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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 151 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 151/ मन्त्र 3
    ऋषिः - श्रद्धा कामायनी देवता - श्रद्धा छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यथा॑ दे॒वा असु॑रेषु श्र॒द्धामु॒ग्रेषु॑ चक्रि॒रे । ए॒वं भो॒जेषु॒ यज्व॑स्व॒स्माक॑मुदि॒तं कृ॑धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । दे॒वाः । असु॑रेषु । श्र॒द्धाम् । उ॒ग्रेषु॑ । च॒क्रि॒रे । ए॒वम् । भो॒जेषु॑ । यज्व॑ऽसु । अ॒स्माक॑म् । उ॒दि॒तम् । कृ॒धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा देवा असुरेषु श्रद्धामुग्रेषु चक्रिरे । एवं भोजेषु यज्वस्वस्माकमुदितं कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । देवाः । असुरेषु । श्रद्धाम् । उग्रेषु । चक्रिरे । एवम् । भोजेषु । यज्वऽसु । अस्माकम् । उदितम् । कृधि ॥ १०.१५१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 151; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (उग्रेषु) क्रूर (असुरेषु) दुष्ट जनों के ऊपर (देवाः) मुमुक्षु विद्वान् (श्रद्धाम्) यथोचित धारणा-दैवी शक्ति को (चक्रिरे) प्रेरित करते हैं (एवं भोजेषु) ऐसे ही भोजन करानेवालों या देनेवालों में (यज्वसु) यज्ञ करानेवालों में (अस्माकम्) हमारे (उदितम्) आशीर्वादवचन को (कृधि) कल्याणप्रद कर ॥३॥

    भावार्थ

    जीवन्मुक्त ऊँचे विद्वानों को चाहिये कि वे अपनी दैवी शक्ति का उपयोग उपदेश आदि द्वारा क्रूर दुष्ट जनों के प्रति प्रेरित करें, उनको यथार्थ मार्ग पर लावें, ऐसा करने में वे सफल हों, इसी प्रकार भोजन खिलानेवाले और यज्ञ करानेवाले यजमानों के प्रति अपना हार्दिक आशीर्वाद देकर उनका कल्याण साधें ॥३॥

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    Bhajan

    वैदिक मन्त्र
    यथा देवा असुरेषु श्रद्धा मुग्रेषु चक्रिरे।
    एवं भोजेषु यज्वस्भाकमुदितं कृधि।।
                              ऋ•१०.१५१.३
             वैदिक भजन ११२० वां
                    राग छायानट
        गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
                   ताल अद्धा
    श्रद्धा बल करता दिव्य काज
    जो भय का करता विनाश।

    श्रद्धा बल......
    देश धर्म जाति का गौरव श्रद्धा ही मन में उप जाए श्रद्धालु बलिदानी बनके होकर अभय करें प्राण- त्याग।।
    श्रद्धा बल..........
    ऐसे तो तेजस्वी होते
    और विद्वानों के श्रद्धा भाजन
    जागरूक सद्भाव में रहते।
    आदर सत्कार के पात्र ।।
    श्रद्धा बल.........
    भूखों को भरपेट भोजन दें
    नंगू को आच्छादित कर दें
    श्रद्धा प्रीति से सत्कार दें
    अभ्युदय से पाए प्रकाश।।
    श्रद्धा बल........
                    शब्दार्थ:-
    श्रद्धा=सत्य का धारण करना
    आच्छादित=ढक देना
    अभ्युदय =उन्नति, मनोरथ की सिद्धि
     
    वैदिक मन्त्रों के भजनों की द्वितीय श्रृंखला का ११३ वां वैदिक भजन ।
    और प्रारम्भ से क्रमबद्ध अबतक का ११२० वां वैदिक भजन 
    वैदिक संगीत प्रेमी श्रोताओं को  हार्दिक शुभकामनाएं !
    🕉️🙏🌷🌺🥀🌹💐

    Vyakhya

    श्रद्धा का रहस्य-3
    जो देश के लिए, जाति के लिए, धर्म के लिए, किसी सत्कार्य के लिए, अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं, ऐसे तेजस्वी तो विद्वानों तक के श्रद्धाभाजन होते हैं। कृषि कार्य के लिए प्राण तभी दिए जा सकते हैं, जब उस कार्य के लिये हृदय में श्रद्धा हो।
    तात्पर्य है की श्रद्धा इतना बड़ा बल पैदा कर देती है कि मनुष्य सिर धड़ की बाजी लगाने को भी तत्पर हो जाता है। मनुष्य को चाहिए, कि अपने अंदर श्रद्धा का श्रेष्ठ भाव सदा जागरूक रखे, और श्रद्धेय कार्य करने वालों का सदा आदर सत्कार करता रहे। अधिक ना हो सके, तो भूखों को भोजन, दंगों को वस्त्र आदि दे, किन्तु श्रद्धा, प्रीति और सत्कार से दे। इसी प्रकार देने से उसका अभ्युदय होगा।

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    विषय

    श्रद्धा से शत्रु विजय

    पदार्थ

    [१] (यथा) = जैसे (देवा:) = देव (उग्रेषु) = अत्यन्त प्रबल (असुरेषु) = असुरों के विषय में, 'इन असुरों को हम अवश्य पराजित कर पायेंगे' इस प्रकार (श्रद्धां चक्रिरे) = श्रद्धा को करते हैं । अर्थात् इस पूर्ण विश्वास के साथ चलते हैं कि हम असुरों को पराजित करनेवाले होंगे। यह पूर्ण विश्वास ही उन्हें असुरों को पराभूत करने में समर्थ करता है । [२] (एवम्) = इस प्रकार (भोजेषु) = अतिथि यज्ञ में अतिथियों को भोजन करानेवालों में, (यज्वसु) = यज्ञशील पुरुषों में (अस्माकं उदिते) = हमारे इस श्रद्धा के महत्त्व प्रतिपादक कथन को (कृधि) = श्रद्धेय करिये । अर्थात् ये भोज व यज्वा पुरुष श्रद्धा के महत्त्व को समझते हुए भोज व यज्वा बने ही रहें। इन यज्ञों से ये पराङ्मुख न हो जाएँ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हमें श्रद्धा ही शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ करेगी। |

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    विषय

    श्रद्धा योग्य वचन होने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (देवाः) धनादि और विजयादि के चाहने वाले जन (उग्रेषु) शत्रुओं को भयप्रद बलशाली (असुरेषु) प्राण, वृत्ति आदि देने वाले, एवं बलवान् पुरुषों पर (श्रद्धाम्) श्रद्धा को (चक्रिरे) कर लेते हैं उनको उनपर पूर्ण विश्वास होजाता है इसी प्रकार (भोजेषु यज्वसु) सर्व पालक और दानशील पुरुषों में (अस्माकम्) उदितं) हमारा वचन, वा उदय भी श्रद्धा योग्य, विश्वास्य, दृढ़ (कृधि) बना।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः श्रद्धा कामायनी॥ देवता—श्रद्धा॥ छन्दः- १, ४, ५ अनुष्टुप्। २ विराडनुष्टुप्। ३ निचृदनुष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (यथा-उग्रेषु असुरेषु देवाः श्रद्धां चक्रिरे) जैसे क्रूर असुरों स्वस्थिति से अस्तव्यस्त नष्ट भ्रष्ट करने वाले दुर्भावों या दुष्ट जनों के ऊपर देव-मुमुक्षु जन विद्वान् श्रद्धा यथावद्धारणाअपनी दैवी शक्ति को प्रेरित किया करते हैं अपने को सफल बनाने के लिये (एवं भोजेषु यज्वसु) इसी प्रकार भोजन, खिलाने वालों में और यजन करने वाले यजमानों में हमारे कहे उनके प्रति आशीर्वाद को हे श्रद्धे ! तू प्रभावकारी कर हमारे भक्त बनाने के लिये ॥३॥

    टिप्पणी

    “पुरुषगो ऽभिलाषविशेषः” ( सायणः )

    विशेष

    ऋषिः- श्रद्धा कामायनी (काम अर्थात् अभिलाष-इच्छाभाव की पुत्री-इच्छाभाव के पूरे होने पर पालित सुरक्षित आत्मभावना वाली व्यक्ति) देवता—श्रद्धा (इच्छाभाव की माता-जननी निश्चयात्मिका प्रवृत्ति या सत्यधारणा "श्रद्धां कामस्य मातरं हविषा वर्धयामसि" (तै० २।८।८।८) यथावद्धारणा-आत्मभावना होने पर काम-इच्छा भावना एक दिव्य सक्ता या दिव्य शक्ति)

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यथा-उग्रेषु-असुरेषु) यथा क्रूरेषु-अस्तव्यस्तेषु दुष्टजनेषु तेषामुपरि (देवाः श्रद्धां चक्रिरे) मुमुक्षवो विद्वांसो यथोचितधारणां दैवीं शक्तिं प्रेरयन्ति (एवं भोजेषु यज्वसु अस्माकम्-उदितम् कृधि) एवं भोजनदातृषु तथा यजमानेषु खल्वस्माकमिदमाशीर्वचनं कल्याणप्रदं कुरु ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Just as noble and creative powers have faith in how they must deal with the cruel and the evil doers, so let my word of faith and truth be justified in relation to the generous and the yajnics for their success and fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवनमुक्त विद्वानांनी आपल्या दैवी शक्तीचा उपयोग करून उपदेश इत्यादीद्वारे क्रूर दुष्ट जनांना प्रेरित करावे. त्यांना यथार्थ मार्गावर आणावे. असे करण्यात ते सफल व्हावेत. त्या प्रकारचे भोजन करविणाऱ्यांनी व यज्ञ करविणाऱ्यांनी यजमानाला आपला हार्दिक आशीर्वाद देऊन त्यांचे कल्याण करावे. ॥३॥

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