुद्धौ छन्दसि” [अष्टा० ८।३।१] इति नकारस्य रुत्वं (दीर्घम्-अङ्कुशं यथा) दीर्घमङ्कुशमिव (शक्तिं बिभर्षि) शक्तिं त्वं धारयसि, अतः (मघवन् पूर्वेण-पदा-अजः-यथा वयां यमः) हे धनवन् राजन् ! यथाऽजः पशुरग्रपादेन पद्भ्यां शाखां स्वाधीनं करोति तद्वत् त्वं-शत्रुं यमय स्वाधीनं कुरु (देवी०) पूर्ववत् ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Lord of intelligence, imagination and foresight, as an elephant driver wields the hook to control the strength and direction of the elephant, so you wield your power of far-reaching potential to control the world order, its forces and direction, and as the eternal ruler and controller holds the reins of time, so do you, O lord of might and magnanimity, hold the reins of the social order steps ahead of possibility long before actuality. The divine mother enlightens you, the gracious mother exalts you.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने दीर्घ, तीक्ष्ण अंकुशाप्रमाणे शक्ती धारण करावी व आपल्या प्रथम आक्रमणाने शत्रूला स्वाधीन करावे. जसे बकरा झाडाच्या फांदीला पुढच्या पायाने आपल्या वशमध्ये ठेवतो. ॥६॥

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