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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 182 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 182/ मन्त्र 2
    ऋषिः - तपुर्मूर्धा बार्हस्पत्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नरा॒शंसो॑ नोऽवतु प्रया॒जे शं नो॑ अस्त्वनुया॒जो हवे॑षु । क्षि॒पदश॑स्ति॒मप॑ दुर्म॒तिं ह॒न्नथा॑ कर॒द्यज॑मानाय॒ शं योः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नरा॒शंसः॑ । नः॒ । अ॒व॒तु॒ । प्र॒ऽया॒जे । शम् । नः॒ । अ॒स्तु॒ । अ॒नु॒ऽया॒जः । हवे॑षु । क्षि॒पत् । अश॑स्तिम् । अप॑ । दुः॒ऽम॒तिम् । ह॒न् । अथ॑ । क॒र॒त् । यज॑मानाय । शम् । योः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नराशंसो नोऽवतु प्रयाजे शं नो अस्त्वनुयाजो हवेषु । क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नराशंसः । नः । अवतु । प्रऽयाजे । शम् । नः । अस्तु । अनुऽयाजः । हवेषु । क्षिपत् । अशस्तिम् । अप । दुःऽमतिम् । हन् । अथ । करत् । यजमानाय । शम् । योः ॥ १०.१८२.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 182; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 40; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (नराशंसः) मनुष्यों द्वारा-प्रशंसनीय स्तुति करने योग्य परमात्मा (नः) हमारी (प्रयाजे) रेतःसेचन कार्य में-गर्भाधान कार्य में (अवतु) रक्षा करे (नः शम् अस्तु) हमारे लिए कल्याणकारी हो (अनुयाजः) रेतोधारण-गर्भ का पोषण (क्षिपत्०) पूर्ववत् ॥२॥

    भावार्थ

    स्तुतियोग्य परमेश्वर गृहस्थों के गर्भाधान कार्य में कल्याणकारी हो तथा उसकी कृपा से गर्भपोषण भी कल्याणकारी हो ॥२॥

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    विषय

    [ शक्ति प्राप्ति व अहंकार शून्यता] 'प्रयाज व अनुयाज में प्रभु स्मरण'

    पदार्थ

    [१] (प्रयाजे) = यज्ञों के प्रारम्भ में (नराशंसः) = मनुष्यों से शंसन के योग्य वह प्रभु (नः अवतु) = हमारा रक्षण करे तथा (हवेषु) = संग्रामों में (अनुयाजः) = [अनु-पश्चात्] यज्ञों की समाप्ति पर पूजित होनेवाले वे प्रभु (नः) = हमारे लिये शं अस्तु शान्ति को प्राप्त करायें। [२] प्रत्येक उत्तम कार्य के प्रारम्भ में प्रभु का स्मरण हमें शक्ति प्राप्त कराये तथा समाप्ति पर प्रभु स्मरण हमारे अहंकार को दूर करनेवाला हो। यह शक्ति को देनेवाला व अहंकार को दूर करनेवाला प्रभु (अशस्तिं क्षिपत्) = बुराइयों को हमारे से परे फेंके, (दुर्मतिम्) = दुष्ट बुद्धि को (अप अहन्) = सुदूर विनष्ट करे (अथा) = और (यजमानाय) = यज्ञशील पुरुष के लिये (शं योः करत्) = शान्ति को करे तथा भयों के यावन [पार्थक्य] को करे ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम यज्ञों के प्रारम्भ व अन्त में प्रभु का स्मरण करें, जिससे हमें शक्ति प्राप्त हो और अहंकार हमारे से दूर हो ।

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    विषय

    मार्ग-दर्शक के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (नराशंसः) मनुष्यों को उत्तम मार्ग बतलाने वाला, और मनुष्यों द्वारा स्तुत्य पुरुष (प्र-याजे) उत्तम यज्ञ, दान, सत्संग के अवसर में (नः अवतु) हमारी रक्षा करे, हमें प्राप्त हो। वह (हवेषु) यज्ञों और युद्धों के अवसरों में (अनु-याजः) अनुकूल संगति, दान, सत्संग आदि करने वाला होकर (नः शम् अस्तु) हमें कल्याणकारक, शान्तिदायक हो। (अशस्तिम् क्षिपत्०) शेष व्याख्या देखो इस से पूर्व मन्त्र में।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः तपुर्मूर्धाबार्हस्पत्यः॥ बृहस्पतिर्देवता॥ छन्दः- १ भुरिक् त्रिष्टुप्। २ विराट् त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (नराशंसः) नरैः शस्यमानः स्तूयमानः “यो नरैः-अभितः शंस्यते स्तूयते” [ऋ० १।३६।६ दयानन्दः] परमेश्वरः (नः प्रयाजे-अवतु) अस्मान् रेतःसेचने-“रेतः सिच्यं हि प्रयाजाः” [कौ० १०।३] रक्षतु (शं नः-अस्तु-अनुयाजः) कल्याणकारी-अस्माकं रेतोधारणम् “रेतो धेयम्-अनुयाजः” [कौ० १०।३] (हवेषु) गृहे परस्परह्वानेषु (क्षिपत्०) अग्रे पूर्ववत् ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Agni, adorable favourite of humanity, protect and promote us in Prayaja yajna, the preliminaries of the performance. May Agni support and bless us with success and prosperity at our performance of Anuyaja yajna, the great finale. May Agni cast away malignity, destroy evil intention, and do good to the yajamana, free him from fear and disease, and bestow on him good health and prosperity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्तुतियोग्य परमेश्वर गृहस्थाच्या गर्भाधान कार्यात कल्याण करणारा असावा व त्याच्या कृपेने गर्भपोषणही कल्याणकारी असावे.

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