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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 165 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 165/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कपोतो नैर्ऋतः देवता - कपोतापहतौप्रायश्चित्तं वैश्वदेवम् छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शि॒वः क॒पोत॑ इषि॒तो नो॑ अस्त्वना॒गा दे॑वाः शकु॒नो गृ॒हेषु॑ । अ॒ग्निर्हि विप्रो॑ जु॒षतां॑ ह॒विर्न॒: परि॑ हे॒तिः प॒क्षिणी॑ नो वृणक्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वः । क॒पोतः॑ । इ॒षि॒तः । नः॒ । अ॒स्तु॒ । अ॒ना॒गाः । दे॒वाः॒ । श॒कु॒नः । गृ॒हेषु॑ । अ॒ग्निः । हि । विप्रः॑ । जु॒षता॑म् । ह॒विः । नः॒ । परि॑ । हे॒तिः । प॒क्षिणी॑ । नः॒ । वृ॒ण॒क्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवः कपोत इषितो नो अस्त्वनागा देवाः शकुनो गृहेषु । अग्निर्हि विप्रो जुषतां हविर्न: परि हेतिः पक्षिणी नो वृणक्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिवः । कपोतः । इषितः । नः । अस्तु । अनागाः । देवाः । शकुनः । गृहेषु । अग्निः । हि । विप्रः । जुषताम् । हविः । नः । परि । हेतिः । पक्षिणी । नः । वृणक्तु ॥ १०.१६५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 165; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (देवाः) हे विजय के इच्छुक विद्वानों ! (इषितः) भेजा हुआ (शिवः) कल्याणकर (कपोतः) वेश भाषा में विचित्र संदेशवाहक (नः-गृहेषु) हमारे गृहदि घरों में-प्रजाजनों में उनके निमित्त (अनागाः) पापरहित (शकुनः) सुभाषण में शक्त-शक्तिमान् (अग्निः) अग्रणी (विप्रः) मेधावी विद्वान् (हविः-जुषताम्) सत्कार भोजन आदि को सेवन करे (पक्षिणी हेतिः) परपक्षीया प्रहार करनेवाली सेना (नः परि वृणक्तु) हमें छोड़ दे ॥२॥

    भावार्थ

    आये हुए दूत का सत्कार भोजनादि से करना चाहिए, यह हमारे पास आता है। परपक्ष की प्रहारक सेना अपने प्रहार हमारे ऊपर न छोड़े ॥२॥

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    विषय

    निष्पापता व शक्ति संचार

    पदार्थ

    [१] (शिवः) = [श्यति पापम्, अथवा शिवु कल्याणे] अपने उपदेशों के द्वारा पापवृत्तियों को विनष्ट करनेवाला व कल्याण करनेवाला, (कपोतः) = ब्रह्मरूप पोतवाला ब्रह्मनिष्ठ, (इषित:) = प्रभु प्रेरणा को प्राप्त हुआ हुआ (नः) = हमारे लिये (अनागाः) = निष्पाप अस्तु हो । हमारे जीवनों को यह निष्पाप बनानेवाला हो। हे (देवाः) = देवो ! इस प्रकार यह (गृहेषु) = हमारे घरों में (शकुनः) = शक्ति का संचार करनेवाला हो । [२] यह (अग्निः) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाला (विप्र:) = ज्ञानी ब्राह्मण (हि) = निश्चय से (नः हविः) = हमारे से दी गई हवि को, पत्र-पुष्प फल तोथ के रूप में दी गई तुच्छ भेंट को (जुषताम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करे । इस अग्नि के उपदेशों से (पक्षिणी हेतिः) = किसी एक पक्ष में चले जानेरूप नाशक अस्त्र (नः) = हमें (परिवृणक्तु) = छोड़ दे। हम किसी पक्ष में न गिरें, पक्षपात रहित न्यायाचरण से अपने कल्याण को सिद्ध करें । ' avoid extremes' 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' का ध्यान करते हुए युक्ताहार-विहारवाले बनें । तथा समाज में भी किसी पक्ष के साथ न जुड़ जायें, पार्टीवाजी में न पड़ जायें। सामाजिक उन्नति में सब से महान् विघ्न यही होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ब्रह्मनिष्ठ पुरुषों का उपदेश हमें निष्पाप व शक्तिशाली बनाये। इनके उपदेशों से हम अति से व पार्टीवाजी से बचे रहें।

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    विषय

    परदूतों का आदर-सत्कार करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (इषितः कपोतः नः शिवः अस्तु) दूसरे से भेजा हुआ विद्वान् दूत हमारे लिये भी कल्याणकारी हो। हे (देवाः) विद्वान् जनो ! (नः गृहेषु) हमारे घरों में वह (अनागाः) पाप, अपराध से रहित हो, उस पर किसी प्रकार का अपमान वा आघात न हो। (अग्निः हि) वह अग्नि के तुल्य ही नियम से (नः हविः जुषताम्) हमारा उत्तम अन्न प्रेम से प्राप्त करे। (पक्षिणी हेतिः) पक्षों वाली, शस्त्र वाली सेना (नः परि वृणक्तु) हमें दूर से ही त्याग दे, हम पर आक्रमण न करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः कपोतो नैर्ऋतः॥ देवता—कपोतोपहतौ प्रायश्चित्तं वैश्वदेवम्॥ छन्दः—१ स्वराट् त्रिष्टुप्। २, ३ निचृत् त्रिष्टुप्। ४ भुरिक् त्रिष्टुप्। ५ त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (देवाः) जिगीषवो विद्वांसः (इषितः शिवः कपोतः) प्रेषितः कल्याणकरः वेशभाषाभिर्विचित्रः सन्देशवाहकः (नः-गृहेषु) अस्माकं गृहवासिषु प्रजाजनेषु तन्निमित्तमित्यर्थः (अनागाः-शकुनः-अस्तु) पापरहितः सुभाषणे शक्तो भवतु “शकुनः शक्तिमान्” [यजु० १८।५३ दयानन्दः] (अग्निः विप्रः) अग्रणी मेधावी विद्वान् (हविः-जुषताम्) सत्कारं भोजनादिकं सेवताम् (पक्षिणी हेतिः) परपक्षीया प्रहारकर्त्री सेना (नः-परिवृणक्तु) अस्मान् परित्यजतु-संग्रामं न करोतु ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May this bird sent from the land of destiny be good and auspicious for us. May the bird and its message be free from blame and violence in and for our homes. Let this vibrant messenger accept and enjoy our hospitality offered with faith and let there be no strike of the winged force of arms to disturb and uproot us from our settled land.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आलेल्या दूताचा भोजन इत्यादीने सत्कार केला पाहिजे. तो आमच्या जवळ येतो. परपक्षाच्या प्रहारक सेनेने त्यांच्या प्रहाराने आम्हाला मारता कामा नये. ॥२॥

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