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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 56/ मन्त्र 5
    ऋषि: - वृहदुक्थो वामदेव्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    सहो॑भि॒र्विश्वं॒ परि॑ चक्रमू॒ रज॒: पूर्वा॒ धामा॒न्यमि॑ता॒ मिमा॑नाः । त॒नूषु॒ विश्वा॒ भुव॑ना॒ नि ये॑मिरे॒ प्रासा॑रयन्त पुरु॒ध प्र॒जा अनु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सहः॑ऽभिः । विश्व॑म् । परि॑ । च॒क्र॒मुः॒ । रजः॑ । पूर्वा॑ । धा॒मानि॑ । अमि॑ता । मिमा॑नाः । त॒नूषु॑ । विश्वा॑ । भुव॑ना । नि । ये॒मि॒रे॒ । प्र । अ॒सा॒र॒य॒न्त॒ । पु॒रु॒ध । प्र॒ऽजाः । अनु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहोभिर्विश्वं परि चक्रमू रज: पूर्वा धामान्यमिता मिमानाः । तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अनु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहःऽभिः । विश्वम् । परि । चक्रमुः । रजः । पूर्वा । धामानि । अमिता । मिमानाः । तनूषु । विश्वा । भुवना । नि । येमिरे । प्र । असारयन्त । पुरुध । प्रऽजाः । अनु ॥ १०.५६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 56; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (सहोभिः-विश्वं रजः-परि चक्रमुः) ये आत्माएँ कर्मबलों से समस्त प्राणिलोक में परिभ्रमण करती हैं (पूर्वा-अमिता धामानि मिमानाः) श्रेष्ठ अतुलित-अगणित, अनुपम, सुखमय परिमित बनाते हुए (तनूषु) भिन्न-भिन्न शरीरों में वर्त्तमान (विश्वा भुवना नियेमिरे) सारे शरीरों को नियमित करती हैं (पुरुध प्रजाः-अनु प्रासारयन्त) पितृभूत होकर बहुधा सन्तति का प्रसार करती हैं ॥५॥

    भावार्थ

    आत्माएँ कर्मबलों के आधार पर प्राणिलोकों में परिभ्रमण करती हैं-चक्र लगाती हैं। अपने अनुकूल सुखमय धामों में जाती हैं और पितृभूत होकर बहुत प्रकार से संतानों को उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार आत्माओं के द्वारा वंशपरम्परा चलती है ॥५॥

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सहोभिः-विश्वं रजः-परि चक्रमुः) एते-आत्मानः कर्मबलैः समस्तं प्राणिलोकम् “लोका रजांस्युच्यन्ते” [निरु० ४।१९] परिक्राम्यन्ति परिभ्रमन्ति (पूर्वा-अमिता धामानि मिमानाः) श्रेष्ठानि-अतुलानि-अनुपमानि सुखमयानि परिमितानि कुर्वन्त (तनूषु) भिन्न-भिन्नशरीरेषु वर्तमानाः (विश्वा भुवना नियेमिरे) सर्वाणि शरीराणि नियमयन्ति पितृभूताः (पुरुध प्रजाः-अनु प्रासारयन्त) बहुधा सन्ततिरनुलक्ष्य प्रसारयन्ति ॥५॥

    English (1)

    Meaning

    These souls by their own karmic potential roam around across all regions of the world, freely ranging over boundless worlds of high order, sajourning in various body forms across the spaces begetting and extending the creativity of life in various ways according to the law of karma.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आत्मे कर्मबलाच्या आधारावर प्राणिलोकात परिभ्रमण करतात, चक्रात फिरतात, आपल्या अनुकूल सुखी घरात जन्मतात व पिता बनून अनेक संतानांना उत्पन्न करतात. या प्रकारे आत्म्यांची वंशपरंपरा चालते. ॥५॥

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