Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 35 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 35/ मन्त्र 9
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    अ॒द्वे॒षो अ॒द्य ब॒र्हिष॒: स्तरी॑मणि॒ ग्राव्णां॒ योगे॒ मन्म॑न॒: साध॑ ईमहे । आ॒दि॒त्यानां॒ शर्म॑णि॒ स्था भु॑रण्यसि स्व॒स्त्य१॒॑ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒द्वे॒षः । अ॒द्य । ब॒र्हिषः॑ । स्तरी॑मणि । ग्राव्णा॑म् । योगे॑ । मन्म॑नः । साधे॑ । ई॒म॒हे॒ । आ॒दि॒त्याना॑म् । शर्म॑णि । स्थाः । भु॒र॒ण्य॒सि॒ । स्व॒स्ति । अ॒ग्निम् । स॒म्ऽइ॒धा॒नम् । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अद्वेषो अद्य बर्हिष: स्तरीमणि ग्राव्णां योगे मन्मन: साध ईमहे । आदित्यानां शर्मणि स्था भुरण्यसि स्वस्त्य१ग्निं समिधानमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अद्वेषः । अद्य । बर्हिषः । स्तरीमणि । ग्राव्णाम् । योगे । मन्मनः । साधे । ईमहे । आदित्यानाम् । शर्मणि । स्थाः । भुरण्यसि । स्वस्ति । अग्निम् । सम्ऽइधानम् । ईमहे ॥ १०.३५.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 35; मन्त्र » 9
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अद्य) इस जन्म में (अद्वेषः-बर्हिषः स्तरीमणि) द्वेष अर्थात् ग्लानि से रहित अध्यात्मज्ञान के रक्षक वातावरण में (ग्राव्णां योगे) विद्वानों का सम्बन्ध-संयोग होने पर (मन्मनः साधे-ईमहे) मननीय मनोरथ साधने के लिये तुझ परमात्मा को प्रार्थित करते हैं-चाहते हैं (आदित्यानां शर्मणि स्थः-भुरण्यसि) हे परमात्मन् ! तू अखण्ड ब्रह्मचर्यवालों के कल्याण में स्थित होता हुआ उन्हें पालता है, उनकी रक्षा करता है। आगे पूर्ववत् ॥९॥

    भावार्थ

    मानव के वर्तमान युग में अध्यात्मज्ञान की वृद्धि होनी चाहिए। वेदविद्वानों के संयोग में और ब्रह्मचर्यादि व्रत द्वारा परमात्मा के उपासनारूप शरण में मनोरथों की सिद्धि होती है ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    आचार्यों का सम्पर्क

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! आपकी कृपा से (बर्हिषः) = वासनाशून्य हृदय के (स्तरीमणि) = बिछाने के निमित्त (अद्य) = आज (अद्वेषः) = हमारे किसी प्रकार का द्वेष न हो। हम सब प्रकार के ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि से ऊपर उठकर हृदय को निर्मल बना पायें। उस निर्मल हृदयासन पर हम आपको आमन्त्रित करनेवाले बनें। [२] हम (ग्राव्णाम्) = [गृ-गुरूणां ] ज्ञान देनेवाले गुरुओं के योगे-सम्पर्क में (मन्मनः) = ज्ञान की (साधः) = साधना को (ईमहे) = माँगते हैं। ज्ञानी गुरुओं के सम्पर्क में आकर हमारे ज्ञान में निरन्तर वृद्धि हो । [ साधनं साधः ] [३] हे प्रभो ! आप हमें निरन्तर यही तो प्रेरणा दे रहे हैं कि (आदित्यानाम्) = सब ज्ञानों का आदान करनेवाले गुरुओं के (शर्मणि) = [स्थाने सा० shelter ] शरण में (स्था:) = तू स्थित हो और (भुरण्यसि) = ज्ञान से अपने को भरनेवाला बन तथा कर्त्तव्य कर्मों का धारण करनेवाला बन । [४] हम आपकी इस प्रेरणा को सुनते हुए ज्ञानियों से ज्ञान को प्राप्त करने के लिये यत्नशील हों तथा प्रतिदिन समिधानं अग्निम् समिद्ध की जाती हुई अग्नि से (स्वस्ति) = कल्याण की (ईमहे) = याचना करें। यह अग्निहोत्र की अग्नि हमें नीरोग व सुमना बनाये और इस प्रकार हमें ज्ञान प्राप्ति के योग्य करे।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम द्वेष से ऊपर उठकर हृदय को निर्मल बनायें। आचार्यों के सम्पर्क में आकर ज्ञान को प्राप्त करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    द्रोहरहित पुरुषों का सत्संग। ज्ञानप्रकाशकों की शरण में रहकर ज्ञान प्राप्ति।

    भावार्थ

    (अद्य) आज (बर्हिषः स्तरीमणि) वृद्धिशील राष्ट्र के विस्तार करने वाले, और (ग्राव्णां योगे) उत्तम उपदेष्टा और शत्रु हिंसक वीरों के संयोग होने पर और (मन्मनः साधे) मनन करने योग्य ज्ञान के साधना-काल में हम (अद्वेषः ईमहे) द्वेष से रहित पुरुषों को प्राप्त करें, वा, उनसे ही द्वेष रहित होने की याचना करें। हे मनुष्य ! यदि तू (भुरण्यसि) आगे बढ़ना चाहता है, वा अपने को पालन पोषण करना चाहता है तो तू (आदित्यानां) सूर्य की किरणों के समान ज्ञान के प्रकाशक, पृथिवी के उपासक कृषकों के तुल्य अन्नोत्पादक जनों के (शर्मणि) दिये सुख शरण में (स्थाः) रह। हम (समिधानम् अग्निं स्वस्ति ईमहे) प्रकाश देने वाले अग्निवत् ज्ञानी पुरुष से अपने कल्याण और सुख की याचना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः- १, ६, ९, ११ विराड्जगती। २ भुरिग् जगती। ३, ७, १०, १२ पादनिचृज्जगती। ४, ८ आर्चीस्वराड् जगती। ५ आर्ची भुरिग् जगती। १३ निचृत् त्रिष्टुप्। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अद्य) अस्मिन् जन्मनि (अद्वेषः बर्हिषः स्तरीमणि) यस्मिन् द्वेषो न भवति तथाभूतेऽध्यात्मज्ञानस्य “बर्हि विज्ञानम्” [ऋ०१।८३।६ दयानन्दः] आच्छादके स्तरे वातावरणे (ग्राव्णां योगे) विदुषां सम्बन्धे “विद्वांसो हि ग्रावाणः” [श०३।९।३-१४] (मन्मनः साधे-ईमहे) मननीयस्य मनोरथस्य साधनाय त्वा परमात्मानं याचामहे-प्रार्थयामहे (आदित्यानां शर्मणि स्थः भुरण्यसि) हे परमात्मन् ! त्वम्-अखण्डब्रह्मचर्यज्ञानवतां विदुषां कल्याणे स्थितः सन् तान् पालयसि, अग्रे पूर्ववत् ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Today in the congregation of the sages on the holy grass spread on the yajna vedi of search for knowledge without jealousy, anger and malice, we pray for the fulfilment of our aspirations. O man, smart and brilliant as you are, we wish that you enjoy the light and peace of the bliss and warmth of the sun in the zodiacs throughout the year in the inspiring company of eminent scholars and thus advance. We pray that the lighted fire and rising dawn bless us with felicity and total fulfilment.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसाच्या या जन्मात अध्यात्मज्ञानाची वृद्धी झाली पाहिजे. वेदविज्ञानाच्या संयोगात व ब्रह्मचर्य इत्यादी व्रताद्वारे परमात्म्याची उपासनारूपी शरणागती पत्करण्याने मनोरथाची सिद्धी होते. ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top