ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 47/ मन्त्र 7
वनी॑वानो॒ मम॑ दू॒तास॒ इन्द्रं॒ स्तोमा॑श्चरन्ति सुम॒तीरि॑या॒नाः । हृ॒दि॒स्पृशो॒ मन॑सा व॒च्यमा॑ना अ॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥
स्वर सहित पद पाठवनी॑वानः । मम॑ । दू॒तासः॑ । इन्द्र॑म् । सोमाः॑ । च॒र॒न्ति॒ । सु॒ऽम॒तीः । इ॒या॒नाः । हृ॒दि॒ऽस्पृशः॑ । मन॑सा । व॒च्यमा॑नाः । अ॒स्मभ्य॑म् । चि॒त्रम् । वृष॑णम् । र॒यिम् । दाः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वनीवानो मम दूतास इन्द्रं स्तोमाश्चरन्ति सुमतीरियानाः । हृदिस्पृशो मनसा वच्यमाना अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा: ॥
स्वर रहित पद पाठवनीवानः । मम । दूतासः । इन्द्रम् । सोमाः । चरन्ति । सुऽमतीः । इयानाः । हृदिऽस्पृशः । मनसा । वच्यमानाः । अस्मभ्यम् । चित्रम् । वृषणम् । रयिम् । दाः ॥ १०.४७.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 47; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
पदार्थ
(मम) मुझ स्तोता के (स्तोमाः) पूर्वोक्त स्तुतिसमूह (वनीवानाः) अनुरागवाले (दूतासः) दूत की भाँति अभिप्राय प्रकट करनेवाले (सुमतीः-इयानाः) प्रियकारिणी मतियों को चाहते हुए (हृदिस्पृशः-मनसा वच्यमानाः) हृदय में लगती हुई-अन्तःकरण से उच्चरित होती हुई सी (इन्द्रं चरन्ति) परमात्मा को प्राप्त होती हैं (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत्॥७॥
भावार्थ
उपासक की स्तुतियाँ अनुरागपूर्ण कल्याण चाहती हुई, हृदय में लगती हुई, अन्तःकरण से निकली हुई परमात्मा के लिए होनी चाहिए। वह परमात्मा हमारे लिए धनों और सुखों को प्राप्त कराता है ॥७॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1180
ओ३म् वनी॑वानो॒ मम॑ दू॒तास॒ इन्द्रं॒ स्तोमा॑श्चरन्ति सुम॒तीरि॑या॒नाः ।
हृ॒दि॒स्पृशो॒ मन॑सा व॒च्यमा॑ना अ॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥
ऋग्वेद 10/47/7
भक्ति भरे दूत भजन
भेजें तुझको भगवन्
स्तुति समूह के सुमत-सुमन
रख दिए तेरे चरनन
सन्देश के रथ पर बैठे
यह दूत कर रहे प्रसरण
दे दो चरणों में आयतन
भक्ति भरे दूत भजन
भेजें तुझको भगवन्
कृत और करिष्माण कर्मों के
दूत बना दो ज्ञानी
धर्मयुक्त मनमोहक धन से
उन्हें बना दो नामी
प्रणत प्रार्थना प्रार्थी की सुन
अपना बना लो भाजन
अतिशय भक्ति भाव सँजोये
दूत कर रहे प्रसरण
भक्ति भरे दूत भजन
भेजें तुझको भगवन्
आर्य बनाकर इन्द्र को कर दो
परोपकार परायण
हृदयासन पर आके विराजो
भाव-भरित सुनो भजन
मनसा वाचा कर्मणा से प्रभु
होवे बुद्धि उत्तम
अलख जगा दो हृदय में अपनी
हे प्रभु! अलखनिरञ्जन !
भक्ति भरे दूत भजन
भेजें तुझको भगवन्
स्तुति समूह के सुमत-सुमन
रख दिए तेरे चरनन
सन्देश के रथ पर बैठे
यह दूत कर रहे प्रसरण
दे दो चरणों में आयतन
भक्ति भरे दूत भजन
भेजें तुझको भगवन्
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :--
राग :- अहीर भैरव
गायन समय प्रातः प्रथम प्रहर(४ से ७), राग की प्रकृति भक्तिभाव व करुण रस ताल कहरवा ८मात्रा
शीर्षक :- मेरे भजन मेरे दूत हैं भजन ७५८वां
*तर्ज :- *
754-00155
स्तुति समूह = अत्यधिक स्तुतियां
सुमत = ज्ञानवान, बुद्धिमान
प्रसरण = आगे बढ़ना
आयतन = आश्रय, सहारा
कृत्य = किया हुआ, संपादित
करिष्माण = करने के लिए तैयार
नामी = प्रसिद्ध
प्रणत = विनय युक्त
भाजन = पात्र
याचन = प्रार्थना
परायण = तत्पर, लगा हुआ
भावभरित = भावों से भरे
अलख जगाना = ईश्वर के नाम की भीख मांगना
इन्द्र =आत्मा
Vyakhya
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
मेरे भजन मेरे दूत हैं
भावुक भक्त के मन में भगवान तक अपना सन्देश भेजने की बात आई है।
उसने भगवान से सुना है ('मामायन्ति कृतेन कर्त्वेन च')[ ऋग्वेद १०.४८.३] मेरे पास कृत और करिष्माण के द्वारा आते हैं अर्थात् लोगों के किए कर्मों का फल भोगने के लिए तथा आगे करिष्माण कर्मों से होने वाले सुख की अभिलाषा से मेरे पास आते हैं अतः भक्त अब भगवान के पास करिष्माण द्वारा जाना चाहता है। उससे पहले (भगवद्भजन रूपी) दूत भेजता है।स्तोम=अर्थात् भगवद्भभक्ति के भजन दूत हैं। दूत के लिए भौतिककारों ने लिखा है कि बुद्धिमान हो ताकि अपनी बात भली प्रकार समझा सके और दूसरे की बात समझ सके, दूतों का यही कार्य होता है। भक्तों के दूत भी 'सुमतिरियाना:'=यानी उत्तम ज्ञान करानेवाले हैं, अर्थात् भगवद्भभक्ति के स्तोम(स्तुतियां) बुद्धि पूर्वक रचे गए हैं। भगवान का भजन करते समय सुमति से काम लेना चाहिए। प्रभु की स्तुति के वाक्य तोता रटन्तन ना हों वरन् वे 'मनसा वच्यमाना'=अर्थात मन से बोले गए हों दिल से निकले हों और साथ ही हृदय स्पर्श:=अर्थात् हृदयस्पर्शी हों, दिल को हिला देने वाले हों। नीतिकार कहते हैं दूत विनम्र होना चाहिए। भक्त के दूत भी 'वनीवान' हैं, अर्थात् अतिशय भक्ति भाव से भरपूर हैं। दूत अगर अड़ियल हों तो काम बिगाड़ देते हैं। इसलिए भगवान के पास स्तुति-दूत भी नम्रता से भरे भेजे हैं।
भगवान के पास तुम्हारा संदेश लेकर और कोई व्यक्ति नहीं जा सकता। यदि अन्य कोई आ सकता है तो तुम भी जा सकते हो। यदि फिर भी आग्रह है कि दूत ही भेजने हैं तो भगवत् भजनों को दूत बनाओ और उन दूतों में वे सारे लक्षण होने चाहिए। तुम्हारे दूत तुम्हारा संदेश देते हैं--अस्मभ्यं चित्रं वृषणों रयि दा=अर्थात् हमें मनमोहक धर्मयुक्त धन दो। भगवान कह चुके हैं--
अहं 'भूमिमददामार्या'[ऋग्वेद ४.२६.२]
मैं आर्य को भूमि देता हूं। भगवान से धन लेना है तो आर्य बनो। आर्य का लक्षण वेद में परोपकार-परायण किया गया है। इसलिए आर्य बनो सब भूमि तुम्हारी है।
विषय
स्तवन का सन्तान पर प्रभाव
पदार्थ
[१] (मम स्तोमाः) = मेरे स्तवन (इन्द्रं चरन्ति) = प्रभु को प्राप्त होते हैं । वे स्तवन जो कि [क] (वनीवानः) = सम्भजनवाले हैं, प्रभु का उपासन करनेवाले हैं, [ख] (दूतासः) = प्रभु के गुणों का उच्चारण करनेवाले हैं अथवा प्रभु के सन्देश को मेरे तक पहुँचानेवाले हैं तथा [ग] (सुमती:) = कल्याणी मतियों को (इयानाः) = प्राप्त करानेवाले हैं । [घ] (हृदिस्पृशः) = हृदय स्पर्शी हैं, हृदय को प्रभावित करनेवाले हैं। [ङ] (मनसा वच्यमाना:) = मन से बोलने जा रहे हैं। ये स्तोत्र 'यान्त्रिक रूप में वाणी से उच्चारित होते जाते हों' ऐसी बात नहीं, अर्थ चिन्तन के साथ ये मन से बोले जा रहे हैं। ऐसा होने पर ही ये हृदय को प्रभावित करते हैं । [२] ऐसे स्तवनों के होने पर ही उत्तम सन्तान प्राप्त होती है और तभी हम इस प्रार्थना के अधिकारी होते हैं कि (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रयिं दाः) = उस पुत्राख्य धन को दीजिये जो कि (चित्रम्) = ज्ञानी बनकर ज्ञान का देनेवाला हो और (वृषणम्) = शक्तिशाली हो ।
भावार्थ
भावार्थ - जिस घर में प्रभु का स्तवन चलता है, वहाँ अवश्य सन्तान उत्तम होती है ।
विषय
प्रभु से याचना-विनय और ऐश्वर्य, और रक्षा, स्थानादि की याचना।
भावार्थ
(वनीवानाः) याचना, प्रार्थना से युक्त (सु-मतीः इयानाः) शुभ बुद्धियों को प्राप्त वा उनको चाहने वाले, (मम स्तोमाः) मेरे स्तुतिगण (दूतासः) स्तुतिशील दूतों के समान (हृदि-स्पृशः) हृदय में पहुंचे हुए, (मनसा) मन से, ज्ञानपूर्वक (वच्यमानाः) उच्चारण किये हुए, (इन्द्रं चरन्ति) उस ऐश्वर्यवान् प्रभु तक पहुंचें, हे प्रभो ! (अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः) हमें सर्व-सुखवर्षक, आश्चर्यकारी ऐश्वर्य प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सप्तगुः॥ देवता–इन्द्रो वैकुण्ठः॥ छन्द:– १, ४, ७ त्रिष्टुप्। २ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् त्रिष्टुप्। ५, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मम) मम स्तोतुः (स्तोमाः) पूर्वोक्ताः स्तुतिसमूहाः (वनीवानाः) सम्भजनवन्तः-अनुरागवन्तः (दूतासः) दूतवदभिप्रायं प्रकटयन्तः (सुमतीः-इयानाः) अनुकूलमतीः प्रियकारिणीर्मतीर्याचमानाः (हृदिस्पृशः-मनसा वच्यमानाः) हृदये संलग्ना मनसाऽन्तः- करणेनोच्यमानाः (इन्द्रं चरन्ति) परमात्मानं प्राप्नुवन्ति (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
My songs of adoration full of love and faith, vibrating with holy thoughts, expressive of the language of my mind and touching the heart, reach Indra like messengers of my soul. Indra, pray give us wondrous wealth of the world in abundance.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्यासाठी उपासकाची स्तुती अनुरागपूर्ण, कल्याण इच्छिणारी, हृदयापासून निघालेली, अंत:करणापासून निघालेली असली पाहिजे. परमात्मा आम्हाला धन व सुख देतो. ॥७॥
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