ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
ऋषिः - इन्द्रो मुष्कवान्
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
यो नो॒ दास॒ आर्यो॑ वा पुरुष्टु॒तादे॑व इन्द्र यु॒धये॒ चिके॑तति । अ॒स्माभि॑ष्टे सु॒षहा॑: सन्तु॒ शत्र॑व॒स्त्वया॑ व॒यं तान्व॑नुयाम संग॒मे ॥
स्वर सहित पद पाठयः । नः॒ । दासः॑ । आर्यः॑ । वा॒ । पु॒रु॒ऽस्तु॒त । अदे॑वः । इ॒न्द्र॒ । यु॒धये॑ । चिके॑तति । अ॒स्माभिः॑ । ते॒ । सु॒ऽसहाः॑ । स॒न्तु॒ । शत्र॑वः । त्वया॑ । व॒यम् । तान् । व॒नु॒या॒म॒ । स॒म्ऽग॒मे ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो नो दास आर्यो वा पुरुष्टुतादेव इन्द्र युधये चिकेतति । अस्माभिष्टे सुषहा: सन्तु शत्रवस्त्वया वयं तान्वनुयाम संगमे ॥
स्वर रहित पद पाठयः । नः । दासः । आर्यः । वा । पुरुऽस्तुत । अदेवः । इन्द्र । युधये । चिकेतति । अस्माभिः । ते । सुऽसहाः । सन्तु । शत्रवः । त्वया । वयम् । तान् । वनुयाम । सम्ऽगमे ॥ १०.३८.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 38; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पुरुष्टुत-इन्द्र) हे बहुत प्रशंसनीय राजन् ! (यः) जो (दासः) यज्ञादिकर्मविहीन (आर्यः-अदेवः) सदाचरणसम्पन्न परन्तु नास्तिक (नः-युधये चिकेतति) हमारे प्रति युद्ध करने के लिए संकल्प करता है-सोचता है (अस्माभिः-ते शत्रवः सुसहाः सन्तु) हम सैनिकों के द्वारा वे शत्रुजन सुगमतया सहन करने योग्य अर्थात् पराजित करने योग्य हों (त्वया वयं सङ्गमे तान् वनुयाम) तेरे साथ उन्हें हम संग्राम में हिंसित करने में समर्थ हों ॥३॥
भावार्थ
प्रजा को चाहिए कि अपने राजा का सदा साथ दे। जिससे वह राष्ट्र में धर्मकर्म-विहीन और सदाचारसम्पन्न परन्तु नास्तिक, विरुद्ध चिन्तन करनेवाले जनों को दण्ड देने में समर्थ हो ॥३॥
विषय
विजय
पदार्थ
[१] हे पुरुष्टुत खूब ही स्तुत होनेवाले (इन्द्र) = सब बल के कार्यों को करनेवाले प्रभो ! (यः) = जो कोई (दासः आर्यो वा) = शूद्र अथवा ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य (अदेवः) = अदिव्य वृत्तिवाला होता हुआ (नः) = हमें (युधये चिकेतति) = युद्ध के लिये जानता है, अर्थात् हमारे साथ युद्ध के लिये उठ खड़ा होता है, (ते शत्रवः) = वे सब शत्रु (अस्माभिः) = हमारे से (सुषहाः सन्तु) = सुगमता से अभिभव करने योग्य हों। हम अपने शत्रुओं को जीत सकें, चाहे वे शत्रु दास हों और चाहे आर्य । यदि उनमें युद्ध की यह अदिव्य वृत्ति जाग उठी है और वे हमारे पर अन्याय से आक्रमण करते हैं, तो हम अपना रक्षणात्मक युद्ध करते हुए उनको पराजित करनेवाले हों । [२] हे प्रभो ! (त्वया) = आपके साथ (वयम्) = हम (तान्) = उनको (संगमे) = युद्ध की टक्कर में वनुयाम जीत सकें। प्रभु की सहायता के बिना विजय सम्भव नहीं होता । प्रभु का स्मरण करना चाहिये, यह स्मरण ही हमें विजयी बनायेगा।
भावार्थ
भावार्थ-यदि कोई हमारे पर आक्रमण करे तो रक्षणात्मक युद्ध को करते हुए हम उन शत्रुओं को पराजित करनेवाले हों।
विषय
हम दुष्ट शत्रु के विजेता हों
भावार्थ
हे (पुरु-स्तुत) बहुतसी प्रजाओं द्वारा प्रस्तुत, मुख्य शासक ! (यः) जो (नः) हमारे बीच (दासः) हमारा भृत्य, काम करने वाला, वा (आर्यः) श्रेष्ठ स्वामी, (अदेवः) अदानशील, हमारे अधिकार और ऋण आदि को न देता हुआ (युद्धये चिकेतति) युद्ध करने के लिये सोचता है, (ते) तेरे वे सब शत्रु लोग (अस्माभिः) हम द्वारा (सु-सहाः सन्तु) सुख से पराजित हों। और (त्वया) तुझ द्वारा (वयं) हम भी (तान्) उन शत्रुओं को (संगमे) संग्राम में (वनुयाम) विनाश करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रो मुष्कवान् ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:-१, ५ निचृज्जगती। २ पाद निचृज्जगती। ३, ४, विराड् जगती॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पुरुष्टुत-इन्द्र) हे बहुप्रशंसनीय राजन् ! (यः) यो हि (दासः) यज्ञादिकर्मविहीनो यद्वा (आर्यः-अदेवः) सदाचरणसम्पन्नः परन्तु न देवो यस्य तथाभूतो नास्तिकः (नः-युधये चिकेतति) अस्मान् प्रति युद्धाय युद्धकरणाय सङ्कल्पयति (अस्माभिः ते शत्रवः सुसहाः सन्तु) अस्माभिः सैनिकैः सह ते शत्रवः सुगमतया सोढुं शक्याः पराजेतुं शक्याः सन्तु-सन्ति, तथा (त्वया वयं सङ्गमे तान् वनुयाम) त्वया सह च सङ्ग्रामे “सङ्गमे संग्रामनाम” [ निघ० २।१७] तान् शत्रून् वयं हिंस्म-हन्तुं समर्था भवेम “वनुयाम वनुष्यतः” [ऋ० ८।४०।७] “वनुष्यति हन्तिकर्मा” [निरु० ५।२] ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord most admired and celebrated, Indra, whether it is a power ignoble and slavish in character, or even one dynamic in character but undivine and negative, who challenges us to battle, let those enemies be boldly faced and fought out, and let us all under your leadership, overthrow and destroy them in battle.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजेने सदैव आपल्या राजाची साथ करावी. राष्ट्रात जे धर्मकर्मविहीन व सदाचारसंपन्न परंतु नास्तिक, विरुद्ध चिंतन करणाऱ्या लोकांना दंड देण्यास समर्थ असावे. ॥३॥
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