ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 18/ मन्त्र 8
ऋषिः - सङ्कुसुको यामायनः
देवता - पितृमेधः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
उदी॑र्ष्व नार्य॒भि जी॑वलो॒कं ग॒तासु॑मे॒तमुप॑ शेष॒ एहि॑ । ह॒स्त॒ग्रा॒भस्य॑ दिधि॒षोस्तवे॒दं पत्यु॑र्जनि॒त्वम॒भि सं ब॑भूथ ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ई॒र्ष्व॒ । ना॒रि॒ । अ॒भि । जी॒व॒ऽलो॒कम् । ग॒तऽअ॑सुम् । ए॒तम् । उप॑ । शे॒षे॒ । आ । इ॒हि॒ । ह॒स्त॒ऽग्रा॒भस्य॑ । दि॒धि॒षोः । तव॑ । इ॒दम् । पत्युः॑ । ज॒नि॒ऽत्वम् । अ॒भि । सम् । ब॒भू॒थ॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उदीर्ष्व नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि । हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सं बभूथ ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । ईर्ष्व । नारि । अभि । जीवऽलोकम् । गतऽअसुम् । एतम् । उप । शेषे । आ । इहि । हस्तऽग्राभस्य । दिधिषोः । तव । इदम् । पत्युः । जनिऽत्वम् । अभि । सम् । बभूथ ॥ १०.१८.८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 18; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(नारि) हे विधवा नारि ! तू (एतं गतासुम्) इस मृत को छोड़कर (जीवलोकम्-अभ्येहि) जीवित पति को प्राप्त हो (हस्तग्राभस्य दिधिषोः पत्युः-तव-इदं जनित्वम्-उदीर्ष्व) विवाह में जिसने तेरा हाथ पकड़ा था, उस पति की और अपनी सन्तान को उत्पन्न कर (अभि संबभूथ) तू इस प्रकार सुखसम्पन्न हो ॥८॥
भावार्थ
विधवा अपने पूर्वपति की सम्पत्ति आदि के अधिकार को भोग सकती है तथा उसके प्रतिनिधि और अपनी सन्तान को उत्पन्न कर सकती है ॥८॥
विषय
यदि पति चले जाएँ तो
पदार्थ
[१] समान्यतः पति को दीर्घजीवी होना चाहिए। पत्नी 'अविधवा' रहे ऐसा गत मन्त्र में कहा था। परन्तु यदि अचानक पति का देहावसान हो जाए तो पत्नी श्मशान में ही न पड़ी रह जाए, मृत पति का ही सदा शोक न करती रहे, अपितु उत्साहयुक्त होकर अपने कर्तव्य कर्मों में लगे । अपने पति की सन्तानों का ध्यान करते हुए वह शोक-मोह को छोड़कर तत्परता से कार्यों में लगी रहे । मन्त्र में कहते हैं कि हे (नारि) = गृह की उन्नति की कारणभूत पत्नि ! तू (उदीर्ष्व) = ऊपर उठ और घर के कार्यों में लग [ईर गतौ], (जीवलोकम् अभि) = इस जीवित संसार का तू ध्यान कर। जो गये, वे तो गये हो । अब तू (गतासुम्) = गत प्राण (एतम्) = इस पति के (उपशेष) = समीप पड़ी है। इस प्रकार शोक का क्या लाभ ? (एहि) = उठ और घर की ओर चल । घर की सब क्रियाओं को ठीक से करनेवाली हो। [२] (हस्तग्राभस्य) = अपने हाथ ग्रहण करनेवाले, (दिधिषोः) = धारण करनेवाले अथवा गर्भ में सन्तान को स्थापित करनेवाले (तव पत्युः) = अपने पति की (इदं जनित्वम्) = इस उत्पादित सन्तान को (अभि) = लक्ष्य करके (संबभूथ) = सम्यक्तया होनेवाली हो । अर्थात् तू अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान कर जिससे सन्तान के पालन व पोषण में किसी प्रकार से तू असमर्थ न हो जाए ।
भावार्थ
भावार्थ-यदि अकस्मात् पति गुजर जाएँ तो पत्नी, शोक न करती रहकर, पति के सन्तानों का ध्यान करती हुई, अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिये यत्नशील हो ।
विषय
मृत पुरुष के हाथ से पुत्र को अधिकार प्राप्त हो।
भावार्थ
हे (नारि) स्त्री ! तू (जीव-लोकम् अभि) जीवित जनों को लक्ष्य करके (उत् ईर्ष्व) उठ खड़ी हो। (एतं गतासुम् उप शेषे) तू इस प्राणरहित के समीप पड़ी है। (आ इहि) उठ आ। (हस्त-ग्राभस्य) पाणिग्रहण करने वाले (दिधिषोः) और धारण पोषण करने वा वीर्याधान करने वाले (तव पत्युः) तेरे पालक पति के (इदं जनित्वं) इस सन्तान को (अभि) लक्ष्य करके तू (सं बभूथ) उससे मिलकर रह। अर्थात् पति का शोक त्याग कर जीवित संतान की फिकर करे। [ यदि संतान जीवित न हो तो (जनित्वम् अभि) केवल सन्तान को लक्ष्य कर (संबभूथ) नियोग विधि से पुत्र उत्पन्न कर और वह सस्तान पाणिग्रहीता पति का कहावे। ]
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सङ्कुसुको यामायन ऋषिः॥ देवताः–१–मृत्युः ५ धाता। ३ त्वष्टा। ७—१३ पितृमेधः प्रजापतिर्वा॥ छन्द:- १, ५, ७–९ निचृत् त्रिष्टुप्। २—४, ६, १२, १३ त्रिष्टुप्। १० भुरिक् त्रिष्टुप्। ११ निचृत् पंक्तिः। १४ निचृदनुष्टुप्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(नारि) हे नारि ! (एतं गतासुम्) एतं गतप्राणं मृतं त्यक्त्वा (जीवलोकम्-अभ्येहि) जीवन्तं तं द्वितीयं पतिं प्राप्नुहि (हस्तग्राभस्य दिधिषोः पत्युः-तव-इदं जनित्वम्-उदीर्ष्व) विवाहे गृहीतहस्तस्य धारयितुः पत्युस्तव चेदं जनित्वं सन्तानमुत्पादय (अभि संबभूथ) एवं त्वं सुखसम्पन्ना भव ॥८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Rise, O woman, to a new phase of life, your husband is now dead and gone. Come take the hand of this man from among the living who offers to take your hand and maintain you, and live in consort with this other and new husband of yours for a life time.
मराठी (1)
भावार्थ
विधवा आपल्या पूर्वपतीची संपत्ती इत्यादीचे अधिकार भोगू शकते व दुसरा पती प्राप्त करून संतान उत्पन्न करू शकते. ॥८॥
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