Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 53 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 53/ मन्त्र 11
    ऋषिः - देवाः देवता - अग्निः सौचीकः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    गर्भे॒ योषा॒मद॑धुर्व॒त्समा॒सन्य॑पी॒च्ये॑न॒ मन॑सो॒त जि॒ह्वया॑ । स वि॒श्वाहा॑ सु॒मना॑ यो॒ग्या अ॒भि सि॑षा॒सनि॑र्वनते का॒र इज्जिति॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गर्भे॑ । योषा॑म् । अद॑धुः । व॒त्सम् । आ॒सनि॑ । अ॒पी॒च्ये॑न । मन॑सा । उ॒त । जि॒ह्वया॑ । सः । वि॒श्वाहा॑ । सु॒ऽमनाः॑ । यो॒ग्याः । अ॒भि । स॒सा॒सनिः॑ । व॒न॒ते॒ । का॒रः । इत् । जिति॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गर्भे योषामदधुर्वत्समासन्यपीच्येन मनसोत जिह्वया । स विश्वाहा सुमना योग्या अभि सिषासनिर्वनते कार इज्जितिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गर्भे । योषाम् । अदधुः । वत्सम् । आसनि । अपीच्येन । मनसा । उत । जिह्वया । सः । विश्वाहा । सुऽमनाः । योग्याः । अभि । ससासनिः । वनते । कारः । इत् । जितिम् ॥ १०.५३.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 53; मन्त्र » 11
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (येषां गर्भे वत्सम्-अदधुः) वाणी के अन्दर वक्तव्य अर्थात् अभिप्राय को विद्वान् धारण करते हैं (आसनि) और मुख में बोलने योग्य वचन को धारण करते हैं (अपीच्येन मनसा-उत जिह्वया) अन्तर्हित मन से तथा जिह्वा से उसे प्रकट-प्रकाशित करते हैं (सः-कारः) वह स्तुतिकर्त्ता (सुमनाः) प्रसन्नमन या शुद्धमनवाला होकर (विश्वाहा योग्याः) सदा योग्य वाणियाँ-स्तुतियाँ (अभि सिषासनिः) सम्यक् समर्पित करता हुआ परमात्मा के प्रति प्राप्त कराता हुआ (जितिम्-इत्-वनते) जीवन में विजय को सफलता को सेवन करता है ॥११॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग विद्या के अन्दर जो अभिप्राय होता है, उसे अपने अन्दर धारण करते हैं, अन्यों के लिए मौखिक प्रवचन करते हैं। इसी प्रकार मन और वाणी से परमात्मा की स्तुति करके अपने जीवन को सफल बनाते हैं ॥११॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (योषां गर्भे वत्सम्-अदधुः) योषाया वाचः ‘षष्ठीस्थाने व्यत्ययेन द्वितीया’ गर्भे-मध्ये “योषा हि वाक्” [श० १।४।४।४] वक्तव्यमभिप्रायं विद्वांसो धारयन्ति (आसनि) मुखे च वक्तव्यम् (अपीच्येन मनसा-उत जिह्वया) अन्तर्हितेन मनसा जिह्वया च प्रकटयन्ति (सः-कारः) स स्तुतिकर्त्ता (सुमनाः) शुद्धमनाः सन् (विश्वाहा योग्याः-अभि सिषासनिः) सर्वदा योग्या वाचः-स्तुतीः सम्भाजयमानः परमात्मानं प्रति प्रापयन् (जितिम्-इत्-वनते) जीवने विजयं साफल्यं सेवते ॥११॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The devas, seekers of divinity, hold the Word of omniscience like the sacred vedi fire in the depth of their mind alongwith the reality of existence signified by the Word, and they hold it with the sense of clarity of expression by their tongue controlled and disciplined in the mouth. Indeed such a man of divine word and action in control is always happy at heart and all round efficient, and only such a man wins the victory prizes of life.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान लोक विद्येचा जो अभिप्राय आहे, त्याला आपल्यामध्ये धारण करतात. इतरांसाठी मौखिक प्रवचनाद्वारे प्रकाशित करतात. या प्रकारे मन व वाणीने परमात्म्याची स्तुती करून आपले जीवन सफल बनवितात. ॥११॥

    Top