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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 169 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 169/ मन्त्र 4
    ऋषिः - शबरः काक्षीवतः देवता - गावः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र॒जाप॑ति॒र्मह्य॑मे॒ता ररा॑णो॒ विश्वै॑र्दे॒वैः पि॒तृभि॑: संविदा॒नः । शि॒वाः स॒तीरुप॑ नो गो॒ष्ठमाक॒स्तासां॑ व॒यं प्र॒जया॒ सं स॑देम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒जाऽप॑तिः । मह्य॑म् । ए॒ताः । ररा॑णः । विश्वैः॑ । दे॒वैः । पि॒तृऽभिः॑ । स॒म्ऽवि॒दा॒नः । शि॒वाः । स॒तीः । उप॑ । नः॒ । गो॒ऽस्थम् । आ । अ॒क॒रित्य॑कः । तासा॑म् । व॒यम् । प्र॒ऽजया॑ । सम् । स॒दे॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभि: संविदानः । शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजाऽपतिः । मह्यम् । एताः । रराणः । विश्वैः । देवैः । पितृऽभिः । सम्ऽविदानः । शिवाः । सतीः । उप । नः । गोऽस्थम् । आ । अकरित्यकः । तासाम् । वयम् । प्रऽजया । सम् । सदेम ॥ १०.१६९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 169; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (प्रजापतिः) प्रजापालक परमात्मा (मह्यम्) मेरे लिए (एताः-रराणः) इन गौवों को देता हुआ (विश्वैः) समस्त (देवैः-पितृभिः) विद्वानों और पालकजनों के साथ (संविदानः) एक विचार को प्राप्त करता हुआ (शिवाः सतीः) कल्याणकारी होती हुई गौवों को (नः-गोष्ठम्) हमारे गोसदन को (उप-अकः) उपकृत करे-पूरा करे (तासां प्रजया) उनकी प्रजाओं के साथ (वयं सं सदेम) हम भलीभाँति बसें ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा मनुष्यमात्र के लिए गौवों को प्रदान करता है, विद्वानों के लिए पालकजनों के लिए और सर्वसाधारण जनों के लिए भी, इसलिए कि ये सबके लिए कल्याणकारी हैं, इन्हें अपने-अपने गोसदन में रखकर रक्षा करनी चाहिये ॥४॥

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    विषय

    देव- पितर

    पदार्थ

    [१] (प्रजापतिः) = सब प्रजाओं का रक्षक प्रभु (मह्यम्) = मेरे लिये (एताः) = इन गौवों को (रराण:) = देता है । इन गौवों के द्वारा (विश्वैः देवैः) = सब देवों से तथा (पितृभिः) = पितरों से (संविदानः) = [विद् लाभे] हमें सम्यक् युक्त करता है। अर्थात् इन गोदुग्धों के सेवन से हमारे अन्दर देववृत्ति व पितृवृत्ति का उदय होता है, हम प्रायेण ज्ञान-प्रधान जीवन बिताते हैं और रक्षणात्मक कार्यों में प्रवृत्त होते हैं । [२] इन (शिवाः सतीः) = कल्याणकर होती हुई गौवों को (न:) = हमारे (गोष्ठं उप आकः) = गोष्ठ में प्राप्त कराइये। (वयम्) = हम (तासाम्) = उन गौवों के (प्रजया) = प्रजाओं के साथ (सं सदेम) = सम्यक्तया अपने घरों में विराजमान हों। इन गौवों से हमारा घर नीरोगता, निर्मलता व तीव्र बुद्धि को प्राप्त करता हुआ चमक उठे। हमारा जीवन अधिकाधिक सुन्दर बने ।

    भावार्थ

    भावार्थ- गोदुग्ध के सेवन से देववृत्ति व पितृवृत्ति का उदय होता है। घर सब तरह से उत्तम बनता है । सम्पूर्ण सूक्त गोदुग्ध के सेवन के महत्त्व को व्यक्त कर रहा है। इस गोदुग्ध का सेवन हमारे जीवन को दीप्त बनाता है, सूर्य की तरह हम चमकते हैं। यह सूर्य की तरह चमकनेवाला 'विभ्राट् सौर्य:' अगले सूक्त का ऋषि है। इसके लिये प्रभु निर्देश करते हैं-

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    विषय

    प्रभु से गौओं, वाणियों द्वारा उत्तम ज्ञान, सन्तान, सुख आदि की याचना।

    भावार्थ

    (प्रजापतिः) प्रजा का पालक प्रभु (मह्यम्) मुझे (एताः) इन उत्तम गौओं जैसी नाना वाणियों को (रराणः) प्रदान करता हुआ और (विश्वैः देवैः पितृभिः) समस्त विद्वानों और पालकों से (सं-विदानः) हमें अच्छी प्रकार ज्ञान प्रदान करता हुआ, (नः गोष्ठम्) हमारे वाणियों के रखने वाले, अन्तःकरण को (शिवाः सतीः) कल्याणकारिणी, शुद्ध वाणियां (आ अकः) प्राप्त कराता है। (तासां प्रजया) उनकी प्रजा से (वयम् सं सदेम) हम एक साथ शान्ति से विराजें। इस सूक्त में गौ, वाणी वाचक होने से श्लिष्ट हैं। उत्तम उपदेष्टा होने से रुद्र आचार्य है। इति सप्तविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः शत्ररः काक्षीवतः। गावो देवताः छन्द:- १ विराट् त्रिष्टुप् २, ४ त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (प्रजापतिः) प्रजापालकः परमात्मा (मह्यम्) मदर्थम् (एताः-रराणः) इमा गाः प्रयच्छन् (विश्वैः-देवैः पितृभिः संविदानः) समस्तैर्विद्वद्भिः पालकजनैश्च सहैकमत्यं प्राप्नुवन् (शिवाः सतीः) शिवाः सत्यः (नः गोष्ठम्) अस्माकं गोष्ठम् (उप-अकः) उपाकरोतु-पूरयतु (तासां प्रजया वयं सं सदेम) तासां गवां प्रजया सह वयं सम्यक् वसेम ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Prajapati, lord protector, sustainer and promoter of the people with all divine energies of nature’s brilliance and nourishment, and the nation’s food minister with active consultation and advice of all brilliant scholars and nutrition experts of the land, give us these cows with joyous enthusiasm and bring to our cow stall such cows as are the best and most abundant in nourishing milk. May we continue to benefit from the cow’s progeny of excellent breed.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा मनुष्याला गायी प्रदान करतो. विद्वान, पालक, सर्वसाधारण लोकांसाठी त्या कल्याणकारी आहेत. त्यांना आपापल्या गोसदनात ठेवून त्यांचे रक्षण केले पाहिजे. ॥४॥

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