ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 36/ मन्त्र 14
ऋषिः - लुशो धानाकः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स॒वि॒ता प॒श्चाता॑त्सवि॒ता पु॒रस्ता॑त्सवि॒तोत्त॒रात्ता॑त्सवि॒ताध॒रात्ता॑त् । स॒वि॒ता न॑: सुवतु स॒र्वता॑तिं सवि॒ता नो॑ रासतां दी॒र्घमायु॑: ॥
स्वर सहित पद पाठस॒वि॒ता । प॒श्चाता॑त् । स॒वि॒ता । पु॒रस्ता॑त् । स॒वि॒ता । उ॒त्त॒रात्ता॑त् । स॒वि॒ता । अ॒ध॒रात्ता॑त् । स॒वि॒ता । नः॒ । सु॒व॒तु॒ । स॒र्वऽता॑तिम् । स॒वि॒ता । नः॒ । रा॒स॒ता॒म् । दी॒र्घम् । आयुः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सविता पश्चातात्सविता पुरस्तात्सवितोत्तरात्तात्सविताधरात्तात् । सविता न: सुवतु सर्वतातिं सविता नो रासतां दीर्घमायु: ॥
स्वर रहित पद पाठसविता । पश्चातात् । सविता । पुरस्तात् । सविता । उत्तरात्तात् । सविता । अधरात्तात् । सविता । नः । सुवतु । सर्वऽतातिम् । सविता । नः । रासताम् । दीर्घम् । आयुः ॥ १०.३६.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 36; मन्त्र » 14
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
पदार्थ
(सविता पश्चातात्) सर्वोत्पादक प्रेरक परमात्मा हमारा पश्चिम से रक्षा करनेवाला (सविता पुरस्तात्) सर्वोत्पादक परमात्मा हमारा पूर्व से रक्षा करनेवाला (सविता-उत्तरात्तात्) सर्वोत्पादक प्रेरक परमात्मा हमारा उत्तर से रक्षा करनेवाला (सविता-अधरात्तात्) सर्वोत्पादक हमारी अधो दिशा से-नीचे की दिशा से हमारी रक्षा करनेवाला (सविता नः सर्वतातिं सुवतु) सर्वोत्पादक प्रेरक परमात्मा हमारी समस्त कल्याणकारी वस्तु को उत्पन्न करे-प्रेरित करे-देवे (सविता नः-दीर्घम्-आयुः-रासताम्) सर्वोत्पादक प्रेरक परमात्मा हमारे लिये दीर्घ जीवन देवे ॥१४॥
भावार्थ
उत्पादक प्रेरक परमात्मा के आदेश के अनुसार रहने पर वह सर्व दिशाओं से रक्षा करता है और कल्याणकारी वस्तु एवं जीवन प्रदान करता है ॥१४॥
पदार्थ
पदार्थ = ( सविता ) = सब जगत् का उत्पादक देव ( पश्चात्तात् ) = पीछे ( सविता पुरस्तात् ) = सविता सम्मुख ( सविता उत्तरात्तात् ) = सविता उत्तर दिशा ( सविता अधरात्तात् ) = नीचे व दक्षिण दिशा में भी हमारी रक्षा करे। ( सविता ) = सविता ( नः ) = हमें ( सर्वतातिम् ) = सब इष्ट पदार्थ ( सुवतु ) = देवे ( सविता ) = वही ( सविता ) = जगत्पिता ( नः ) = हमें ( दीर्घम् आयुः ) = लम्बी आयु ( रासताम् ) = प्रदान करे ।
भावार्थ
भावार्थ = जगत् पिता परमात्मा, पूर्वादि सब दिशाओं में हमारी रक्षा करे और हमें मनोवांछित पदार्थ देता हुआ दीर्घ आयुवाला बनावे। जिससे हम धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, इन चार पुरुषार्थों को प्राप्त होकर सदा सुखी हों ।
विषय
सविता से सुत सर्वताति
पदार्थ
[१] गत मन्त्र में प्रार्थना की गई है कि हम सत्य प्रेरणा देनेवाले सविता को प्रेरणा में चलते हुए देव बनें और सौभाग्यशाली जीवनवाले हों। उसी प्रार्थना को परिवर्तित रूप में इस प्रकार करते हैं कि वह सर्वव्यापक, सर्वप्रेरक (सविता) = सम्पूर्ण ऐश्वर्यौवाला प्रभु (पश्चातात्) = पीछे से वही (सविता) = प्रेरक प्रभु (पुरस्तात्) = सामने से वही (सविता) = सब उत्तमताओं को जन्म देनेवाला प्रभु (उत्तरात्तात्) = ऊपर उत्तर से तथा वही सविता जन्मदाता प्रभु (अधरात्तात्) = नीचे से यह (सविता) = उत्पादक प्रभु (नः) = हमारे लिये (सर्वतातिम्) = सब शक्तियों के विस्तार को (सुवतु) = प्रेरित करे । सविता की कृपा से हमारे जीवनों में सब शक्तियों का विस्तार हो । [२] इस शक्ति के विस्तार के द्वारा (सविता) = यह प्रेरक प्रभु (नः) = हमें (दीर्घम् आयुः) = दीर्घ जीवन (रासताम्) = दें शक्तियों के ह्रास से जीवन का ह्रास है, शक्तियों के विस्तार से जीवन का विस्तार है। शक्तियों का विस्तार करते हुए प्रभु हमें दीर्घजीवन प्राप्त कराते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सविता की कृपा से हमारी सब शक्तियों का विस्तार हो और हमें दीर्घजीवन प्राप्त हो । सूक्त के प्रारम्भ में कहा गया है कि सब देवों का अनुकरण करते हुए मैं अपने जीवन को स्वर्गतुल्य बनाता हूँ। [१] मैं स्वस्थ मस्तिष्क व स्वस्थ शरीरवाला बनूँ, [२] हम लोलुपता - शून्य ऐश्वर्यवाले हों, [३] आचार्यों का उपदेश हमारे जीवनों से अशुभवृत्तियों को दूर करे, [४] हमारे जीवन में ज्ञान व भक्ति का समन्वय हो, [५] यज्ञाग्नि व सूर्यरश्मियाँ मिलकर वायुमण्डल के शोधक हों, [६] प्राणसाधना हमारे जीवन को पवित्र व सशक्त बनाये, [७] सोम का भरण हमारे जीवन को सफल करे, [८] हम संविभाग की वृत्ति से प्रभु का उपासन करनेवाले बनें, [९] हम जैत्र क्रतु को प्राप्त करें, [१०] हम देवों की तरह 'महान्, बृहत् व अनर्वा' बनें, [११] प्रभु की प्रेरणा में चलें, [१२] स्नेह व निर्दोषतावाले हों, [१३] सविता से हमें सर्वताति प्राप्त हो और [१४] इस प्रकार हम 'सौर्य अभिलाषा' बन पायें।
विषय
सर्वत्र प्रभु की भावना।
भावार्थ
(सविता पुरस्तात्) समस्त जगत् का उत्पादक प्रभु हमारे आगे, (सविता पश्चातात्) सबका सन्मार्ग में संचालक प्रेरक प्रभु हमारे पीछे हो, (सविता उत्तरात्तात्) ऐश्वर्यदाता प्रभु हमारे उत्तर में, वायें या ऊपर हो और (अधरात्तात् सविता) वह सर्वैश्वर्य का उत्पादक हमारे दक्षिण में या नीचे हो। (सविता नः सर्वतातिं सुवतु) वह सर्वोत्पादक प्रभु हमारा सब अभिलषित सुख प्रदान करे। (सविता नः दीर्घम् आयुः रासतां) वह सर्वप्रेरक, सर्वप्रभु जगदीश्वर हमें दीर्घ आयु प्रदान करे। इत्येकादशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:– १, २, ४, ६–८, ११ निचृज्जगती। ३ विराड् जगती। ५, ९, १० जगती। १२ पादनिचृज्जगती। १३ त्रिष्टुप्। १४ स्वराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सविता पश्चातात्) सर्वोत्पादकः प्रेरकः परमात्माऽस्माकं पश्चादपि रक्षकः (सविता पुरस्तात्) सर्वोत्पादकः प्रेरकः परमात्माऽस्माकं पूर्वदिक्तश्च रक्षकः (सविताः-उत्तरात्तात्) सर्वोत्पादकः प्रेरकः परमात्माऽस्माकमुत्तरदिशश्च रक्षकः (सविता-अधरात्तात्) सर्वोत्पादकः परमात्माऽधो दिशश्च रक्षकः (सविता नः सर्वतातिं सुवतु) उत्पादकः प्रेरकः परमात्माऽस्मभ्यं सर्वकल्याणकरं वस्तूत्पादयतु प्रेरयतु-ददातु (सविताः नः दीर्घम्-आयुः रासताम्) सर्वोत्पादकः प्रेरकः परमात्माऽस्मभ्यं दीर्घं जीवनं ददातु ॥१४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Savita protect us from behind. May Savita protect us in front. May Savita protect us from above. May Savita protect us from below. May Savita bless us all round, create and give us universal wealth of existence. May Savita bless us with a long, happy and full life.
मराठी (1)
भावार्थ
उत्पादक प्रेरक परमात्म्याच्या आदेशानुसार वागल्यास तो सर्व दिशांकडून रक्षण करतो व कल्याणकारी वस्तू व दीर्घ जीवन प्रदान करतो. ॥१४॥
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