ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 142/ मन्त्र 3
उ॒त वा उ॒ परि॑ वृणक्षि॒ बप्स॑द्ब॒होर॑ग्न॒ उल॑पस्य स्वधावः । उ॒त खि॒ल्या उ॒र्वरा॑णां भवन्ति॒ मा ते॑ हे॒तिं तवि॑षीं चुक्रुधाम ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । वा॒ । ऊँ॒ इति॑ । परि॑ । वृ॒ण॒क्षि॒ । बप्स॑त् । ब॒होः । अ॒ग्ने॒ । उल॑पस्य । स्व॒धा॒ऽवः॒ । उ॒त । खि॒ल्याः । उ॒र्वरा॑णाम् । भ॒व॒न्ति॒ । मा । ते॒ । हे॒तिम् । तवि॑षीम् । चु॒क्रु॒धा॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत वा उ परि वृणक्षि बप्सद्बहोरग्न उलपस्य स्वधावः । उत खिल्या उर्वराणां भवन्ति मा ते हेतिं तविषीं चुक्रुधाम ॥
स्वर रहित पद पाठउत । वा । ऊँ इति । परि । वृणक्षि । बप्सत् । बहोः । अग्ने । उलपस्य । स्वधाऽवः । उत । खिल्याः । उर्वराणाम् । भवन्ति । मा । ते । हेतिम् । तविषीम् । चुक्रुधाम ॥ १०.१४२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 142; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(उत वै-उ) हाँ तो फिर (स्वधावः-अग्ने) हे स्वाधार ज्ञान के प्रकाशक परमात्मन् ! (बहोः-उलपस्य) बहुविध कोमल तृण की भाँति संवरण करनेवाले पाप या अज्ञान के (बप्सत्) स्वोपासक में ज्ञानप्रकाश करता हुआ (परि वृणक्षि) परितः नष्ट करता है (उत) और (उर्वराणां-खिल्याः-भवन्ति) तेरे संसर्ग से श्रेष्ठ भूमिवाले मनुष्यों के खण्डप्रदेश भिन्न-भिन्न अङ्गवाले हो जाते हैं, तेरे प्रसाद से सम्पन्न बन जाते हैं (ते तविषीं हेतिम्) तेरी बलवती प्रहरणशक्ति को (मा चुक्रुधाम) हम क्रोधित न करें ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा स्वाधार ज्ञानप्रकाशक है, वह कोमल तृण के समान ढाँपनेवाले अज्ञान या पाप को नष्ट कर देता है, जबकि उपासक में अपना ज्ञानप्रकाश भरता है और जिसकी श्रेष्ठ भूमि आन्तरिक स्थिति होती है, उसके खण्ड-खण्ड या भिन्न-भिन्न अङ्ग परमात्मा के प्रसाद से सुसम्पन्न हो जाते हैं, प्रतिकूल-आचरण से उसकी बलवती प्रहरशक्ति को क्रोधित न करें ॥३॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उत वै-उ) अपि हि खलु (स्वधावः-अग्ने) हे स्वाधार ज्ञानप्रकाशक परमात्मन् ! (बहोः-उलपस्य-बप्सत् परि वृणक्षि) बहुविधस्य कोमलतृणस्येव संवरणस्य पापस्याज्ञानस्य “वल संवरणे” कप् प्रत्ययात् निपातितः-उलपः, स्वोपासके ज्ञानप्रकाशं कुर्वन् परिवर्जयसि परिनाशयसि (उत) अपि च (उर्वराणां खिल्याः-भवन्ति) तव संसर्गात् खलु श्रेष्ठभूमीनां जनानां खण्डप्रदेशाः-भिन्नभिन्नाङ्गा ये भवन्ति तव प्रसादात् सुसम्पन्ना भवन्ति-भवन्तु (ते तविषीं हेतिं मा चुक्रुधाम) तव बलवतीं प्रहरणशक्तिं न क्रोधयुक्तां कुर्याम ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, self-refulgent fire and power, when you burn and devour heaps of grass, sometimes you spare patches of green and sometimes vast areas of fertile lands become wastelands. Let us understand this mystery and the way so that we do not excite the onslaught of your blazing power of destruction.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा स्वाधार ज्ञानप्रकाशक आहे. तो कोमल तृणाप्रमाणे झाकणाऱ्या अज्ञान किंवा पापाला नष्ट करतो. उपासकात आपला ज्ञानप्रकाश करतो व ज्याची आंतरिक स्थिती श्रेष्ठ असते. त्याचे खंडखंड किंवा भिन्नभिन्न अंग परमात्म्याच्या प्रसादाने सुसंपन्न होतात. प्रतिकूल आचरणाने त्याच्या बलवती प्रहरण शक्तीला क्रोधित करता कामा नये. ॥३॥
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