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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 185 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 185/ मन्त्र 2
    ऋषि: - सत्यधृतिर्वारुणिः देवता - अदितिः (स्वस्तययनम्) छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    न॒हि तेषा॑म॒मा च॒न नाध्व॑सु वार॒णेषु॑ । ईशे॑ रि॒पुर॒घशं॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न॒हि । तेषा॑म् । अ॒मा । च॒न । न । अध्व॑ऽसु । वा॒र॒णेषु॑ । ईशे॑ । रि॒पुः । अ॒घऽशं॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु । ईशे रिपुरघशंसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नहि । तेषाम् । अमा । चन । न । अध्वऽसु । वारणेषु । ईशे । रिपुः । अघऽशंसः ॥ १०.१८५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 185; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 43; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (तेषाम्) उन प्राणादियों के (अमा चन) घर में या सम्पर्क में (नहि) तथा नहि (अध्वसु) मार्गों में (वारणेषु) रोकस्थानों में (अघशंसः) पापेच्छुक-अहितचिन्तक (रिपुः) शत्रु (ईशे) हमें अधिकार में लेने में समर्थ नहीं होता है ॥२॥

    भावार्थ

    प्राण, अपान, मुख्यप्राण, अध्यापक, उपदेशक, विद्यासूर्य विद्वान् के घर का सम्पर्क में रहने से अहितचिन्तक रोग या शत्रु मनुष्य पर प्रभावकारी नहीं हो सकता ॥२॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (तेषाम्-अमा चन नहि) तेषां मित्रादीनां गृहे “अमा गृहनाम” [निघ० ३।४] तेषां सम्पर्के वा नहि (अध्वसु वारणेषु न) मार्गेषु-वारणेषु वारितप्रदेशेषु न (अघशंसः-रिपुः-ईशे) पापशंसकः-अहितचिन्तकः शत्रुरस्मान्-ईशितुं समर्थो भवितुमर्हति ॥२॥

    English (1)

    Meaning

    Neither in home nor on the roads under their invincible protection does any enemy or sinner or scandaliser dare to intrude and disturb a dedicated person. (Their rule and protection is complete and inviolable.)

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्राण, अपान, मुख्य प्राण तसेच अध्यापक, उपदेशक विद्या सूर्य विद्वानाच्या घरी किंवा संपर्कात राहण्याने अहितचिंतक रोग किंवा शत्रू माणसांवर प्रभाव पाडू शकत नाही. ॥२॥

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