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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 153 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 153/ मन्त्र 5
    ऋषि: - इन्द्रमातरो देवजामयः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वमि॑न्द्राभि॒भूर॑सि॒ विश्वा॑ जा॒तान्योज॑सा । स विश्वा॒ भुव॒ आभ॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । इ॒न्द्र॒ । अ॒भि॒ऽभूः । अ॒सि॒ । विश्वा॑ । जा॒तानि॑ । ओज॑सा । सः । विश्वा॑ । भुवः॑ । आ । अ॒भ॒वः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा । स विश्वा भुव आभवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । इन्द्र । अभिऽभूः । असि । विश्वा । जातानि । ओजसा । सः । विश्वा । भुवः । आ । अभवः ॥ १०.१५३.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 153; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर वा राजन् ! (त्वम्) तू (ओजसा) आत्मबल से (विश्वा जातानि) सब प्रसिद्ध हुई वस्तुओं पर (अभिभूः-असि) अभिभविता-अधिकर्त्ता है (सः) वह तू (विश्वाः-भुवः) सारी लोकभूमियों को या बढ़ी-चढ़ी शत्रुसेनाओं को (आभवः) स्वाधीन करता है या कर ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा सब उत्पन्न हुई वस्तुओं पर अधिकार करता है और सब लोकभूमियों को अपने अधीन रखता है और चलाता है, इसी प्रकार राजा राष्ट्र की समस्त खनिज वस्तुओं पर अधिकार करे तथा बढ़ी-चढ़ी शत्रु की सेना पर भी अपना प्रभाव रखे ॥५॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्र त्वम्) हे परमेश्वर ! राजन् वा ! त्वम् (ओजसा विश्वा जातानि-अभिभूः-असि) आत्मबलेन सर्वाणि प्रसिद्धिं गतानि वस्तूनि खल्वभिभविता-भवसि (सः-विश्वाः-भुवः-आभवः) स त्वं सर्वाः-लोक-भूमीः-भवित्रीः शत्रुसेनाः-वा स्वाधीने करोषि कुरु वा ॥५॥

    English (1)

    Meaning

    You, Indra, are the supreme ruler over all things come into existence by your self-refulgence which indeed is the light and life of all the worlds. O ruler, you too be that all over the world.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    उत्पन्न होणाऱ्या सर्व वस्तूंवर परमात्म्याचा अधिकार असतो व सर्व लोकभूमींना आपल्या अधीन ठेवतो व चालवितो. याच प्रकारे राष्ट्राच्या संपूर्ण खनिज वस्तूंवर राजाचा अधिकार असतो व प्रबल शत्रू सेनेवरही आपला प्रभाव पाडतो. ॥५॥

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