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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 176 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 176/ मन्त्र 1
    ऋषि: - सूनुरार्भवः देवता - ऋभवः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    प्र सू॒नव॑ ऋभू॒णां बृ॒हन्न॑वन्त वृ॒जना॑ । क्षामा॒ ये वि॒श्वधा॑य॒सोऽश्न॑न्धे॒नुं न मा॒तर॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सू॒नवः॑ । ऋ॒भू॒णाम् । बृ॒हत् । न॒व॒न्त॒ । वृ॒जना॑ । क्षाम॑ । ये । वि॒श्वऽधा॑यसः । अश्न॑न् । धे॒नुम् । न । मा॒तर॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सूनव ऋभूणां बृहन्नवन्त वृजना । क्षामा ये विश्वधायसोऽश्नन्धेनुं न मातरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सूनवः । ऋभूणाम् । बृहत् । नवन्त । वृजना । क्षाम । ये । विश्वऽधायसः । अश्नन् । धेनुम् । न । मातरम् ॥ १०.१७६.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 176; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 34; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    इस सूक्त में विद्वान् परमेश्वर की वेदवाणी से उसकी स्तुति करके मोक्ष प्राप्त करते हैं, विज्ञानरीति द्वारा सूर्य से ज्ञान प्राप्त करते हैं।

    पदार्थ

    (ऋभूणाम्) बहुत भासमान रश्मियाँ चमकनेवाली किरणों या मेधावी विद्वान् (सूनवः) उत्पादन धर्मवाले या ज्ञान के प्रेरक (बृहत्-वृजना) महान् बलों को (प्र नवन्त) प्रचलित करते हैं, बढ़ाते हैं (विश्वधायसः) विश्व जगत् को धारण करनेवाले (क्षाम) पृथिवी को (धेनुं न मातरम्) जैसे दूध देनेवाली गोमाता को प्राप्त करते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    किरणें संसार में उत्पत्ति शक्ति देनेवाली जगत् को धारण करती हैं, वे पृथिवी को प्राप्त होती हैं, जैसे दूध देनेवाली गौ को बछड़े प्राप्त करते हैं एवं मेधावी विद्वान् ज्ञान को उत्पन्न करनेवाले ज्ञानबल का प्रचार करते हैं, पृथ्वी की जनता को ज्ञान देने के लिए प्राप्त होते हैं ॥१॥

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अस्मिन् सूक्ते विद्वांसः परमेश्वरस्य वेदवाचा तस्य स्तुतिं कृत्वा मोक्षानन्दं प्राप्नुवन्ति तथा विज्ञानप्रक्रियया सूर्याद् बहुज्ञानं गृह्णन्तीति विषयाः सन्ति।

    पदार्थः

    (ऋभूणां) ऋभवः ‘विभक्तिव्यत्ययेन प्रथमास्थाने षष्ठी’ बहुभासमाना रश्मयः “ऋभवः-किरणाः” [ऋ० १।११०।६ दयानन्दः] मेधाविनो वा “ऋभु मेधाविनाम” [निघ० ३।१५] (सूनवः) उत्पादनधर्मिणः ज्ञानस्य सोतारः प्रेरकाः (बृहत्-वृजना प्र नवन्त) बृहन्ति महान्ति बलानि “वृजनं बलनाम” [निघ० २।६] प्रचरन्ति “नवते-गतिकर्मा” [निघ० २।१४] (विश्वधायसः) विश्वस्य जगतो धारकाः (ये) ये खलु (क्षाम) पृथिवीम् “क्षाम पृथिवीनाम” [नि० १।१] (धेनुं न मातरम्-अश्नन्) यथा दुग्धदात्रीं मातरं गां च तथा प्राप्नुवन्ति ॥१॥

    English (1)

    Meaning

    The children and disciples of Rbhus, expert makers, celebrate their mighty achievements of science and technology and, sustainers of world community, children of mother earth, they reach and explore the earth for service and resources like calves rushing to mother cows.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    उत्पत्ती शक्ती देणारी किरणे जगाला धारण करतात व पृथ्वीवर येतात. जसे दूध देणाऱ्या गायीजवळ वासरे असतात, तसे मेधावी विद्वान लोक ज्ञानबलाचा प्रचार करतात व पृथ्वीवरील जनतेला ज्ञान देतात. ॥१॥

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