ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 47/ मन्त्र 6
ऋषिः - सप्तगुः
देवता - इन्द्रो वैकुण्ठः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
प्र स॒प्तगु॑मृ॒तधी॑तिं सुमे॒धां बृह॒स्पतिं॑ म॒तिरच्छा॑ जिगाति । य आ॑ङ्गिर॒सो नम॑सोप॒सद्यो॒ऽस्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । स॒प्तऽगु॑म् । ऋ॒तऽधी॑तिम् । सु॒ऽमे॒धाम् । बृ॒ह॒स्पति॑म् । म॒तिः । अच्छ॑ । जि॒गा॒ति॒ । यः । आ॒ङ्गि॒र॒सः । नम॑सा । उ॒प॒ऽसद्यः॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । चि॒त्रम् । वृष॑णम् । र॒यिम् । दाः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सप्तगुमृतधीतिं सुमेधां बृहस्पतिं मतिरच्छा जिगाति । य आङ्गिरसो नमसोपसद्योऽस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा: ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । सप्तऽगुम् । ऋतऽधीतिम् । सुऽमेधाम् । बृहस्पतिम् । मतिः । अच्छ । जिगाति । यः । आङ्गिरसः । नमसा । उपऽसद्यः । अस्मभ्यम् । चित्रम् । वृषणम् । रयिम् । दाः ॥ १०.४७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 47; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सप्तगुम्) सात छन्दोमय गान करनेवाली वेदवाणियों के स्वामी (ऋतधीतिम्) सत्यकर्मवाले (सुमेधाम्) शोभन प्रज्ञावाले (बृहस्पतिम्) महान् आकाशादि पदार्थों के स्वामी परमात्मा को (यः-आङ्गिरसः-मतिः) जो प्राणायाम का अभ्यासी मेधावी जन है, वह (नमसा-उपसद्यः-अच्छ-प्र जिगाति) स्तुति से समीप पहुँचनेवाला, भलीभाँति प्राप्त करता है (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥६॥
भावार्थ
प्राणायाम आदि योगाभ्यास करनेवाला जन वेदवाणी के स्वामी, सर्वज्ञ, सत्यकर्मवाले महान् विश्व के स्वामी परमात्मा को स्तुति से प्राप्त करता है। जो परमात्मा हमें निश्चित धनों और सुखों को प्राप्त कराता है ॥६॥
विषय
सुमेध व विनीत
पदार्थ
[१] (मतिः) = मेरी बुद्धि या विचार (अच्छा) = उस सन्तान की ओर (प्रजिगाति) = जाता है जो कि [क] (सप्तगुम्) = [सर्प = सर्पणशील] सर्पणशील इन्द्रियोंवाला है, जिसकी इन्द्रियाँ ठीक कार्य करती हैं, जीर्ण नहीं हो जाती। [ख] (ऋतधीतिम्) = [सत्यकर्माणम्] जिसके कर्म सत्य व उत्तम हैं। [ग] (सुमेधाम्) = जो उत्तम बुद्धिवाला है, [घ] (बृहस्पतिम्) = जो विशाल हृदय का पति है, संकुचित हृदय नहीं है । [ङ] (यः आंगिरसः) = जो अंग-अंग में रसवाला है, जिसका शरीर शीर्ण- शक्ति होकर सूखे काठ की तरह नहीं हो गया, [च] (नमसा उपसद्यः) = जो नम्रता के साथ बड़ों के समीप प्राप्त होनेवाला है । [२] हे प्रभो ! (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (चित्रम्) = ज्ञान के देनेवाले, ज्ञान को प्राप्त करके ज्ञान का प्रसार करनेवाले (वृषणम्) = शक्तिशाली व सुखों का वर्षण करनेवाले (रयिम्) = पुत्र नामक धन को (दाः) = दीजिये ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु कृपा से हमें सुमेध बुद्धि व विनीत सन्तान प्राप्त हो ।
विषय
सर्वनमस्य, सप्तप्राण, सप्तरश्मि सत्यकर्मा, बृहस्पति।
भावार्थ
(यः) जो (आङ्गिरसः) अग्नि के समान स्वप्रकाश, समस्त पदार्थों में बलस्वरूप, (नमसा उपसद्यः) विनयपूर्वक प्राप्त होने योग्य है उस (सप्त-गुम्) सात रश्मियों, सप्त प्राण सूर्य और आत्मा के सदृश विश्व के आत्मा, (ऋत-धीतिम्) सत्यकर्मा, सत्य ज्ञान के धारक, (सु-मेधाम्) उत्तम बुद्धि, ज्ञानवाणी और दुष्टनाशिनी शक्ति वाले, (बृहस्पतिम्) वेदवाणी और बड़ी भारी शक्ति और ब्रह्माण्ड के स्वामी प्रभु को (मतिः) ज्ञानवती बुद्धि या मननशील मनुष्य (अच्छ जिगाति) साक्षात् प्राप्त हो। हे प्रभो ! तू (अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः) हमें अद्भुत, सर्वसुखप्रद, बलशाली ऐश्वर्य दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सप्तगुः॥ देवता–इन्द्रो वैकुण्ठः॥ छन्द:– १, ४, ७ त्रिष्टुप्। २ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् त्रिष्टुप्। ५, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सप्तगुम्) सप्तगावो गानकर्त्र्यो गायत्रीप्रभृतयो वाचो यस्य तथाभूतम् (ऋतधीतिम्) सत्यकर्माणम् “धीतिभिः कर्मभिः” [निरु० २।२४] (सुमेधाम्) शोभनप्रज्ञम् (बृहस्पतिम्) बृहतामाकाशादीनां पतिं स्वामिनम् (यः-आङ्गिरसः-मतिः) यः खलु प्राणानामभ्यासी मेधावी जनः “मतयः-मेधाविनाम” [निघ० ३।१५] (नमसा-उपसद्यः-अच्छ प्रजिगाति) स्तुत्या प्राप्तुं योग्योऽभिमुखं प्राप्नोति (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
We know you Indra, lord of the seven-fold world of existence sung by seven priests with seven songs of the Veda, lord of infinite intelligence, presiding over the expansive universe whom the man of intelligence adores and who is directly invoked with homage and prayer of the man of dynamic faith. Pray give us the wondrous wealth of the world full of abundant creative possibilities.
मराठी (1)
भावार्थ
प्राणायाम इत्यादी योगाभ्यास करणारा योगाभ्यासी, वेदवाणीचा स्वामी, सर्वज्ञ, सत्य कर्म करणाऱ्या महान विश्वाचा स्वामी असलेल्या परमात्म्याला आपल्या स्तुतीने प्राप्त करतो. परमात्मा आम्हाला निश्चित धन व सुख प्राप्त करवितो. ॥६॥
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