ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
य॒दा वज्रं॒ हिर॑ण्य॒मिदथा॒ रथं॒ हरी॒ यम॑स्य॒ वह॑तो॒ वि सू॒रिभि॑: । आ ति॑ष्ठति म॒घवा॒ सन॑श्रुत॒ इन्द्रो॒ वाज॑स्य दी॒र्घश्र॑वस॒स्पति॑: ॥
स्वर सहित पद पाठय॒दा । वज्र॑म् । हिर॑ण्यम् । इत् । अथ॑ । रथ॑म् । हरी॒ इति॑ । यम् । अ॒स्य॒ । वह॑तः । वि । सू॒रिऽभिः॑ । आ । ति॒ष्ठ॒ति॒ । म॒घऽवा॑ । सन॑ऽश्रुतः । इन्द्रः॑ । वाज॑स्य । दी॒र्घऽश्र॑वसः । पतिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदा वज्रं हिरण्यमिदथा रथं हरी यमस्य वहतो वि सूरिभि: । आ तिष्ठति मघवा सनश्रुत इन्द्रो वाजस्य दीर्घश्रवसस्पति: ॥
स्वर रहित पद पाठयदा । वज्रम् । हिरण्यम् । इत् । अथ । रथम् । हरी इति । यम् । अस्य । वहतः । वि । सूरिऽभिः । आ । तिष्ठति । मघऽवा । सनऽश्रुतः । इन्द्रः । वाजस्य । दीर्घऽश्रवसः । पतिः ॥ १०.२३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यदा) जिस समय (इन्द्र) राजा-शासक (सूरिभिः) विद्वानों के द्वारा (वज्रं हिरण्यं यं रथम्-इत्) ओजोरूप सर्वहितरमणीय तथा स्वरमणीय जिस राष्ट्र-शासन पद पर (वि-आ तिष्ठति) विराजता है और स्वाधीन चलाता है, तब (अस्य हरी वहतः) इसके सभासेना विभाग राष्ट्र का वहन करते हैं। (मघवा) राजसूय यज्ञवाला-राजसूय को प्राप्त हुआ राजा (सनश्रुतः) परम्परा से प्रसिद्ध हुए (दीर्घश्रवसः) दीर्घकाल तक कीर्ति देनेवाले (वाजस्य) भोग ऐश्वर्य का पति स्वामी हो जाता है ॥३॥
भावार्थ
विद्वानों द्वारा राजा या शासक ओजस्वी सर्वहित-रमणीय तथा स्वरमणीय तथा राष्ट्र का वहन करते हैं, एवं परम्परा से प्रसिद्ध दीर्घकालीन कीर्तिवाले भोग-ऐश्वर्य का स्वामी राजा बनता है ॥३॥
विषय
हिरण्य वज्र
पदार्थ
[१] (यदा) = जब (वज्रम्) = हमारी क्रियाशीलता (हिरण्यम्) = स्वर्णीय होती है, हितरमणीय होती है, अथवा जब हमारी सब क्रियाएँ स्वर्णीय मध्य से [Golden means] होती हैं, अर्थात् हम सोने- जागने व खाने-पीने आदि सब क्रियाओं में मध्य मार्ग का अवलम्बन करते हैं, (अथा इत्) = तब ही (रथम्) = हमारे शरीर रूप रथ को (हरी) = ये इन्द्रियाश्व (यमस्य) = उस नियन्ता प्रभु की ओर (वहतः) = ले चलते हैं। [२] उस समय (मघवा) = ऐश्वर्यों व यज्ञों वाला होकर (सनश्रुतः) = सनातन वेदज्ञानवाला होता हुआ (वि सूरिभिः) = विशिष्ट ज्ञानियों के साथ (आतिष्ठति) = सर्वथा स्थित होता है। प्रभु प्रवण व्यक्ति के ये लक्षण हैं- [क] ऐश्वर्य का यज्ञों में विनियोग [मघवा], [ख] ज्ञान [सनश्रुतः], [ग] सत्संग रुचि । [३] यही व्यक्ति (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय व ऐश्वर्य सम्पन्न होता है, (वाजस्य) = बल का तथा (दीर्घश्रवसः) = तामस व राजस वासनाओं के विदारक ज्ञान का (पतिः) = स्वामी होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु-भक्त हितरमणीय क्रियाओं वाला होता है, बल व ज्ञान का पति होता है।
विषय
राजा को राष्ट्र का चिरकाल के लिये स्वामी होने का उपदेश।
भावार्थ
(अस्य यं रथं) इसके जिस रथवत् राष्ट्र को (हरी वहतः) उत्तम सर्वदुःखहारी स्त्री और पुरुष धारण करते हैं। और (मघवा) ऐश्वर्यवान् पुरुष (सूरिभिः) उत्तम विद्वानों सहित (यदा) जब उस (वज्रं) बलस्वरूप (हिरण्यम्) हित और रमणीय (रथं) सब को सुख देने और रमाने वाले (यम्) जिस राष्ट्र पर (वि तिष्ठति, आ तिष्ठति) विविध प्रकार से बैठता और शासन करता है तब वह (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् प्रभु (सन-श्रुतः) दानादि से प्रख्यात और चिरकाल तक प्रसिद्ध, वा तप और सनातन वेद में बहुश्रुत होकर (वाजस्य दीर्घ-श्रवसः पतिः) दीर्घ काल तक श्रवण करने योग्य ज्ञान और ऐश्वर्य का पालक स्वामी हो जाता है। अध्यात्म में—वज्र ज्ञान, रथ देह, हरी प्राण- उदान, सूरिगण इन्द्रियगण, मघवा इन्द्र आत्मा, वाज ज्ञान।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१ विराट् त्रिष्टुप्। २, ४ आर्ची भुरिग् जगती। ६ आर्ची स्वराड् जगती। ३ निचृज्जगती। ५, ७ निचृत् त्रिटुष्प् ॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यदा) यस्मिन् काले (इन्द्रः) राजा-शासकः (सूरिभिः) विद्वद्भिः सह (वज्रं हिरण्यं यं रथम्-इत्) ओजोरूपं सर्वहितरमणीयं स्वरमणीयं राष्ट्रं-राष्ट्रशासनस्थानं खलु (वि-आ तिष्ठति) विराजते स्वाधीने चालयति च तदा (अस्य हरी वहतः) सभासेनाविभागौ राष्ट्रं वहतः (मघवा) राजसूययज्ञवान् राजा “यज्ञेन मघवान्” [तै० सं० ४।४।८।१] (सनश्रुतः दीर्घश्रवसः-वाजस्य पतिः) परम्परातः प्रसिद्धस्य दीर्घकालकीर्त्तिप्रदस्य भौगेश्वर्यस्य पतिर्भवति ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
When Indra, glorious lord ruler of the world rides his golden chariot of state which complementary forces draw on the course with the energy of solar rays in nature and the light and loyalty of leading citizens in society, then he is celebrated as universal master of the common wealth and the ruler and protector of lasting power, prosperity and honour of the world.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांद्वारे राजा किंवा शासक ओजस्वी सर्व हितरमणीय व स्वरमणीय तसेच राष्ट्राचे वहन करतात व परंपरेने प्रसिद्ध दीर्घकाळ कीर्तिवान भोग-ऐश्वर्याचा स्वामी राजा बनतो. ॥३॥
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