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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 53/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अग्निः सौचीकः देवता - देवाः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    तद॒द्य वा॒चः प्र॑थ॒मं म॑सीय॒ येनासु॑राँ अ॒भि दे॒वा असा॑म । ऊर्जा॑द उ॒त य॑ज्ञियास॒: पञ्च॑ जना॒ मम॑ हो॒त्रं जु॑षध्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । अ॒द्य । वा॒च । प्र॒थ॒मम् । म॒सी॒य॒ । येन॑ । असु॑रान् । अ॒भि । दे॒वाः । असा॑म । ऊर्ज॑ऽअदः । उ॒त । य॒ज्ञि॒या॒सः॒ । पञ्च॑ । ज॒नाः॒ । मम॑ । हो॒त्रम् । जु॒ष॒ध्व॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तदद्य वाचः प्रथमं मसीय येनासुराँ अभि देवा असाम । ऊर्जाद उत यज्ञियास: पञ्च जना मम होत्रं जुषध्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । अद्य । वाच । प्रथमम् । मसीय । येन । असुरान् । अभि । देवाः । असाम । ऊर्जऽअदः । उत । यज्ञियासः । पञ्च । जनाः । मम । होत्रम् । जुषध्वम् ॥ १०.५३.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 53; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अद्य) इस जन्मावसर पर या सम्मेलन-अवसर पर (वाचः-तत् प्रथमं मंसीय) वेदवाणी के उस प्रमुख लक्ष्य ब्रह्म-ब्रह्मवाचक नाम ‘ओ३म्’ को स्मरण करूँ (येन-असुरान् देवाः-अभि-असाम) जिसके द्वारा दुष्टों को हम विद्वान् अभिभूत करें, अतः (ऊर्जादः) अन्न खानेवाले (उत) और (यज्ञियासः पञ्चजनाः) सूक्ष्म आहार करनेवाले मनुष्य (मम होत्रं जुषध्वम्) मेरे हितवचन को सेवन करें ॥४॥

    भावार्थ

    जन्मावसर पर वेदवाणी के या प्रमुख नाम ‘ओ३म्‘ का स्मरण करना और जन्मे हुए बालक की जिह्वा पर ‘ओ३म्’ का लिखना और कान में सुनाना तथा सभा सत्सङ्ग के अवसर पर ‘ओ३म्’ का स्मरण करना चाहिए। उस अवसर पर स्थूलान्नभोजी या सूक्ष्म आहार करनेवाले मनुष्य मिलकर ‘ओ३म्’ का स्मरण और कीर्तन करें ॥४॥

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    विषय

    देवगण। वेदज्ञान का प्रयोजन असुरों का पराजय।

    भावार्थ

    हम लोग (वाचः) वेदवाणी के आश्रय रूप (प्रथमम्) सर्वश्रेष्ठ को (मसीय) मनन द्वारा प्राप्त हों, उसे जानें, (येन) जिससे हम (देवाः) उत्तम विद्वान् जन (असुरान् अभि असाम) केवल प्राणपोषी, विघ्नकारी पुरुषों को पराजित करें। (ऊर्जादः) बलयुक्त अन्न को खाने वाले और (यज्ञियासः) यज्ञ करने योग्य, पूज्य, (पञ्च जनाः) आप पांचों जन (मम होत्रम्) मेरे वचन या हवन, आह्वान वा उपदेश को (जुषध्वम्) सेवन करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः–१–३, ६, ११ देवाः। ४, ५ अग्नि सौचिकः॥ देवता-१-३, ६–११ अग्निः सौचीकः। ४, ५ देवाः॥ छन्द:– १, ३, ८ त्रिष्टुप् २, ४ त्रिष्टुप्। ५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ६, ७, ९ निचृज्जगती। १० विराड् जगती। ११ पादनिचृज्जगती॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञान व असुर- पराभव

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र में देवों की प्रार्थना को कि 'अविदाम गुह्याम्' 'साध्वीमकर्देववीतिं नो अद्य' 'भद्रामकर्देवहूतिं नो अद्य' सुनकर प्रभु कहते हैं कि (अद्य) = आज (तद् वाचः प्रथमम्) = उस वाणी के सर्वप्रथम वेदज्ञान को (मसीय) = हृदयस्थरूपेण उच्चारण करता हूँ। यह वेदज्ञान वह है (येन) = जिससे कि मैं (देवाः) = और देव (असुरान्) = आसुरवृत्तियों का (अभि असाम) = अभिभव करते हैं । ज्ञान ही जीवन को पवित्र बनाता है। इस प्रकार वेद ज्ञान से आसुर वृत्तियों का संहार होकर दैवी वृत्तियों का विकास होता है । [२] प्रभु कहते हैं कि (ऊर्जादः) = पौष्टिक ही अन्नों का सेवन करनेवाले (उत) = और (यज्ञियासः) = यज्ञशील (पञ्चजना:) = लोगो ! (मम होत्रम्) = मेरे द्वारा वेदों में प्रतिपादित इन यज्ञों का (जुषध्वम्) = तुम प्रीतिपूर्वक सेवन करो। यहाँ 'ऊर्जम्' शब्द 'पौष्टिक अन्न के सेवन' को कर्त्तव्य रूप से तो कह ही रहा है, पर साथ ही 'यज्ञियासः' शब्द इस बात का भी संकेत करता है कि यज्ञों के द्वारा ही शक्तिशाली अन्नों का उत्पादन हुआ करता है 'यज्ञाद् भवति पर्जन्यः, पर्जन्यादन्नसंभवः'। यज्ञों से वृष्टि के द्वारा उत्पन्न होनेवाले अन्न कणों के केन्द्र में घृतकण होते हैं । यही अन्न पौष्टिक होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेदज्ञान दिया है, उन वेदों में यज्ञों का प्रतिपादन किया है। इन यज्ञों को करते हुए हम आसुरवृत्तियों का पराभव कर पाते हैं ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अद्य) अस्मिन् जन्मावसरे सम्मेलनावसरे (वाचः-तत् प्रथमं मंसीय) वेदवाचः प्रथमं प्रमुखं लक्ष्यं ब्रह्म ब्रह्मवाचकं नाम ‘ओ३म्’ चिन्तयेयम् (येन-असुरान् देवाः-अभि-असाम) येन खलु दुष्टान् वयं विद्वांसोऽभिभवेम, अतः (ऊर्जादः) अन्नभोक्तारः “ऊर्जादः-अन्नादः” [निरु० ३।८] (उत) अपि (यज्ञियासः पञ्चजनाः) यज्ञियसूक्ष्माहारा मनुष्याः “पञ्चजनाः-मनुष्यनाम” [निघ० २।३] (मम होत्रं जुषध्वम्) मम ह्वानं हितवचनं सेवेध्वम् ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I, Agni, presiding power of corporate life by yajna, now think and meditate upon that first, highest and eternal Word, AUM, by which we, yajnic souls dedicated to divinity, may overcome the evil adversaries.$Let all those who live on energy foods and join together for noble creative works in the spirit of yajna, and the people of all the five classes and communities listen and follow my call to action.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जन्माच्यावेळी वेदवाणी किंवा प्रमुख नाव ‘ओ३म्’ चे स्मरण करावे व जन्मलेल्या बालकाच्या जिभेवर ‘ओ३म्’ लिहावे व कानात म्हणावे. सत्संग सभेत ‘ओ३म्’चे स्मरण करावे, त्यावेळी स्थूल अन्न व सूक्ष्म आहार करणाऱ्या माणसांनी ‘ओ३म्’चे स्मरण व कीर्तन करावे. ॥४॥

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