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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 159 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 159/ मन्त्र 1
    ऋषि: - शची पौलोमी देवता - शची पौलोमी छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उद॒सौ सूर्यो॑ अगा॒दुद॒यं मा॑म॒को भग॑: । अ॒हं तद्वि॑द्व॒ला पति॑म॒भ्य॑साक्षि विषास॒हिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । अ॒सौ । सूर्यः॑ । अ॒गा॒त् । उत् । अ॒यम् । मा॒म॒कः । भगः॑ । अ॒हम् । तत् । वि॒द्व॒ला । पति॑म् । अ॒भि । आ॒सा॒क्षि॒ । वि॒ऽस॒स॒हिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदसौ सूर्यो अगादुदयं मामको भग: । अहं तद्विद्वला पतिमभ्यसाक्षि विषासहिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । असौ । सूर्यः । अगात् । उत् । अयम् । मामकः । भगः । अहम् । तत् । विद्वला । पतिम् । अभि । आसाक्षि । विऽससहिः ॥ १०.१५९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 159; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    इस सूक्त में पारिवारिकचर्या का आदर्श वर्णित है, पुत्र शत्रुनाशक पुत्री ज्योतिःस्वरूप, पत्नी धर्माधार, पति प्रशंसापात्र हो, आदि विषय हैं।

    पदार्थ

    (असौ सूर्यः) वह सूर्य (उत् अगात्) उदय होता है (अयं मामकः) यह मेरा (भगः-उत्) सौभाग्यसाधक ही है या सौभाग्य ही उदय होता है (तत्) उस कारण (अहम् विद्वला) मैं पतिवाली या वर को प्राप्त किये हुए प्राप्त वरवाली हो गई (पतिम्-अभि-असाक्षि) पति को सहन करने में समर्थ या अपने अनुकूल बनानेवाली हूँ (विषासहिः) विशेष सहन करनेवाली हूँ ॥१॥

    भावार्थ

    सूयर उदय होने से स्त्रियों में सौभाग्य की भावना जाग जाती है या जाग जानी चाहिये, उस अवस्था में जैसे सूर्य पृथ्वी के ऊपर, प्राणी और वनस्पति को उत्पन्न होने की शक्ति देता है, ऐसे ही पति के प्रति आदरभावना होनी चाहिए कि यह मेरा सौभाग्य का दाता है ॥१॥

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते पारिवारिकचर्याया आदर्शो वर्ण्यते, पुत्राः शत्रुनाशकाः पुत्री ज्योतिःस्वरूपा पत्नी धर्मस्तम्भः पतिश्च प्रशंसापात्रमित्येव-मादयो विषयाः सन्ति।

    पदार्थः

    (असौ सूर्यः-उदगात्) स सूर्य-उदेति (अयं मामकः-भगः-उत्) एष मदीयो भगः-सौभाग्यसाधको हि यद्वा सौभाग्यं मामकमुदेति (तत्) तस्मात्खलु (अहं विद्वला) अहं विन्दते-इति वित्-पतिः तद्वती छान्दसो वलच् प्रत्ययो मत्वर्थीयः, यद्वा “विद्लृ लाभे” [तुदादि०] ततः क्विप् भूते विद् लब्धो वरो यया सा विद्वला रेफस्य स्थाने लकारश्छान्दसः लब्धवरा जाता (पतिम्-अभि-असाक्षि) पतिमभिसहे पतिमभिसोढुं समर्था स्वानुकूलं साधयामि (विषासहिः) विशेषेण सहमाना सती ॥१॥

    English (1)

    Meaning

    There rises the sun. It is also my good fortune thus arisen. I know this for certain. I have found my protection and sustenance and I shall overcome all my rivals and adversaries.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    सूर्योदय झाल्यानंतर स्त्रीमध्ये सौभाग्याची भावना जागते किंवा जागृत झाली पाहिजे. या स्थितीत जसा सूर्य पृथ्वीवर प्राणी व वनस्पतींना उत्पन्न होण्याची शक्ती देतो, अशीच पतीबाबत आदराची भावना असली पाहिजे व हा माझा सौभाग्यदाता आहे, असे वाटले पाहिजे.

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