ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 158/ मन्त्र 3
चक्षु॑र्नो दे॒वः स॑वि॒ता चक्षु॑र्न उ॒त पर्व॑तः । चक्षु॑र्धा॒ता द॑धातु नः ॥
स्वर सहित पद पाठचक्षुः॑ । नः॒ । दे॒वः । स॒वि॒ता । चक्षुः॑ । नः॒ । उ॒त । पर्व॑तः । चक्षुः॑ । धा॒ता । द॒धा॒तु॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः । चक्षुर्धाता दधातु नः ॥
स्वर रहित पद पाठचक्षुः । नः । देवः । सविता । चक्षुः । नः । उत । पर्वतः । चक्षुः । धाता । दधातु । नः ॥ १०.१५८.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 158; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देवः सविता) प्रेरक सूर्य देव (नः-चक्षुः-दधातु) हमारे लिये दर्शनशक्ति धारण करावे (उत पर्वतः-नः-चक्षुः) हरा पर्वत हमारे लिए दर्शनशक्ति धारण करावे (धाता नः चक्षुः) विधाता परमात्मा हमारे लिये दर्शनशक्ति धारण करावे ॥३॥
भावार्थ
दर्शनशक्ति साक्षात् सूर्य से-सूर्य के प्रकाश से मिलती है, परन्तु प्रातःकाल कुछ सूर्य को देखने को मिलती है, हरे पर्वत को देखने से भी नेत्रशक्ति बढ़ा करती है, परमात्मा का ध्यान करने से नेत्रों में बल आता है ॥३॥
विषय
चक्षु
पदार्थ
[१] यह (सविता) = सबको कार्यों में प्रवृत्त करनेवाला (देवः) = प्रकाशमय सूर्य (नः) = हमारे लिये (चक्षुः दधातु) = दृष्टिशक्ति का धारण करनेवाला है। सूर्य ही तो वस्तुतः चक्षु के रूप में [आँखों अक्षि गोलको] में रह रहा है । (उत) = और (नः) = हमारे लिये (पर्वत:) = [A tree] वृक्ष (चक्षुः) = दृष्टिशक्ति को दे। वृक्षों की हरियावल आँखों के लिये अत्यन्त हितकर होती है । [२] धाता सबका निर्माण व धारण करनेवाला प्रभु (नः) = हमारे लिये (चक्षु) = दृष्टिशक्ति को (दधातु) = धारित करे । प्रभु के स्मरण से भी दृष्टिशक्ति ठीक बनी रहती है । वस्तुतः प्रभु स्मरण अंग-प्रत्यंग को ठीक रखने के लिये आवश्यक है । अंगरिस् के साथ अथर्ववेद [ब्रह्मवेद] का सम्बन्ध इस बात का संकेत करता है कि हम ब्रह्म का स्मरण करते हैं और सरस अंगोंवाले बनते हैं । [३] जो देवों में सूर्य का स्थान है वही स्थान इन्द्रियों में चक्षु का है। इसका ठीक होना यहाँ सब इन्द्रियों की सशक्तता का प्रतीक है ।
भावार्थ
भावार्थ- सूर्य, वृक्ष व धाता हमारी चक्षु की शक्ति को बढ़ानेवाले हों ।
विषय
सर्वोत्पादक सविता प्रभु, उससे रक्षा, प्रकाश, चक्षु आदि प्राप्ति की प्रार्थना।
भावार्थ
(सविता देवः) सूर्य सबका प्रेरक तेजोमय लोक वा प्रभु (नः चक्षुः दधातु) हमें चक्षु प्रदान करे। (उत पर्वतः नः चक्षुः दधातु) और मेघ हमें उत्तम चक्षु या उत्तम प्रकाश दे। (धाता) सब का पोषक पालक वा कर्त्ता वायु (नः चक्षुः दधातु) हमें सेवने योग्य नेत्र वा प्रकाश दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिश्चक्षुः सौर्यः॥ सूर्यो देवता॥ छन्द:- १ आर्ची स्वराड् गायत्री। २ स्वराड् गायत्री। ३ गायत्री। ४ निचृद् गायत्री। ५ विराड़ गायत्री॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देवः सवितः-नः-चक्षुः दधातु) प्रेरकः सूर्यो देवोऽस्मभ्यं दर्शनशक्तिं धारयतु (उत पर्वतः-नः-चक्षुः) हरितः पर्वतोऽस्मभ्यं दर्शनशक्तिं धारयतु (धाता नः-चक्षुः) विधाता परमात्माऽस्मभ्यं दर्शनशक्तिं धारयतु ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Savita, generous refulgent sun, give us light of the eye, may the cloud and mountain give us light of the eye, and may Dhata, lord controller and sustainer of life on earth, bless us with light of the eye.
मराठी (1)
भावार्थ
साक्षात सूर्यापासून दर्शनशक्ती प्राप्त होते. प्रात:काळी सूर्याला पाहून ती मिळते. हिरव्या पर्वताला पाहूनही नेत्रशक्ती वाढते. परमेश्वराचे ध्यान करण्यानेही नेत्रात बल येते. ॥३॥
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