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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः देवता - अग्निः छन्दः - आसुरीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    भ॒द्रं नो॒ अपि॑ वातय॒ मन॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒द्रम् । नः॒ । अपि॑ । वा॒त॒य॒ । मनः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भद्रं नो अपि वातय मन: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भद्रम् । नः । अपि । वातय । मनः ॥ १०.२०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    इस सूक्त में राजा, गोपालक, इन्द्रियस्वामी आत्मा द्वारा प्रजाओं, गौओं, इन्द्रियों के नियन्त्रण और भलीभाँति रक्षणादि व्यवहार उपदिष्ट हैं।

    पदार्थ

    (नः मनः) हे अग्रणायक परमात्मन् वा राजन् ! हमारे अन्तःकरण को (भद्रम्-अपि-वातय) कल्याणमार्ग पर प्रेरित कर-चला ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा या राजा हमारे अन्तःकरण को कल्याणकारी मार्ग पर चलाये, उपासक तथा प्रजाएँ इस बात की अभिलाषा करें ॥१॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते राज्ञा, गोपतिना, इन्द्रियस्वामिना प्रजानां गवामिन्द्रियाणां नियन्त्रणं यथावद् रक्षणादिव्यवहाराश्चोपदिश्यन्ते।

    पदार्थः

    (नः मनः) हे अग्रणायक परमात्मन् ! यद्वा राजन् ! अस्माकं मनोऽन्तःकरणम् (भद्रम्-अपि वातय) कल्याणं कल्याणमार्गं प्रति प्रेरय चालय “वात गतिसुखसेवनेषु” [चुरादिः] ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Agni, lord of light, inspire and enlighten our mind to turn to divinity and concentrate there.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा किंवा राजाने आमच्या अंत:करणाला कल्याणकारी मार्गाने चालवावे. उपासक व प्रजा यांनी अशी अभिलाषा धरावी. ॥१॥

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